मंगलवार, 25 अगस्त 2015

तब सामान्य वर्ग के नेता पीछे क्यों हट गए

अजमेर नगर निगम चुनाव में मेयर के सामान्य पद पर ओबीसी के धर्मेन्द्र गहलोत को चुने जाने के बाद एक ओर जहां पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेन्द्र सिंह षेखावत के प्रति हमदर्दी रखते हुए सामान्य वर्ग लामबंद हो रहा है, वहीं भाजपा के अंदरखाने गहलोत को चुने जाने को जायज बताया जा रहा है। कुछ पार्टी नेताओं का कहना है कि आज जो सामान्य वर्ग के हितों पर कुठाराघात का हल्ला मचाया जा रहा है, वह पूरी तरह से नाजायज है। पार्टी ने तो सामान्य वर्ग के नेताओं को ही प्राथमिकता देने के लिए पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष धर्मेष जैन, देहात जिला भाजपा अध्यक्ष व पूर्व षहर जिला भाजपा अध्यक्ष षिवषंकर हेडा जैसे दिग्गज नेताओं को चुनाव मैदान में उतारने का निर्णय किया था। स्वाभाविक रूप से गहलोत को छोड कर उनमें से ही मेयर बनाया जाता। मगर जहां जैन ने आरंभ में ही मना कर दिया, वहीं हेडा ने आखिरी वक्त में इंकार कर दिया। हेडा को चुनाव लडवाने के लिए तो बाकायदा सीट खाली की गई और नीरज जैन को वार्ड दो में प्रदीप हीरानंदानी का टिकट काट कर लडाने का निर्णय किया गया। जब खुद सामान्य वर्ग के नेता ही चुनाव लडने को तैयार नहीं हुए तो आज किस आधार पर सामान्य वर्ग गुस्सा खा रहा है। उन्हें षिक्षा राज्य मंत्री प्रो वासुदेव देवनानी को दोष देेने की बजाय सामान्य वर्ग के नेताओं को पकडना चाहिए, जो पीछे हट गए। उनके कपडे फाडने चाहिए जो सामान्य वर्ग के होते हुए भी सामान्य वर्ग के हितों की रक्षा नहीं कर पाए। पार्टी ने तो पहले सामान्य को ही मौका दिया था। अगर हेडा चुनाव लडते तो वे और केवल वे ही मेयर पद के दावेदार होते। मगर कदाचित हार के डर से वे पीछे हट गए। ऐसे में पार्टी के पास जो भी सर्वाधिक अनुभवी, योग्य और दमदार नेता था, उसे मेयर बना दिया गया। ऐसा तो हो नहीं सकता था कि सामान्य के नाम पर किसी भी सामान्य को मेयर बना दिया जाता। जाहिर तौर पर मेयर पद संभाल सकने वाले को ही मेयर बनाना था और उसके लिए गहलोत ही सर्वाधिक उपयुक्त थे। पार्टी के पार्षदों का बहुमत भी उनके साथ ही था।
कुछ का कहना है कि आज जो सुरेन्द्र सिंह पार्टी से बगावत कर कांग्रेस के सहयोग से मेयर बनना चाहते थे, उनका हक ही नहीं बनता था। वे और उनकी आका महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल तो अपने दक्षिण इलाके में पार्टी को जितवा ही नहीं पाए। ऐसे में उनका दावा तो वैसे ही कमजोर था। जाहिर तौर पर जब देवनानी अपने इलाके में ज्यादा सीटें लाए और पार्टी की साख बचाई, तो उनका ही हक बनता था कि मेयर के लिए व्यक्ति तय करें। उन्हें जो सर्वाधिक उपयुक्त लगा, उसे बनवा दिया।
डिप्टी मेयर पद पर भी ओबीसी के संपत सांखला को बनाए जाने के पीछे तर्क दिया जा रहा है। उनका कहना है कि डिप्टी मेयर पद के लिए कोई लॉटरी थोडे ही निकाली गई थी, जो सामान्य वर्ग इतना उबल रहा है। उन्हें तो अजमेर की दोनों सीटों में संतुलन बनाने के लिए बनाया गया, ताकि पार्टी एकजुट रहे। ऐसा राजनीति में किया ही जाता है। संभव है ऐसे ही संतुलन की खातिर सामान्य वर्ग के किसी नेता को एडीए का चेयरमेन बनाने पर विचार किया जाए। यदि ऐसा हुआ तो सामान्य वर्ग की मुहिम का क्या होगा।
बहरहाल, सामान्य वर्ग इस वक्त बेहद आहत है। सुरेन्द्र सिंह की अगुवाई में वह लामबंद भी हो रहा है। पुष्कर से तो बाकायदा संघर्ष का आगाज कर दिया गया है। अब देखना ये है कि सामान्य वर्ग कितने समय तक अपनी आग को बचाए रख पाता है। कहीं वह सामान्य वर्ग के किसी नेता को एडीए का चेयरमेन बनाए जाने पर बिखर तो नहीं जाएगा। विचारणीय यह भी है कि सुरेन्द्र सिंह क्या तीन साल तक आग को बचाए रखने में कामयाब होंगे, ताकि अजमेर उत्तर की सीट पर दोनों दलों की ओर से सिंधी को ही टिकट दिए जाने पर सामान्य वर्ग के दम पर चुनाव जीत सकें।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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