बुधवार, 31 जुलाई 2013

पक्का न मान कर चलिए अनिता भदेल का टिकट

अजमेर उत्तर में भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी के विधानसभा टिकट में तो संशय इस कारण है कि भाजपा एक धड़ा उनका जमकर विरोध कर रहा है, मगर बताया जाता है कि अजमेर दक्षिण की विधायक श्रीमती अनिता भदेल के टिकट में भी रगड़ा पड़ सकता है।
हालांकि आम धारणा यही है कि श्रीमती भदेल के टिकट में कोई संकट नहीं है, क्योंकि एक तो प्रत्यक्षत: उनका कोई विरोध नहीं है, दूसरा देवनानी विरोधी लॉबी सपोर्ट कर रही है, तीसरा जिले में एक महिला को तो टिकट देना ही है, जबकि अन्य किसी सीट पर कोई दमदार महिला उभर नहीं पाई है। और चौथा एक विपक्षी विधायक के नाते ओवरऑल परफोरमेंस भी ठीक बताई जाती है। बावजूद इसके अंदरखाने की खबर है कि उनके टिकट को पक्का नहीं माना जाना चाहिए। बताया जाता है कि अजमेर नगर निगम के महापौर पद के प्रत्याशी रहे डॉ. प्रियशील हाड़ा खुल कर तो नहीं, मगर अंदर की अंदर उनका जम कर विरोध कर रहे हैं। इसकी वजह ये बताई जाती है कि श्रीमती भदेल ने उनका सहयोग नहीं किया, इस कारण वे हार गए। वरना केंडीडेट तो वे कांग्रेस के कमल बाकोलिया से बेहतर ही थे। यह बात सबके गले आसानी से उतरती भी है, क्योंकि कोई भी नेता पार्टी में अपनी ही समाज के किसी दूसरे नेता को काहे को जड़ें जमाने देगा। कहने की जरूरत नहीं है कि वे भी उसी कोली समाज से हैं, जिस समाज के नाते श्रीमती भदेल को लगातार दो बार टिकट दिया जाता रहा है। डॉ. हाड़ा का विरोध तो अपनी जगह है ही, बताया जाता है कि संघ में भी उनके प्रति सर्वसम्मति अब नहीं रही है। एक फैक्टर ये भी है कि लगातार दो टर्म तक विधायक रहने वाले नेता के अनेक स्वाभाविक दुश्मन भी बन जाते हैं, जिनके कि निजी अथवा सार्वजनिक काम नहीं हुए होते हैं। ऐसे लोग उनके व्यवहार को लेकर शिकायतें कर रहे हैं। रहा सवाल खुद के दमखम का तो यह साफ है कि श्रीमती भदेल जो कुछ भी हैं, संघ और भाजपा के दम पर हैं। उनका अपना कोई खास वजूद नहीं रहा है। अब भी नहीं है। न सामाजिक, न ही आर्थिक। यह एक सच्चाई भी है कि आमतौर पर संघ और भाजपा में व्यक्ति पार्टी की तुलना में गौण होता है। असली ताकत संगठन की ही होती है। संगठन को अहसास है कि वह चाहे जिसे खड़ा करे, जितवा कर ला सकता है। ऐसे एक नहीं, अनेक उदाहरण मौजूद हैं, जो कि केवल संगठन के दम पर ही नेता रहे, जैसे ही संगठन ने मुंह फेरा, वे जमीन पर आ गए। जैसे पूर्व राज्य मंत्री श्रीकिशन सोनगरा, पूर्व विधायक नवलराय बच्चानी, पूर्व विधायक हरीश झामनानी। आज उनको कौन पूछता है। ये सब ऐसे नेता हैं, जिन्हें संगठन ने ही नेता बनाया, वरना वे भी आम आदमी ही थे। और हटने के बाद भी आम हो गए। अनिता भदेल भी उनकी श्रेणी की नेता हैं। उन्हें जमीन से आसमान तक लाने में रोल ही संगठन का है। बहरहाल, संघ लॉबी में चर्चा है कि चेहरा बदलने के लिहाज से श्रीमती भदेल का टिकट काटा जा सकता है। हालांकि यह बात आसानी से हजम नहीं होती, मगर संघ कब क्या करता है, पता नहीं चलता। वह कहता कुछ नहीं, और करता सब कुछ है। बड़े-बड़े तीसमारखां भी संघ के आगे नतमस्तक होते हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अजमेर उत्तर की तरह दक्षिण की सीट भी संघ कोटे की है। अगर वाकई संघ ने उन्हें टिकट न देने की ठानी तो फिर वसुंधरा भी हथेली नहीं लगा सकतीं।

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