शनिवार, 11 जनवरी 2014

देवनानी या कृपलानी को लोकसभा चुनाव लड़ाने की चर्चा

श्रीचंद कृपलानी
इन दिनों राजनीतिक हलकों में ऐसी चर्चा है कि अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी या निम्बाहेड़ा के भाजपा विधायक श्रीचंद कृपलानी को लोकसभा चुनाव लड़ाने पर पार्टी हाईकमान विचार कर रहा है। इसकी प्रमुख वजह ये बताई जा रही है कि सिंधी कोटे में ये दोनों ही मंत्री बनने की कतार में हैं। दोनों की दावेदारी मजबूत है, मगर दोनों को मंत्री बनाया नहीं जा सकता। पिछली बार सिंधी विधायक के रूप में अकेले देवनानी जीते थे, इस कारण उन्हें मंत्री बनाने में दिक्कत नहीं आई। इस बार देवनानी के अतिरिक्त कृपालानी व ज्ञानदेव आहूजा भी जीत कर आ गए। इसी कारण समस्या उत्पन्न हुई है। ऐसे में देवनानी व कृपालानी में से किसी एक को मंत्री बना कर दूसरे को लोकसभा में भेजना की बेहतर विकल्प होगा।
वासुदेव देवनानी
जहां तक कृपलानी का सवाल है, बताते हैं कि वे मंत्री बनने को ही प्राथमिकता दे रहे हैं, यह कह कर कि चित्तौड़ में उनके अनुकूल स्थितियां नहीं हैं। उनकी तो निम्बाहेड़ा में भी स्थिति खराब थी, वो तो कांग्रेस विरोधी लहर चली, वरना हार भी सकते थे। इधर स्वाभाविक रूप से देवनानी की प्राथमिकता भी मंत्री बनने की है, वे पहले भी मंत्री रह चुके हैं, मगर संघ को लगता है कि उन्हें अजमेर से आसानी से जितवा कर लोकसभा में भेजा जा सकता है। वजह ये बताई जा रही है कि उनको संसदीय क्षेत्र के सवा लाख सिंधी वोट तो मिलेंगे ही, भाजपा मानसिकता के वोट भी हासिल होंगे। यदि वोटों की बहुलता को देखते हुए किसी जाट को टिकट दिया जाता है तो भाजपा मानसिकता के राजपूत वोट छिटक सकते हैं, मगर देवनानी के साथ यह दिक्कत नहीं है। सिंधियों की इन मार्शल जातियों से कोई टसल नहीं है। रहा सवाल वैश्य समुदाय के विरोध का, क्योंकि उसका जिले में एक भी विधायक नहीं है, तो उसे एडीए का चेयरमैन बना कर संतुष्ट किया जा सकता है।

भाजपा के सामने अजमेर से जीत चुके कांग्रेस के आचार्य भगवान देव का उदाहरण है। इसी प्रकार कांग्रेस प्रत्याशी किशन मोटवानी भी प्रो. रासासिंह रावत से मात्र पैंतीस हजार से ही हारे थे। तब सिंधियों ने मोटवानी का साथ नहीं दिया था। उस वक्त चला काको आडवानी मामो मोटवानी का नारा लोगों को आज भी याद है। कुल मिला कर भाजपा को तो कम से सिंधी प्रत्याशी को उतारने में कोई दिक्कत नहीं है। बताते हैं देवनानी विरोधी लॉबी के जबरदस्त विरोध के बाद भी वे न केवल टिकट लेकर आए, बीस हजार वोटों से जीत भी गए, इससे उस लॉबी के पेट में भारी मरोड़ है। वह भी यह चाहती है कि किसी प्रकार देवनानी से मुक्ति मिल जाए ताकि वे मंत्री न बन पाएं। अब देखना ये है कि भाजपा के अंदर पक रही खिचड़ी पक पाती है या नहीं।

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