बुधवार, 31 जुलाई 2013

ऐसा था स्वतंत्र अजमेर राज्य

राजपूताना का 1909 का वह नक्शा, जिसमें अजमेर मेरवाड़ा को दर्शाया गया है
कांग्रेस के पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती ने एक बार फिर अलग अजमेर राज्य का मुद्दा उठाया है। इस मौके पर यह बताना प्रासंगिक होगा कि स्वतंत्र अजमेर राज्य कैसा था। पेश है मेरी पुस्तक अजमेर एट ए ग्लांस का  एक आलेख:-
नवम्बर, 1956 में राजस्थान में विलय से पहले अजमेर एक स्वतंत्र राज्य था। केन्द्र सरकार की ओर से इसे सी स्टेट के रूप में मान्यता मिली हुई थी। आइये, इससे पहले यहां की सामन्तशाही व्यवस्था पर नजर डाल लें:-
सामन्तशाही व्यवस्था
अजमेर राज्य 2 हजार 417 वर्ग मील क्षेत्र में फैला हुआ था और सन् 1951 में इसकी जनसंख्या 6 लाख 93 हजार 372 थी। केकड़ी को छोड़ कर राज्य का दो तिहाई हिस्सा जागीरदारों व इस्तमुरारदारों (ठिकानेदार) के पास था, जबकि केकड़ी का पूरा इलाका इस्तमुरारदारों के कब्जे में था। सरकारी कब्जे वाली खालसा जमीन नाम मात्र को थी। पूर्व में ये ठिकाने जागीरों के रूप में थी और इन्हें सैनिक सेवाओं के उपलक्ष्य में दिया गया था। इन ठिकानों के कुल 277 गांवों में से 198 गावों से फौज खर्च वसूल किया जाता था। ब्रिटिशकाल से पहले सामन्तशाही के दौरान यहां सत्तर बड़े इस्तमुरारदार और चार छोटे इस्तमुरारदार थे। ये ठिकाने विभिन्न समुदायों में बंटे हुए थे। कुल 64 ठिकाने राठौड़ समुदाय के, 4 चीता समुदायों और 1-1 सिसोदिया व गौड़ के पास थे। इनको भी राजपूत रियासतों के जागीरदारों के बराबर विशेष अधिकार हासिल थे। सन् 1872 में ठिकानेदारों को सनद दी गई और 1877 में अजमेर भू राजस्व भूमि विनियम के तहत इनका नियमन किया गया।
इस्तमुरारदारों को तीन श्रेणी की ताजीरें प्रदान की हुई थीं। जब कभी किसी ठिकाने के इस श्रेणी के निर्धारण संबंधी विवाद होते थे तो चीफ कमिश्रर की रिपोर्ट के आधार पर वायसराय उसका समाधान निकालते थे। ब्रिटिश काल में जब कभी कोई इस्तमुरारदार दरबार में भाग लेता था तो चीफ कमिश्नर की ओर से उसका सम्मान किया जाता था। हालांकि इस्तमुरारदार राजाओं की श्रेणी में नहीं आते थे, लेकिन इन्हें विशेष अधिकार हासिल थे।
अजमेर राज्य में कुल नौ परगने शाहपुरा, खरवा, पीसांगन, मसूदा, सावर, गोविंदगढ़, भिनाय, देवगढ़ व केकड़ी थे। केकड़ी जूनिया का अंग था। जूनिया, भिनाय, सावर, मसूदा व पीसांगन के इस्तमुरारदार मुगल शासकों के मंसबदार थे। भिनाय की सर्वाधिक प्रतिष्ठा थी तथा इसके इस्तमुरारदार राजा जोधा वंश के थे। प्रतिष्ठा की दृष्टि से दूसरे परगने सावर के इस्तमुरारदार ठाकुर सिसोदिया वशीं शक्तावत राजपूत थे। इसी क्रम में तीसरे जूनिया के इस्तमुरारदार राठौड़ वंशी थे। पीसांगन के जोधावत वंशी राठौड़ राजपूत व मसूदा के मेड़तिया वंशी राठौड़ थे। अजमेर राज्य में जागीरदारी व माफीदार व्यवस्था भी थी। धार्मिक व परमार्थ के कार्यों के लिए दी गई जमीन को जागीर कहा जाता था। इसी प्रकार माफी की जमीन भौम के रूप में दी जाती थी। भौम चार तरह के होते थे। पहले वे जिनकी संपत्ति वंश परम्परा के तहत थी और राज्य की ओर से स्वामित्व दिया जाता था। दूसरे वे जिनकी संपत्ति अपराध के कारण दंड स्वरूप राज्य जब्त कर लेता था, तीसरे वे जिनकी संपत्ति जब्त करने के अतिरिक्त राजस्व के अधिकार छीन लिए जाते थे और चौथे वे जिन पर दंड स्वरूप जुर्माना किया जाता था। इस्तमुरारदार ब्रिटिश शासन को भू राजस्व की तय राशि वार्षिक लगान के रूप में देते थे। जागीरदार अपने इलाके का भू राजस्व सरकार को नहीं देते थे। आजादी के बाद शनै: शनै: जागीरदारी व्यवस्था समाप्त की जाती रही। 