बुधवार, 3 जुलाई 2013

जैन साहब, क्या दीप दर्शन व डॉ. गोखरू प्रकरणों के प्रमाण भी जुटाएंगे?

राजस्थान प्रदेश के सह-प्रभारी एवं पूर्व सांसद किरीट सोमैया ने हाल ही अपने अजमेर प्रवास के दौरान अजमेर में हो रहे घोटालों के प्रमाण एवं दस्तावेज जुटाने के लिए एक कमेटी का गठन किया गया है, जिसका संयोजक यूआईटी के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन को बनाया गया है और सदस्य के रूप में यूआईटी के पूर्व ट्रस्टी अरविंद शर्मा गिरधर, अरविंद यादव, शरद गोयल तथा तुलसी सोनी शामिल किए गए हैं।
अव्वल तो अब तक जो भी घोटाले सामने आए हैं, वे सब कानूनी प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। विधायक वासुदेव देवनानी ने तो सोमैया की मौजूदगी में हुई भाजपा नेताओं की बैठक में बाकायदा जिला पुलिस मुख्यालय, शिक्षा बोर्ड, न्यायपालिका तथा यूआईटी में व्याप्त भ्रष्टाचार के प्रकरणों पर जानकारी दी। ऐसे में सवाल ये उठता है कि धर्मेश जैन कौन से नए घोटाले सामने लाएंगे? हां, उन्होंने यूआईटी का मामला जरूर पिछले दिनों उठाया था और करोड़ों के घोटाले का आरोप लगाया, मगर उस बारे में आज तक एक की भी तथ्यात्मक जानकारी मीडिया के सामने उजागर नहीं की। यह बात दीगर है कि जैन के आरोप के चंद दिन बाद ही यूआईटी में लैंड फॉर लैंड मामले में रिश्वत मांगे जाने का मामला उजागर हो चुका है और यूआईटी सदर नरेन शहाणी तो इस्तीफा तक देना पड़ा है।
खैर, अपुन तो उससे भी बड़ा सवाल उठा रहे हैं। क्या धर्मेश जैन अजमेर के दीप दर्शन जमीन घोटाले में कुछ भाजपाइयों के शामिल होने के बारे में भी तथ्य जुटा कर पार्टी को बताएंगे? क्या है उनमें इतनी हिम्मत? यहां आपको बता दे कि इस बारे में जब सोमैया से पूछा गया तो वे इसका कोई जवाब नहीं दे पाए और यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि यदि भाजपाइयों ने भ्रष्टाचार किया होता तो, गहलोत उन्हें अब तक कई बार जेल भेज चुके होते। समझा जा सकता है कि इतने चर्चित मामले में, सोमैया की चुप्पी की क्या वजह हो सकती है?
दूसरा सवाल। क्या वे जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के हृदयरोग विभाग के प्रमुख और प्रमुख भाजपा नेत्री व जैन के कार्यकाल में ट्रस्टी रहीं श्रीमती कमला गोखरू के पति डॉ. राजेन्द्र गोखरू द्वारा मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना की धज्जियां उड़ाने और अपने भाई को फायदा पहुंचाने के आरोपों के तथ्य भी जुटाएंगे? कहने की जरूरत नहीं है कि इस प्रकरण में भाजपा ने अब तक पूरी चुप्पी साध रखी है।
बहरहाल, धर्मेश जैन को न्यास अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद संभवत: यह पहली बड़ी जिम्मेदारी पार्टी ने दी है। वरना उनके साथी नेताओं ने तो उन्हें हाशिये पर रखने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ी थी। सच तो ये है कि वे भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद की एक मात्र दावेदार श्रीमती वसुंधरा राजे की जल्दबाजी के पीडि़त रहे हैं। पिछले कार्यकाल में उन्होंने सीडी प्रकरण में बिना जांच-पड़ताल किए ही उनसे इस्तीफा ले लिया था। बाद में कांग्रेस राज में जा कर उनको क्लीन चिट मिली। न्यास अध्यक्ष पद का कार्यकाल पूरा न कर पाने का मलाल उन्हें आज तक है। उनकी ओर शुरू किए गए विकास कार्य आज धूल फांक रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर

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