बुधवार, 31 जुलाई 2013

डॉ. बाहेती ने उठाया अजमेर राज्य का मुद्दा

अलग तेलंगाना राज्य पर यूपीए और कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मुहर लगने के साथ ही 12 और नए राज्यों की मांग तेज होने का अनुमान है। पश्चिम बंगाल को बांट कर अलग गोरखालैंड में तो आंदोलन तेज भी हो गया है, जहां एक युवक ने मंगलवार को आत्मदाह कर लिया। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के प्रमुख बिमल गुरुंग ने चेतावनी दी है कि आने वाले समय में उग्र आंदोलन होगा। वहीं अलग विदर्भ के लिए विलास मुत्तेमवार ने सोनिया गांधी को पत्र लिख दिया है।
 उसी कड़ी में कांग्रेस के पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती ने भी कमोबेश अलग अजमेर राज्य का मुद्दा उठा दिया है। बुधवार की सुबह जब सारे अखबार अलग तेलंगाना की खबर सुर्खियां पा रही थीं तो दूसरी ओर डॉ. बाहेती की मित्र मंडली के मोबाइलों पर अलग अजमेर राज्य से संबंधित एसएमएस चमक रहा था। उन्होंने सवाल उठाया है कि 1956 में तेलंगाना का विलय आंध्रप्रदेश में हुआ, 1952 में अजमेर का विलय राजस्थान में हुआ, तेलंगाना पुन: स्वतंत्र, अजमेर का क्या? विचारें। इसका सीधा सा अर्थ है कि वे अजमेर राज्य के स्वतंत्र अस्तित्व की बात कह रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि आज जब तेलंगाना चर्चा में है, इस कारण उन्होंने अलग अजमेर राज्य की बात उठाई है, इससे पहले भी वे समय-समय पर यह मुद्दा उठाते रहे हैं। विशेष रूप से तब-तब, जब-जब अजमेर के हितों के साथ खिलवाड़ होता दिखा है। बीसलपुर के पानी के बंटवारे का मसला हो या फिर राजस्व मंडल अथवा राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के विखंडन का, उन्होंने अजमेर के साथ अन्याय होने से दु:खी हो कर यही कहा है कि इससे तो बेहतर है कि हमें अपना अजमेर राज्य अलग से दे दीजिए। इसके पीछे उनका ठोस तर्क भी रहता है कि अजमेर को महत्वपूर्ण राज्य स्तरीय सरकारी विभाग दिए ही इसके राजस्थान में विलय की एवज में गए थे।
आइये, जरा आपको इस मौके पर यह भी बताते चलें कि अजमेर राज्य के राजस्थान में विलय के समय क्या स्थिति थी:-
राजस्थान में विलय से पहले अजमेर राज्य से लोकसभा के लिए व राज्यसभा के लिए एक सदस्य चुने जाने की व्यवस्था थी। लोकसभा के लिए अजमेर व नसीराबाद क्षेत्र से स्वर्गीय श्री ज्वाला प्रसाद शर्मा और केकड़ी व ब्यावर क्षेत्र से स्वर्गीय श्री मुकुट बिहारी लाल भार्गव और राज्यसभा के लिए स्वर्गीय श्री अब्दुल शकूर चुने गए। सन् 1953 में अजमेर राज्य से राज्यसभा के लिए कोई सदस्य नहीं था, जबकि 1954 में श्री करुम्बया चुने गए। अजमेर राज्य के राजस्थान में विलय के साथ ही मंत्रीमंडल व सभी समितियों का अस्तित्व समाप्त हो गया। राजस्व व शिक्षा मंत्री श्री बृजमोहन लाल शर्मा को राजस्थान मंत्रीमंडल में लिया गया। अजमेर राज्य विधानसभा में कुल तीस सीटें हुआ करती थीं।
यहां उल्लेखनीय है कि गृहमंत्री सरदार वल्लभाई पटेल के नीतिगत निर्णय के तहत 11 जून 1956 को श्री सत्यनारायण राव की अध्यक्षता में गठित राजस्थान केपिटल इन्क्वायरी कमेटी की सिफारिश पर अजमेर के महत्व को बरकरार रखते हुए 1 नवंबर, 1956 को राजस्थान लोक सेवा आयोग का मुख्यालय अजमेर में खोला गया। 4 दिसम्बर 1957 को पारित शिक्षा अधिनियम के तहत माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का मुख्यालय अजमेर रखा गया। साथ ही 22 जुलाई, 1958 को राजस्व मंडल का अजमेर हस्तांतरण किया गया।
