अजमेर नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत उर्फ लाला बन्ना आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेंगे ही। इसकी घोषणा स्वयं उन्होंने की है। हालांकि यह घोषणा जवाहर रंगमंच पर हुए फागुन समारोह में हास्य-व्यंग्य के दौरान की, जिसे कायदे से बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए, मगर जिस शिद्दत के साथ उन्होंने एक सवाल में आगामी 2018 के विधानसभा चुनाव में डंका बजाने का ऐलान किया, उस पर यकीन करना ही होगा। उनकी शब्दावली और बॉडी लैंग्वेज साफ तौर पर यह जाहिर कर रही थी कि नगर निगम चुनाव के दौरान मेयर पद का चुनाव उन्होंने जिस तरह से हारा, उसकी आग उनमें अब भी कायम है। उन्हें सिर्फ वक्त का इंतजार है, अभी भले ही चुप बैठे हों।
असल में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भी गंभीर दावेदार थे। इस वजह से हर अजमेर वासी के मन में यह सवाल है कि मेयर पद का चुनाव हारने और भाजपा से बाहर हो जाने के बाद वे क्या करने वाले हैं? इसी से जुड़े सवाल ये भी हैं कि क्या वे फिर से भाजपा में आएंगे या फिर कांग्रेस टिकट लेने की कोशिश करेंगे? क्या इन दोनों का टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय मैदान में उतरेंगे? जाहिर तौर पर ये सवाल भविष्य के गर्भ में छिपे हुए हैं, मगर इतना तय माना जा रहा है कि वे यूं ही चुप बैठ जाने वाले नहीं हैं। गैर सिंधीवाद की मुहिम से जुड़े लोग भी उन्हें चुप नहीं बैठने देने वाले। इसी कड़ी में भाजपा पार्षद ज्ञानचंद सारस्वत का नाम भी चर्चा में रहा है, मगर लाला बन्ना एक आइकन के रूप में उभर चुके हैं। उनकी अच्छी फेन फॉलोइंग भी है। फागुन समारोह में उन्होंने जब घोषणा कर ही दी है तो जाहिर तौर पर उनके पास इसका रोड मैप भी तैयार होगा ही। देखते हैं 2018 में क्या होता है? क्या अजमेर का यह उभरता हुआ सितारा उस चुनाव में अजमेर के राजनीतिक आसमान में चमकता है या फिर उनकी गणित मेयर चुनाव की तरह गड़बड़ा जाती है?
-तेजवानी गिरधर
7742067000
8094767000
असल में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भी गंभीर दावेदार थे। इस वजह से हर अजमेर वासी के मन में यह सवाल है कि मेयर पद का चुनाव हारने और भाजपा से बाहर हो जाने के बाद वे क्या करने वाले हैं? इसी से जुड़े सवाल ये भी हैं कि क्या वे फिर से भाजपा में आएंगे या फिर कांग्रेस टिकट लेने की कोशिश करेंगे? क्या इन दोनों का टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय मैदान में उतरेंगे? जाहिर तौर पर ये सवाल भविष्य के गर्भ में छिपे हुए हैं, मगर इतना तय माना जा रहा है कि वे यूं ही चुप बैठ जाने वाले नहीं हैं। गैर सिंधीवाद की मुहिम से जुड़े लोग भी उन्हें चुप नहीं बैठने देने वाले। इसी कड़ी में भाजपा पार्षद ज्ञानचंद सारस्वत का नाम भी चर्चा में रहा है, मगर लाला बन्ना एक आइकन के रूप में उभर चुके हैं। उनकी अच्छी फेन फॉलोइंग भी है। फागुन समारोह में उन्होंने जब घोषणा कर ही दी है तो जाहिर तौर पर उनके पास इसका रोड मैप भी तैयार होगा ही। देखते हैं 2018 में क्या होता है? क्या अजमेर का यह उभरता हुआ सितारा उस चुनाव में अजमेर के राजनीतिक आसमान में चमकता है या फिर उनकी गणित मेयर चुनाव की तरह गड़बड़ा जाती है?
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