बुधवार, 16 अप्रैल 2014

सचिन विकास, तो जाट मोदी के नाम पर मांग रहे हैं वोट

राज्य की पच्चीस में चंद प्रतिष्ठापूर्ण सीटों में से एक अजमेर संसदीय क्षेत्र का चुनावी रण बहुत ही दिलचस्प हो गया है। एक ओर जहां कांग्रेस प्रत्याशी सचिन पायलट, जो कि यहां के सांसद होने के साथ-साथ केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं,  खुद के प्रयासों से कराए गए विकास कार्यों के नाम पर वोट मांग रहे हैं तो भाजपा प्रत्याशी प्रो. सांवर लाल जाट, जो कि जिले के नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र के विधायक व राजस्थान सरकार में जलदाय मंत्री हैं, कांग्रेस सरकार को कोसते हुए मोदी लहर पर सवार हो कर जीत की उम्मीद पाले हुए हैं। मोदी लहर के चलते मोटे तौर पर यही मान कर चला जा रहा है कि जाट का पलड़ा भारी है, लेकिन सचिन इस दावे को कि उन्होंने अजमेर के विकास के लिए हरसंभव प्रयास किया, उस लहर को थामने की कोशिश के रूप में देख जा रहा है। उन्हें कामयाबी मिलती है या नहीं ये तो चुनाव परिणाम सामने आने पर पता लग पाएगा।
असल में विधानसभा चुनाव में संसदीय क्षेत्र की आठों सीटों पर जीत और भाजपा की कांग्रेस पर तकरीबन एक लाख नब्बे हजार से अधिक वोटों की बढ़त के कारण भाजपा का उत्साहित होना लाजिमी है। इसके अतिरिक्त राज्य में भाजपा की सरकार का भी उसे लाभ मिलेगा। संगठन तो मजबूत है ही, इस बार संघ की ओर से मोदी को प्रोजेक्ट किए जाने के कारण संघ के स्वयंसेवक भी कमर कस कर मैदान में डटे हुए हैं। भाजपा का इस सीट पर ज्यादा जोर देने की वजह ये है कि अगर उसे सफलता मिलती है तो उसे यह कहने का मौका मिल जाएगा कि प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष तक उनके सामने नहीं टिक पाए। कदाचित इसी वजह से मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे तीन सभाएं कर चुकी हैं। सच तो यह है कि प्रो. जाट चुनाव लडऩा ही नहीं चाहते थे, चूंकि वे राज्य में मंत्री रहते हुए खुश हैं, मगर वसुंधरा के दबाव ने उन्हें चुनाव मैदान में उतरने को मजबूर कर दिया। इसी वजह से चुनावी जुगाली में यह सुनने में आता है कि जाट के प्रमुख सिपहसालार चाहते हैं कि वे मंत्री ही बने रहें, ताकि उनका कल्याण होता रहे।
उधर कांग्रेस को उम्मीद है कि भाजपा के पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत के पांच बार के कार्यकाल के उपलब्धि शून्य होने की तुलना में सचिन की उल्लेखनीय उपलब्धियों को जनता तवज्जो देगी। वे हवाई अड्डे के निर्माण का रास्ता साफ कर उसका शिलान्यास करवाने, केन्द्रीय विश्वविद्याल की स्थापना, कई नई ट्रेनें शुरू करवाने, दो सौ करोड़ की पेयजल परियोजनाएं शुरू करवाने,  देश के पहले स्मल फ्री सिटी के रूप में अजमेर का चयन करवा कर तीन हजार करोड़ की योजना शुरू करवाने, ढ़ाई सौ से ज्यादा स्कूलों में कंप्यूटर लैब शुरू करवाने, साठ करोड़ की लागत से राज्य का पहला ई-लर्निंग संस्थान स्थापित करवाने, मेगा हैल्थ कैंप के जरिए सत्तर हजार लोगों को लाभान्वित करवाने सहित विभिन्न समाजों के देवी-देवताओं के डाक टिकट जारी करवाने आदि को गिनवा रहे हैं। यहां यह बताना प्रासंगिक ही होगा कि आजादी के बाद सचिन के रूप में अजमेर को पहली बार केन्द्रीय मंत्रीमंडल में प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला था।
सचिन के सेलिब्रिटी होने की वजह से आम जनता के बीच सहज सुलभता न होना उनका नकारात्मक पहलू माना जाता है तो कांग्रेस विरोधी लहर में भी सचिन की उपलब्धियां उन्हें मैदान में मजबूती प्रदान कर रही है। बात अगर संगठन की करें तो हालत कुछ अच्छी नहीं है, मगर चूंकि सचिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं, इस कारण दूसरे दर्जे के नेता एकजुट हो गए हैं। इसके अतिरिक्त आगामी नगर निगम चुनाव के मद्देनजर भी छोटे नेता अपनी परफोरमेंस दिखाने को मजबूर हैं। हां, अलबत्ता कांग्रेस में अपना भविष्य नहीं देख कर अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी व पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारियां ने जरूर किनारा कर जाट का साथ दे दिया है। इसी प्रकार नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष नरेन शहाणी ने लैंड फोर लैंड मामले में उलझने की वजह से सरकार की तलवार लटकती देख कांग्रेस को तिलांजली दे दी है। बात अगर साधन संपन्नता की करें तो दोनों प्रत्याशी काफी तगड़े हैं। धरातल पर हो रही चुनाव प्रचार की गतिविधियां भी इसका साफ इशारा कर रही हैं।