थोड़ा सा विस्तार में देखिए- आजादी और अजमेर राज्य के राजस्थान में विलय के बाद राज्य के लिए एक ही राजस्व मंडल की स्थापना नवंबर 1949 में की गई। पूर्व के अलग-अलग राजस्व मंडलों को सम्मिलित कर घोषणा की गई कि सभी प्रकार के राजस्व विवादों में राजस्व मंडल का फैसला सर्वोच्च होगा। खंडीय आयुक्त पद की समाप्ति के उपरांत समस्त अधीनस्थ राजस्व विभाग एवं राजस्व न्यायालय की देखरेख एवं संचालन का भार भी राजस्व मंडल पर ही रखा गया। इसका कार्यालय जयपुर के हवा महल के पिछले भाग में जलेबी चौक में स्थित टाउन हाल, जो कि पहले राजस्थान विधानसभा भवन था, में खोला गया। बाद में इसे राजकीय छात्रावास में स्थानांतरित किया गया। इसके बाद एमआई रोड पर अजमेरी गेट के बाहर रामनिवास बाग के एक छोर के सामने यादगार भवन में स्थानांतरित किया गया। इसके बाद इसे जयपुर रेलवे स्टेशन के पास खास कोठी में शिफ्ट किया गया। सन् 1958 में राव कमीशन की सिफारिश पर अजमेर में तोपदड़ा स्कूल के पीछे शिक्षा विभाग के कमरों में स्थानांतरित किया गया। इसके बाद 26 जनवरी 1959 को जवाहर स्कूल के नए भवन में शिफ्ट किया गया। इसका उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री मोहनलाल सुखाडिय़ा ने किया।
इसी प्रकार कमेटी की सिफारिश पर अजमेर के महत्व को बरकरार रखते हुए 4 दिसम्बर 1957 को पारित शिक्षा अधिनियम के तहत माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का मुख्यालय अजमेर रखा गया। यह प्रदेशभर के सेकंडरी व सीनियर सेकंडरी के छात्रों की परीक्षा आयोजित करता है।
बात अगर लोक सेवा आयोग की करें तो आजादी से पहले देशी रियासतों में प्रशासनिक तथा न्यायिक अधिकारियों के पदों पर रजवाड़ों के अधीन जागीरदार या बड़े पदों पर आसीन अधिकारियों की संतानों को ही लगाने की प्रथा थी। स्वाधीनता प्राप्ति से कुछ ही पहले के सालों में देशी रियासतों में राज्य सेवा में भर्ती के लिए लोक सेवा आयोग अथवा चयन समिति का गठन किया था। सन् 1939 में जोधपुर, 1940 में जयपुर, 1946 में बीकानेर में लोक सेवा आयोग व 1939 में उदयपुर में चयन समिति स्थापित की गई थी। आजादी के बाद देशी रियासतों का एकीकरण किया गया और सभी वर्गों में से स्वतंत्र रूप से योग्य व्यक्तियों के चयन के लिए 16 अगस्त, 1949 को राजस्थान लोक सेवा आयोग का गठन किया गया। तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री सरदार वल्लभाई पटेल के नीतिगत निर्णय के तहत राव की अध्यक्षता में गठित राजस्थान केपिटल इन्क्वायरी कमेटी की सिफारिश पर अजमेर के महत्व को बरकरार रखते हुए राजस्थान लोक सेवा अयोग का मुख्यालय अजमेर में रखा गया। अगस्त, 1958 में इसे अजमेर स्थानांतरित कर दिया गया। पूर्व में यह रवीन्द्र नाथ टैगोर मार्ग पर स्थित भवन में संचालित होता था, जबकि अब यह जयपुर रोड पर घूघरा घाटी के पास स्थित है। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले इसका विखंडन कर अधीनस्थ एवं मंत्रालयिक सेवा चयन बोर्ड गठन कर दिया गया, लेकिन कांग्रेस सरकार ने उसे भंग कर दिया गया।
बहरहाल, बात अगर डॉ. बाहेती की करें तो उनके दिल में भी अलग अजमेर राज्य की आग वर्षों से सुलग रही है। अब देखना ये है कि डॉ. बाहेती अन्य राज्यों की तरह अजमेर को अलग राज्य बनाने की मांग को कहां तक आगे ले जाते हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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