शनिवार, 19 मार्च 2016

चंद व्यापारियों को रास नहीं आ रही मदारगेट की सुधरी यातायात व्यवस्था

मदारगेट बाजार में चौपहिया वाहनों पर रोक के बाद सुधरी यातायात व्यवस्था चंद व्यापारियों को रास नहीं आ रही। उन्हें सिर्फ और सिर्फ अपना व्यापार ही सूझ रहा है, पूरे शहर के नागरिक भले ही तकलीफ पाएं।....
व्यापारियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने पिछले दिनों जिला कलेक्टर आरुषि मलिक को ज्ञापन देकर नई व्यवस्था पर ऐतराज जताया है। असल में ऐतराज चंद व्यापारियों को ही है, जिनके बड़े शो रूम हैं, जहां खरीददारी को आने वाले चौपहिया वाहनों पर आते हैं। बाकी के छोटे दुकानदारों को तो उलटा सुविधा है, क्योंकि पैदल व मोटरबाइक-स्कूटर आदि पर आने वाले अब सुगमता से आ-जा रहे हैं। आम जनता को तो बहुत ही सुविधा है। देखिए, व्यापारियों का तर्क- पूरे शहर में से सिर्फ मदार गेट बाजार में ही चौपहिया वाहनों के प्रवेश पर रोक क्यों लगाई गई है? क्या प्रशासन का कोई अधिकारी मदारगेट के व्यापारियों से द्वेषता रखता है? सवाल ये उठता है कि क्या वाकई इतनी अंधेरगर्दी है कि कोई अधिकारी मदारगेट के व्यापारियों से द्वेष रखे और द्वेषता रखते हुए चौपाहिया वाहनों पर रोक लगा दे? क्या ये इतना आसान है? व्यापारियों की तकलीफ देखिए, वे कहते हैं कि केवल मदारगेट बाजार में ही चौपहिया वाहनों पर रोक क्यों लगाई गई है, अर्थात अगर अन्य बाजारों में भी चौपहिया वाहनों पर रोक लगा दी जाए तो वे शांत हो जाएंगे। बेशक अन्य बाजार भी भीड़ भरे हैं, उनमें भी जरूरत के मुताबिक चौपहिया वाहनों के प्रवेश पर रोक लगाई जा सकती है, लगाई जानी चाहिए, कुछ में है भी, मगर सोचने वाली बात ये है कि क्या मदारगेट सर्वाधिक भीड़ भरा नहीं है, जिसमें चौपहिया वाहन प्रवेश करने पर बार-बार जाम लग जाता है। मदारगेट बाजार की तुलना अन्य बाजारों से कैसे की जा सकती है?
व्यापारियों का कहना है कि तीन माह पहले जब चौपहिया वाहनों पर रोक लगाई गई थी, तब प्रशासन की ओर से कहा गया था कि यह प्रयोग के तौर पर है, यदि आम सहमति बनी तो फिर शहर के सभी भीड़ वाले बाजारों में चौपहिया वाहनों के आवागमन पर रोक लगाई जाएगी। सवाल ये उठता है कि यदि प्रयोग सफल हो गया है तो उसे जारी क्यों नहीं किया जाना चाहिए? बेशक यह प्रयोग अन्य जरूरत वाले बाजारों में भी किया जाना चाहिए। व्यापारियों की तकलीफ ये है कि नई व्यवस्था लागू करने से पहले उनसे सहमति क्यों नहीं ली गई, तो सवाल ये उठता है कि इसमें उनकी सहमति की जरूरत क्या है? उनका तर्क तो ऐसा है कि अगर वे सहमत नहीं हैं तो प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा रहेगा। यातायात व्यवस्था को सुधारने की कोई कोशिश नहीं करेगा। हद हो गई। क्या इसका भी जवाब किसी के पास है कि जब कुछ व्यापारी अपनी दुकानों के आगे अस्थाई अतिक्रमण करते हैं तो क्या प्रशासन से मंजूरी लेते हैं?
हां, दुकानदारों की इस बात में जरूर दम है कि वायदे के मुताबिक मदारगेट बाजार के आसपास वाहन पार्किंग की सुविधा भी उपलब्ध नहीं करवाई गई है। प्रशासन को इस बारे में जल्द से जल्द ही फैसला लेना चाहिए।
बहरहाल कलेक्टर के कहने पर व्यापरियों की बात अतिरिक्त कलेक्टर (प्रशासन) किशोर कुमार ने भी सुनी और उन्होंने कहा है कि अब जब भी जिला यातायात सलाहकार समिति की बैठक हो तो मदारगेट के व्यापारी भी बैठक में आ जाएं, ताकिनगर निगम, पुलिस आदि सभी विभागों के अधिकारियों की मौजूदगी में व्यापारियों को सभी सवालों के जवाब मिल जाएंगे।

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