मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

किस के इशारे पर मेयर को तंग कर रहे हैं सीईओ?

प्रदेश में भाजपा की सरकार आते ही अजमेर नगम निगम के मेयर कमल बाकोलिया के प्रति सीईओ हरफूल सिंह यादव के तेवर तीखे हो गए हैं। एक चुने हुए जनप्रतिनिधि को उसकी औकात दिखाने की इससे बड़ी मिसाल क्या होगी कि एक अधिकारी अपने मातहतों को सख्त भाषा में यह आदेश जारी किए कि कोई भी अधिकारी या बाबू मेयर को सीधे कोई फाइल न भेजे। आदेश में कहा गया है कि जानकारी मिली है कि शाखा प्रभारी उनकी जानकारी में लाए बिना ही फाइलें सीधी मेयर के पास भेज देते हैं। पूर्व में वर्ष 13 जनवरी 2001 को तत्कालीन सीईओ ने भी इसी आशय के आदेश जारी किए थे, इसके बावजूद पालना नहीं करना अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है। इतन ही नहीं यादव ने विभिन्न शाखाओं से जो फाइलें मेयर को भिजवाई गई हैं, उनकी सूची भी उनको प्रस्तुत करने को कहा है।
ज्ञातव्य है कि मेयर और सीईओ के बीच काफी समय से टकराव चल रहा है। विशेष रूप से सफाई कर्मियों की भर्ती के दौरान मतभेद खुलकर सामने आए थे। कांग्रेस शासनकाल में यह मनमुटाव दबा रहा, मगर जैसे ही भाजपा की सरकार आई, यादव के तेवर ही बदल गए हैं। इसी से सवाल उठता है कि क्या वे मौके का फायदा उठा कर अपने अधिकारों का सख्ती से इस्तेमाल कर रहे हैं या फिर उनको किसी ने ऊपर से इशारा किया है कि मेयर को कब्जे में रखो।
जो कुछ भी हो, मेयर बाकोलिया का बाकी का कार्यकाल बहुत अच्छा नहीं निकलता दिखाई दे रहा है। कदाचित इसमें उनकी ढि़लाई का भी दोष है। इस सिलसिले में याद आता है कांग्रेस शासनकाल में भाजपा की जिला प्रमुख श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा का कार्यकाल, जिसमें जिला परिषद का सीईओ दुआ-सलाम करके ही रहता था। क्या मजाल कि वह ऊंची आवाज में बात करे अथवा इस प्रकार के आदेश जारी करे।

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