सोमवार, 20 जुलाई 2015

भाजपा में देवनानी विरोधी गुट फिर सक्रिय

पिछले दो विधानसभा चुनावों की तरह आसन्न निगम चुनाव में भी भाजपा का शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी विरोधी गुट सक्रिय हो गया है। हालांकि उसे दोनों बार अलग-अलग वजह से सफलता हासिल नहीं हुई, मगर उसे लगता है कि वार्ड स्तर पर हो रहे चुनाव में वह कामयाब हो जाएगा।
असल में देवनानी के पहली बार शिक्षा राज्य मंत्री बनने के साथ भाजपा का एक गुट उनके खिलाफ हो गया था, जिसमें सिंधी-गैर सिंधीवाद का पहलु भी काम कर रहा था। 2्र्र8 के विधानसभा चुनाव में तो चूंकि सिंधी समाज पूरी तरह से लामबंद हो गया था, इस कारण देवनानी की नैया पार लग गई, हालांकि उस वक्त कुछ जोर आया और वे कम अंतर से ही जीत पाए। फिर 2013 के विधानसभा चुनाव में देवनानी विरोधी गुट ने उन्हें टिकट न मिलने में पूरा जोर लगा दिया, मगर उसे कामयाबी हासिल नहीं हुई, चूंकि मोटे तौर पर सिटिंग एमएलए को ही टिकट देने का फैसला हुआ। जब टिकट में रोड़ा नहीं डाल पाए तो उन्हें हराने की पूरी तैयारी की गई। विरोधी गुट ने बाकायदा वार्ड वार निपटाने की तैयारी की। दूसरी ओर देवनानी ने भी उसी के अनुरूप रणनीति तैयार की। लग रहा था कि विरोधी गुट की वजह से देवनानी को जीतने में दिक्कत आएगी या फिर वोटों का अंतर कम रहेगा, मगर मोदी लहर चलने के कारण सारे अनुमान धराशायी हो गए। देवनानी बंपर वोटों से जीत गए। उनके मंत्री बनने के बाद तो विरोधियों के मुंह बिलकुल ही बंद हो गए। मगर अब जबकि एक बार फिर चुनाव सामने हैं तो विरोधी गुट फिर सक्रिय हो गया है। जाहिर सी बात है कि विभिन्न वार्डों में देवनानी ने जिन कार्यकर्ताओं के सहयोग से चुनाव जीता, वे उन्हें ही टिकट देना चाहेंगे, मगर विरोधी गुट के कार्यकर्ता भी बराबर की दावेदारी करते नजर रहे हैं। यदि उन्हें टिकट नहीं मिला तो अधिकृत प्रत्याशी को निपटाने में जुट सकते हैं। यानि कि देवनानी को टिकट वितरण में तनिक परेशानी पेश आएगी। देवनानी को एक दिक्कत ये भी आ सकती है कि हर वार्ड में जिन प्रमुख कार्यकर्ताओं का उन्होंने सहयोग लिया, वे सभी दावेदारी करेंगे। हर एक कहेगा, मैने ज्यादा काम किया था। उनमें से किसी एक का चयन करना कितना कठिन होगा, ये समझा जा सकता है। यानि कि टिकट से वंचित कार्यकर्ताओं को कहीं और समायोजित करने का गणित बैठाना होगा।
यहां ये समझा जा सकता है कि देवनानी विरोधी गुट को हवा देने में कुछ बड़े नेताओं का भी हाथ होगा ही।
बहरहाल, भाजपा में वार्ड स्तर पर होने वाली ये खींचतान पार्टी के लिए भी दिक्कत पैदा कर सकती है। असल में विधानसभा चुनाव में विरोधियों के निष्क्रिय रहने अथवा भीतरघात करने का असर मोदी लहर ने धो दिया, मगर अब तो मोदी है नहीं। केन्द्र व राज्य सरकारों का परफोरमेंस भी कुछ खास नहीं है। ऐसे में यदि पार्टी में गुटबाजी कायम रही तो अधिकृत प्रत्याशियों को जीतने में पसीने छूट जाएंगे।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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