रविवार, 13 मार्च 2016

विजय जैन का अंदाज-ए-आगाज तो बेहतर है

शहर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष पद से नवाजे गए विजय जैन का अंदाज-ए-आगाज तो बेहतर है। हालांकि वे कितने सफल होंगे, ये तो वक्त की मांद में छिपा हुआ है, मगर जैसी शुरुआत है, उससे लगता है कि वे सब को साथ लेकर चलने कामयाब हो सकते हैं। चाहे नई कार्यकारिणी में स्थान पाने के लिए या फिर प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के प्रभाव की वजह से अधिसंख्य बड़े व छोटे नेता एक मंच पर दिखाई देने लगे हैं। इसका श्रेय जैन को भी दिया जा सकता है, जो कि कूल मांइडेड हैं और सब पुराने नेताओं का पूरा सम्मान कर रहे हैं। ये कम बात नहीं है कि एक ओर जहां मीडिया अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट को विवाद बना कर तूल दे रहा है, वहीं सचिन की पसंद से बनाए गए जैन की ओर से आहूत बैठकों व कार्यक्रमों में गहलोत गुट के माने जाने वाले भी खुल कर शिरकत कर रहे हैं। कुल मिला कर मृतप्राय: सी कांग्रेस में जान आई है। कार्यकर्ताओं को लगता है कि अब नई टीम संगठन को सक्रिय करके अपना जनाधार बढ़ाएगी। हर परिवर्तन के साथ नई ऊर्जा का संचार होता है, मगर सच ये है कि जिस उम्मीद में जैन को अध्यक्ष बनाया गया है, वह बेहद चुनौतीपूर्ण है।
जाहिर तौर पर जैन के ऊपर सबसे बड़ा दायित्व निष्क्रिय हो चुकी कांग्रेस में जान फूंकने के साथ आगामी विधानसभा चुनाव में अच्छा परफोरमेंस दिखाना है। वह भी तब जब कि लगातार तीन विधानसभा चुनावों में कांग्रेस शहर की दोनों सीटें भाजपा से हारी है। हालांकि कुछ कारणों के चलते पिछले नगर निगम चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बेहतर रहा है, जिससे पता लगा कि धरातल पर कांग्रेस जिंदा है, मगर अगर आज भी संगठन तो छिन्न-भिन्न सा ही है। बेशक मौजूदा सरकार का परफोरमेंस कुछ खास न होने के कारण कांग्रेस को उम्मीद है कि अगली सरकार उसी की होगी, मगर अकेले इसी उम्मीद के चलते कोई लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकेगा।
सबको याद है कि मौजूदा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व केन्द्रीय राज्य मंत्री सचिन पायलट ने स्थानीय सांसद होने के नाते खूब काम करवाए, मगर परिणाम सिफर ही रहा। हालांकि इसकी वजह मोदी लहर को माना जा सकता है, मगर सच्चाई ये है कि अनेक गुटों में बंटे कांग्रेसी अपनी ही पार्टी की जड़ें खोद रहे थे। नतीजतन पायलट की ओर से कराए गए काम अस्तित्व में होते हुए भी जनता को नजर नहीं आए।
आज भी कमोबेश कांग्रेस संगठन के वही हालात हैं। वो के वो ही नेता और वो के वो ही कार्यकर्ता। गुटों में बंटे हुए कार्यकर्ताओं को एकजुट करना जैन के लिए एक बड़ी समस्या है। बेशक उनके इर्दगिर्द इस वक्त कार्यकर्ताओं का हुजूम नजर आता है, मगर सच ये है कि उनमें से अधिसंख्य वे हैं, जो संगठन में पद पाना चाहते हैं। एक बार कार्यकारिणी घोषित हो जाने के बाद कई छिटक सकते हैं। ऐसे में जैन को ऐसी कार्यकारिणी बनानी होगी, जिसके जरिए सभी गुटों को उनके वजूद के मुताबिक प्रतिनिधित्व मिले। इसके अतिरिक्त बूथ और वार्ड स्तर पर निष्क्रिय पदाधिकारियों को हटा कर नए ऊर्जावान कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी देनी होगी। यही सही है कि चुनाव के वक्त कई फैक्टर काम करते हैं, राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय मुद्दे प्रभावी होते हैं, मगर जब तक स्थानीय स्तर पर चुनाव लडऩे वाली कार्यकर्ताओं की सेना सुव्यवस्थित नहीं होती, मुकाबला करना बेहद कठिन होता है। अब देखना ये है कि कार्यकारिणी बनाते वक्त जैन कितनी सूझबूझ और चतुराई दिखाते हुए सभी को जोड़ कर रख पाते हैं।
रहा सवाल स्वयं जैन का तो उन्हें भी स्थापित होना होगा। अब तक वे ब्लॉक अध्यक्ष रहे और उन पर शहर स्तर की सोच का कोई दायित्व नहीं रहा। सीधे ब्लॉक से शहर स्तर पर देश की सबसे बड़ी पार्टी की शहर जिला इकाई का दायित्व आया है। उसी के अनुरूप सोच, उसी अंदाज की बॉडी लैंग्वेज और उसी के अनुसार गंभीरता दिखानी होगी। हाशिये पर जा चुके पुराने नेताओं का मार्गदर्शन लेना होगा। जैन के पक्ष में एक पहलु ये भी है कि उनसे व्यक्तिगत रूप से जुड़े कार्यकर्ता ऊर्जावान हैं, साथ ही पूर्व शहर जिला युवक कांग्रेस के अध्यक्ष गुलाम मुस्तफा व भूपेन्द्र सिंह राठौड़ सरीखे नेता भी लंबे अरसे बाद यकायक सक्रिय हुए हैं और सुकेश कांकरिया, बिपिन बेसिल, मुजफ्फर भारती सरीखे कंधे से कंधा लगा कर खड़े हैं, मगर इतने मात्र से कुछ नहीं होगा, इस फौज को बढ़ाना होगा। खैर, देखते हैं क्या होता है।
-तेजवानी गिरधर
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