1 अगस्त, 1955 को अजमेर एबोलिएशन ऑफ इंटरमीडियरी एक्ट के तहत इस्तमुरारदार खत्म किये गये। इसी प्रकार दस अक्टूबर, 1955 में जागीरदार व छोटे ठिकानेदारों को खत्म किया गया। इसके बाद 1958 में भौम व माफीदारी की व्यवस्था को भी खत्म कर दिया गया। राज्य के पुनर्गठन के संबंध में 1 नवंबर, 1956 को राज्य पुनर्गठन अधिनियम प्रभाव में आया और अजमेर एकीकृत हुआ और राजस्थान में शामिल कर लिया गया। 1 दिसम्बर, 1956 को जयपुर जिले का हिस्सा किशनगढ़ अजमेर में शामिल कर दिया गया। किशनगढ़ में उस वक्त चार तहसीलें किशनगढ़, रूपनगढ़, अरांई व सरवाड़ थी। 15 जून, 1958 से राजस्थान का भूमि राजस्व अधिनियम 1950, खातेदारी अधिनियम 1955 अजमेर पर लागू कर दिए गए। 1959-60 में तहसीलों का पुनर्गठन किया गया और अरांई व रूपनगढ़ तहसील समाप्त कर जिले में पांच तहसीलें अजमेर, किशनगढ़, ब्यावर, केकड़ी व सरवाड़ बना दी गई। केकड़ी तहसील का हिस्सा देवली अलग कर टोंक जिले में मिला दिया गया।
ऐसा था स्वतंत्र राज्य का ढांचा
सन् 1946 से 1952 तक अजमेर राज्य के संचालन के लिए चीफ कमिश्नर को राय देने के लिए सलाहकार परिषद् बनी हुई थी। इस में सर्वश्री बालकृष्ण कौल, किशनलाल लामरोर व मिर्जा अब्दुल कादिर बेग, जिला बोर्ड व अजमेर राज्य की नगरपालिकाओं के सदस्यों द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि, संसद सदस्य मुकुट बिहारी लाल भार्गव, कृष्णगोपाल गर्ग, मास्टर वजीर सिंह और पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधि के रूप में सूर्यमल मौर्य मनोनीत किया गया था।
भारत विभाजन के बाद कादिर बेग पाकिस्तान चले गए व उनके स्थान पर सैयद अब्बास अली को नियुक्त किया गया। चीफ कमिश्नर के रूप में श्री शंकर प्रसाद, सी. बी. नागरकर, के. एल. मेहता, ए. डी. पंडित व एम. के. कृपलानी रहे। सन् 1952 में प्रथम आम चुनाव के साथ ही यहां लोकप्रिय शासन की स्थापना हुई।
अजमेर विधानसभा को धारा सभा के नाम से जाना जाता था। इसके तीस सदस्यों में से इक्कीस कांग्रेस, पांच जनसंघ (दो पुरुषार्थी पंचायत)और चार निर्दलीय सदस्य थे। मुख्यमंत्री के रूप में श्री हरिभाऊ उपाध्याय चुने गए। गृह एवं वित्त मंत्री श्री बालकृष्ण कौल, राजस्व व शिक्षा मंत्री ब्यावर निवासी श्री बृजमोहन लाल शर्मा थे। मंत्रीमंडल ने 24 मार्च, 1952 को शपथ ली।  विधानसभा का उद्घाटन 22 मई, 1952 को केन्द्रीय गृह मंत्री डॉ. कैलाश नाथ नायडू ने किया। विधानसभा के पहले अध्यक्ष श्री भागीरथ सिंह व उपाध्यक्ष श्री रमेशचंद भार्गव चुने गए। बाद में श्री भार्गव को अध्यक्ष बनाया गया और उनके स्थान पर सैयद अब्बास अली को उपाध्यक्ष बनाया गया। विरोधी दल के नेता डॉ. अम्बालाल थे। विधानसभा प्रशासन संचालित करने के लिए 19 कानून बनाए। सरकार के कामकाज में मदद के लिए  विकास कमेटी, विकास सलाहकार बोर्ड, औद्योगिक सलाहकार बोर्ड, आर्थिक जांच बोर्ड, हथकरघा सलाहकार बोर्ड, खादी व ग्रामोद्योग बोर्ड, पाठ्यपुस्तक राष्ट्रीयकरण सलाहकार बोर्ड, पिछड़ी जाति कल्याण बोर्ड, बेकारी कमेटी, खान सलाहकार कमेटी, विक्टोरिया अस्पताल कमेटी, स्वतंत्रता आंदोलन इतिहास कमेटी और नव सुरक्षित वन जांच कमेटी का गठन किया गया, जिनमें सरकारी व गैर सरकारी व्यक्तियों को शामिल किया गया।