जातीय समीकरण
जहां तक जातीय समीकरण का सवाल है कांग्रेस को सबसे बड़ा संबल है साढ़े तीन-चार लाख अनुसूचित जाति वोटों का। दूसरा बड़ा वोट बैंक है मुसलमानों का, जो कि करीब डेढ़ लाख हैं। इसके अतिरिक्त सचिन के स्वजातीय गुर्जर वोट करीब डेढ़-पौने दो लाख हैं। दूसरी ओर भाजपा की सबसे बड़ी ताकत हैं प्रो. जाट के स्वजातीय दो-ढ़ाई लाख वोट। इसके अतिरिक्त तकरीबन दो लाख वैश्य व एक लाख सिंधी परंपरागत रूप से भाजपा के साथ माने जाते हैं। बात अगर एक लाख राजपूत व सवा लाख रावतों की करें तो हैं तो वे परंपरागत रूप से भाजपा के साथ, मगर इस बार समीकरण कुछ गड़बड़ा सकता है। इसकी एक वजह है जैसलमेर-बाड़मेर में दिग्गज राजपूत नेता पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह की बगावत और दूसरा  स्वयं भाजपा प्रत्याशी का जाट होना। केकड़ी इलाके के राजपूत नेता भूपेन्द्र सिंह शक्तावत के कांग्रेस में आ जाने का भी भाजपा को कुछ तो नुकसान होगा ही। इसी प्रकार सचिन ने अपने कुछ प्रयासों से रावतों में भी सेंध मारी है। कयास है कि पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत को टिकट न दिए जाने से रावतों का उत्साह कुछ कम हुआ है। सचिन कुछ सिंधी वोट इस बिना पर हासिल करने की कोशिश में हैं कि उन्होंने विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर में किसी सिंधी को टिकट देने की पैरवी की थी।
जातीय लिहाज से इस चुनाव पर पूर्व कांग्रेस विधायक बाबूलाल सिंगारियां के भाजपा में चले जाने का असर रहेगा। उनकी केकड़ी विधानसभा क्षेत्र के सजातीय व मुसलमानों पर पकड़ है, जिनके दम पर विधानसभा चुनाव में उन्होंने लगभग 17 हजार वोट हासिल किए थे। इसी प्रकार अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी का जाट को समर्थन हासिल होने का भाजपा को फायदा होगा। डेयरी अध्यक्ष होने के कारण उनकी कुछ गुर्जर मतों पर भी पकड़ है, मगर देखना ये होगा कि क्या वे सचिन के मैदान में होते हुए सेंध मार पाते हैं या नहीं। तकरीबन तेईस हजार वोटों से अजमेर दक्षिण की सुरक्षित सीट पर कब्जा बरकरार रखने वाली श्रीमती अनिता भदेल कांग्रेस के वोट बैंक पर सेंध मारने की स्थिति में हैं। मगर सिक्के का दूसरा पहलू ये है कि उनकी जीत में अनुसूचित जातियों से कहीं अधिक सिंधियों की अहम भूमिका रही है। उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी हेमंत भाटी को स्थापित होने से रोकने वाले कांग्रेस के अनुसूचित जाति के कुछ नेताओं का भी साथ मिला था, मगर अब चूंकि सचिन मैदान में हैं, इस कारण उनका भितरघात करना कुछ मुश्किल हो गया है।
मानसिक स्थिति
सचिन भारी मानसिक दबाव में हैं, क्योंकि उन पर प्रदेश कांग्रेस का भार है। जीतने पर प्रदेश कांग्रेस पर पकड़ मजबूत होगी व राहुल गांधी का और विश्वास हासिल होगा। और हारने पर पूरी कांग्रेस हारी हुई मानी जाएगी। हांलाकि बावजूद इसके वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने रहेंगे, क्योंकि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने उन्हें जर्जर हो चुकी कांग्रेस का जीर्णोद्धार करने ही भेजा है। बात अगर प्रो. जाट की करें तो उन पर कोई खास मानसिक दबाव नहीं दिखता, क्योंकि हार जाने पर भी मंत्री पद तो कायम रहेगा ही। इसी वजह से कुछ लोग यह कहने से नहीं चूकते कि जाट की जीतने में रुचि ही नहीं है।  हालांकि इसका दूसरा पहलू ये है कि जीतने पर राष्ट्रीय राजनीति में एक बड़े जाट नेता के रूप में कदम बढ़ा सकते हैं। इसके अतिरिक्त भाजपा की अकेले अपने दम पर सरकार बनी तो कदाचित मंत्री बनने का भी मौका मिल सकता है।
साइड इफैक्ट
इस चुनाव के परिणाम के अपने साइड इफैक्ट भी होंगे। जाट के जीतने पर मंत्री पद खाली होगा और उस पर अजमेर उत्तर के प्रो. वासुदेव देवनानी को बैठाया जा सकता है। मगर इसके लिए उन पर अन्य विधायकों की तुलना में मतांतर अधिक रखने का दबाव बना हुआ है। अन्य भाजपा विधायकों पर भी इसी प्रकार का दबाव है, जो कि राज्य मंत्री बनने का रास्ता प्रशस्त करेगा।
-तेजवानी गिरधर

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