बुधवार, 6 अगस्त 2014

क्या सारस्वत की किस्मत में केवल सेवा ही लिखी है?

भाजपा की सरकार आने के बाद जैसा कि लग रहा था कि प्रो. बी. पी. सारस्वत को उनकी सेवा का लाभ मिलेगा और वे अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष अथवा किसी विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर बनाए जाएंगे, मगर ऐसा प्रतीत होता है कि उनकी किस्मत में केवल सेवा ही लिखी है।
पिछले से पिछले तीन विधानसभा चुनावों में वे ब्यावर सीट के दावेदार रहे, जबकि पिछले चुनाव में तो अजमेर उत्तर अथवा केकड़ी से प्रबल दावेदार थे, मगर उन्हें मौका नहीं मिला। पार्टी ने उनकी सेवाएं देहात जिला इकाई में लीं। बेशक देहात जिले की छहों सीटों पर पार्टी की जीत में मोदी लहर और वसुंधरा इफैक्ट की भूमिका रही, मगर सांगठनिक लिहाज से उनकी कार्यशैली को भी कम करके नहीं आंका जा सकता। जिले में पूरी निष्पक्षता के साथ शानदार सदस्यता अभियान चलाने का श्रेय भी उनके ही खाते में दर्ज है। पार्टी की इतनी सेवा के बाद अब लग रहा था कि इस बार तो जरूर उन्हें किसी लाभ के पद से नवाजा जाएगा, मगर देहात जिले की फिर से जिम्मेदारी देने के साथ फिलवक्त तो उसकी संभावना कम हो गई है।
आपको बता दें कि महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर में सेंटर फोर एन्थे्रप्रिनियरशिप एंड स्माल बिजनिस मैनेजमेंट के आठ वर्ष तक डायरेक्टर रहे प्रो. बी. पी. सारस्वत उच्च शिक्षा जगत के साथ राजनीति में भी एक जाना-पहचाना नाम है। वे मूल्य आधारित विचारधारा के पोषक हैं और मूल्यों की रक्षा के कारण ही वर्तमान उठापटक की राजनीति में अप्रासंगिक से नजर आते हैं। नैतिक मूल्यों की रक्षा की खातिर ही उन्होंने भाजपा के शिक्षा प्रकोष्ठ के प्रदेशाध्यक्ष पद को त्याग दिया, हालांकि उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया। उन्हें कुशल संगठक के अतिरिक्त प्रखर वक्ता, सशक्त नेता व स्पष्ट वक्ता के रूप में जाना जाता है। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद व विश्व हिंदू परिषद में सक्रिय रहे हैं। पिछली अशोक गहलोत सरकार के दौरान विहिप नेता श्री प्रवीण भाई तोगडिय़ा के त्रिशूल दीक्षा कार्यक्रम के दौरान उनको सहयोग करने वालों में प्रमुख होने के कारण उनके खिलाफ भी मुकदमा दर्ज हुआ था।
उनका जन्म जिले के छोटे से गांव ब्रिक्चियावास में सन् 1960 में हुआ। विद्यार्थी काल से ही वे संघ और विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए। वे सन् 1981 से 86 तक परिषद के विभाग प्रमुख रहे। वे सन् 1992 से 95 तक संघ के ब्यावर नगर कार्यवाह रहे। वे सन् 1997 से 2004 तक विश्व हिंदू परिषद के प्रांत मंत्री रहे हैं। वे सन् 1986 से 97 तक राजस्थान यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन के अनेक पदों पर और 2001 से 2003 तक अजमेर यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं। काम के प्रति निष्ठा की वजह ही उन्हें विश्वविद्यालय में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी जाती रही हैं। वे चीन, सिंगापुर, श्रीलंका व पाकिस्तान आदि देशों की यात्रा कर चुके हैं।

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