राजस्थान में विलय से पहले अजमेर राज्य से लोकसभा के लिए व राज्यसभा के लिए एक सदस्य चुने जाने की व्यवस्था थी। लोकसभा के लिए अजमेर व नसीराबाद क्षेत्र से श्री ज्वाला प्रसाद शर्मा और केकड़ी व ब्यावर क्षेत्र से श्री मुकुट बिहारी लाल भार्गव और राज्यसभा के लिए श्री अब्दुल शकूर चुने गए। सन् 1953 में अजमेर राज्य से राज्यसभा के लिए कोई सदस्य नहीं था, जबकि 1954 में श्री करुम्बया चुने गए। अजमेर राज्य के राजस्थान में विलय के साथ ही मंत्रीमंडल व सभी समितियों का अस्तित्व समाप्त हो गया। राजस्व व शिक्षा मंत्री श्री बृजमोहन लाल शर्मा को राजस्थान मंत्रीमंडल में लिया गया।
यहां उल्लेखनीय है कि गृहमंत्री सरदार वल्लभाई पटेल के नीतिगत निर्णय के तहत 11 जून 1956 को श्री सत्यनारायण राव की अध्यक्षता में गठित राजस्थान केपिटल इन्क्वायरी कमेटी की सिफारिश पर अजमेर के महत्व को बरकरार रखते हुए 1 नवंबर, 1956 को राजस्थान लोक सेवा आयोग का मुख्यालय अजमेर में खोला गया। 4 दिसम्बर 1957 को पारित शिक्षा अधिनियम के तहत माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का मुख्यालय अजमेर रखा गया। 22 जुलाई, 1958 को राजस्व मंडल का अजमेर हस्तांतरण किया गया।
अजमेर राज्य विधानसभा के सदस्य, उनके निर्वाचन क्षेत्र और पार्टी
1. श्री अर्जुनदास अजमेर दक्षिण पश्चिम जनसंघ
2. श्री बालकृष्ण कौल अजमेर पूर्व कांग्रेस
3. श्री परसराम अजमेर (सुरक्षित) जनसंघ
4. श्री हरजी लाल अजमेर (सुरक्षित) कांग्रेस
5. श्री रमेशचंद व्यास अजमेर (कालाबाग) कांग्रेस
6. श्री अम्बालाल अजमेर (नया बाजार) जनसंघ
7. श्री भीमनदास अजमेर (टाउन हाल) कांग्रेस
8. श्री सैयद अब्बास अली (ढ़ाई दिन का झौंपड़ा) कांग्रेस
9. श्री बृजमोहन लाल शर्मा ब्यावर (उत्तर) कांग्रेस
10. श्री जगन्नाथ ब्यावर (दक्षिण) कांग्रेस
11. श्री कल्याण सिंह भिनाय जनसंघ
12. श्री शिवनारायण सिंह पुष्कर (उत्तर) कांग्रेस
13. श्री जयनारायण पुष्कर (दक्षिण) कांग्रेस
14. श्री महेन्द्र सिंह पंवार नसीराबाद निर्दलीय
15. श्री लक्ष्मीनारायण नसीराबाद (सुरक्षित) कांग्रेस
16. श्री जेठमल केकड़ी कांग्रेस
17. श्री सेवादास केकड़ी (सुरक्षित) कांग्रेस
18. श्री छगन लाल देवलिया कलां कांग्रेस
19. श्री हिम्मत अली देराठू कांग्रेस
20. श्री किशनलाल लामरोर गगवाना कांग्रेस
21. श्री चिमन सिंह जवाजा निर्दलीय
22. श्री भागीरथ सिंह जेठाना कांग्रेस
23. श्री नारायण जेठाना (सुरक्षित) कांग्रेस
24. श्री सूर्यमल मौर्य मसूदा (सुरक्षित) कांग्रेस
25. श्री नारायण सिंह मसूदा निर्दलीय
26. श्री गणपत सिंह नया नगर जनसंघ
27. श्री लक्ष्मण सिंह सावर निर्दलीय
28. श्री वली मोहम्मद श्यामगढ़ कांग्रेस
29. श्री हरिभाऊ उपाध्याय श्रीनगर कांग्रेस
30. श्री प्रेमसिंह टाटगढ़ कांग्रेस

-तेजवानी गिरधर
7742067000

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