मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

सिंगारियां का एजेंडा आखिर है क्या?

babu lal singariya 1केकड़ी विधानसभा क्षेत्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बैनर तले चुनाव मैदान में उतरे पूर्व कांग्रेस विधायक बाबूलाल सिंगारियां का एजेंडा आखिर है क्या, ये किसी के समझ में नहीं आ रहा। पिछली बार जब वे निर्दलीय रूप से चुनाव लड़े थे तो यही कानाफूसी थी कि उन्हें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सी. पी. जोशी खेमे में चले गए रघु शर्मा को निपटाने की खातिर अनुसूचित जाति से होते हुए भी इस सामान्य सीट पर चुनाव लड़ा। हालांकि तब से शर्मा को हराने में तो कामयाब नहीं हुए, मगर खुद 22 हजार 123 वोट हासिल कर दिखा दिया कि उनमें कितना दम है। ज्ञातव्य है कि रघु शर्मा ने भाजपा की श्रीमती रिंकू कंवर को 12 हजार 659 मतों से पराजित किया था। श्रीमती रिंकू कंवर की हार में भाजपा के बागी भूपेन्द्र सिंह की भूमिका रही, जिन्होंने 17 हजार 801 वोट लिए थे।
आपको याद होगा कि इस चुनाव के चंद माह बाद ही जब लोकसभा के चुनाव हुए और अजमेर संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के सचिन पायलट मैदान में आए तो बागियों को मनाया गया, जिसमें सिंगारियां भी शामिल थे। उन दिनों बड़ी चर्चा थी कि शर्मा ने उनकी कांग्रेस में वापसी पर काफी अड़ंगा लगाया था और व्यक्तिगत रूप से माफी मांगने पर ही राजी हुए। बहरहाल, इसके बाद उन्होंने सचिन के लिए काम किया और पूरे पांच साल वे केकड़ी में सक्रिय रहे। साथ ही उनकी नजर अजमेर दक्षिण पर भी रही। माना ये जा रहा था कि पूर्व उप मंत्री ललित भाटी व पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल की खींचतान में उन्हें मौका मिल जाएगा। मगर ऐसा हुआ नहीं। पायलट ने एक नया प्रयोग कर पिछले दो चुनावों में भाजपा की श्रीमती अनिता भदेल को साथ देने वाले हेमंत भाटी को टिकट दिलवा दिया। टिकट वितरण प्रक्रिया के दौरान ही सिंगारियां कह दिया था कि वे केकड़ी से चुनाव लड़ेंगे। यूं पहले भी वे इसी प्रकार की घोषणा करते रहे थे। समझा ये जाता था कि ऐसा वे बार्गेनिंग के लिए कह रहे हैं। आखिर जब उन्हें कहीं से टिकट नहीं मिला तो वे केकड़ी सीट के लिए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का टिकट ले कर आ गए। उन्होंने पूरी ताकत भी झोंक दी। इस बार चूंकि राष्ट्रीय पार्टी के चुनाव चिन्ह पर लड़े, इस कारण परफोरमेंस बेहतर होने की संभावना जताई जा रही है। कदाचित इस बार जीतने की ही खातिर मैदान में उतरे हों, मगर मीडिया ने उन्हें इस रूप में कभी नहीं लिया। वह रघु के वोट कटर के रूप में ही आंकते रहे हैं। जो कुछ भी हो, मगर अनुसूचित जाति के नेता के एक सामान्य सीट से चुनाव लडऩे को गंभीरता से लिया जाता है। इसकी वजह ये है कि एक तो उनका परफोरमेंस पिछली बार भी निर्दलीय होने के बावजूद अच्छा था, इस बार तो राष्ट्रीय पार्टी का झंडा ले कर आए हैं, दूसरा ये कि इस बार उन्होंने मेहनत कुछ ज्यादा ही की है। अर्थात वे जीतने की उम्मीद के साथ मैदान में आए हैं। खैर, बावजूद इसके माना यही जा रहा है कि वे रघु को हराने के लिए खड़े हुए। सच क्या है, ये तो वही जान सकते हैं।
-तेजवानी गिरधर

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