मंगलवार, 11 जून 2013

बाकोलिया अब बन गए हैं असली नेता

कल तक राजनीति के नौसीखिया कहलाने वाले अजमेर नगर निगम के मेयर कमल बाकोलिया असली नेता हो गए प्रतीत होते हैं। सब जानते हैं कि असली नेता वही होता है, जिसकी चमड़ी मोटी होती है, अर्थात छोटी-मोटी आलोचनाओं का तो उस पर असर ही नहीं होता। बाकोलिया पर भी अब असर होना बंद हो गया है। ऐसे में उन्हें असली नेता कहा जाना चाहिए।
आपको याद होगा कि पिछले दिनों जब कांग्रेस की संदेश यात्रा और भाजपा की सुराज संकल्प यात्रा के दौरान आपसी होड़ा-होड़ी में नेताओं ने  सारे कानून-कायदे ताक पर रख कर शहर भर को बैनर और होर्डिंगों से पाट दिया था तो अखबारों ने खूब शोर मचाया। मगर बाकोलिया के कान में जूं तक नहीं रेंगी। वे इस कान से सुर पर उस कान से निकालते रहे। बेशक अखबार वालों ने अपना जो फर्ज था, वह पूरी तरह से निभाया, उससे अधिक वे कर भी क्या सकते हैं, मगर यही जान कर वे कुछ कर नहीं सकते, केवल छाप ही सकते हैं, बाकोलिया ने भी कोई परवाह नहीं की। आखिर दोनों यात्राएं जब समाप्त हो गईं और नेताओं का मकसद पूरा हो गया, तब जा कर बैनर होर्डिंग्स हटाए गए।
असल में इस मामले में विल पॉवर की जरूरत होती है। वह बाकोलिया में कहीं नजर नहीं आई। आती भी कहां से? हुआ ये कि पहले कांग्रेस की संदेश यात्रा थी, इस कारण कांग्रेसी होने के नाते उन्हें कांग्रेसी नेताओं के होर्डिंग्स नजर ही नहीं आए। जानबूझ कर नजरअंदाज करना उनकी मजबूरी भी थी। भला अशोक गहलोत की फोटो वाले होर्डिंग्स हटा कर वे अपने हाईकमान की नाराजगी क्यों मोल लेते? इस कारण चुप बैठे रहे। अपुन ने तब भी ये बात लिखी थी।
इसके बाद जब भाजपा की सुराज संकल्प यात्रा आई तो भाजपा नेताओं ने भी कांग्रेस से भी ज्यादा होर्डिंग्स चस्पा कर दिए। वे जानते थे कि बाकोलिया उनके होर्डिंग्स हटाने की हिम्मत नहीं दिखा पाएंगे। वैसे भी वे कांग्रेसी पार्षदों की तुलना में भाजपाइयों से मिलजुल कर ज्यादा चलते हैं। इस पर भी अपनु ने साफ लिख दिया था कि सुराज संकल्प यात्रा के स्वागत के लिए शहर भर में लगाए हॉर्डिंग्स और बैनर पर मीडिया ने बड़ा हल्ला मचा रखा है, मगर नगर निगम के मेयर कमल बाकोलिया में इतनी हिम्मत कहां कि वे इन्हें हटा पाएं। हुआ भी वही। अखबार वाले चिल्लाते रहे, मगर बाकोलिया की पहले से चुकी हुई विल पॉवर नहीं जाग पाई। यहां तक निगम की सीईओ विनिता श्रीवास्तव ने महज औपचारिकता निभाते हुए होर्डिंग्स हटाने के कागजी आदेश जारी किए, मगर न उन पर अमल होना था और न हुआ।  अब जा कर जब कानून तोडऩे वाले नेताओं का मकसद पूरा हो गया है तो उन पर अमल हुआ है। ऐसे में बाकोलिया के इस कथन पर अफसोस ही होता है कि राजनेताओं को खुद शहर के हित को देखते हुए ख्याल रखना चाहिए। उन्होंने नसीहत दी कि नेताओं को खुद नियमों का ध्यान रखना चाहिए। यानि वे तो कम से कम नियमों की पालना के जो अधिकार मिले हुए हैं, जनता ने उन्हें चुन कर दिए हैं, उन्हें वे इस्तेमाल नहीं करेंगे। ऐसे में भला सारे नेता भी काहे को नियमों का ध्यान रखेंगे। यानि कि सब कुछ यूं ही चलता रहेगा। ऐसे में राजस्थानी कहावत याद आती है- रांडा रोवती रेई, पांवणा जीमता रेई।
-तेजवानी गिरधर

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