मंगलवार, 5 जुलाई 2016

कुशल मैनेजर निकले सी. आर. चौधरी

केन्द्रीय मंत्रीमंडल में राज्यमंत्री के रूप में शुमार नागौर के सांसद सी. आर. चौधरी ने यह साबित कर दिया है कि वे एक कुशल मैनेजर हैं। उन्होंने मौका लगते ही केन्द्र सरकार में स्थान बना लिया।
असल में चौधरी मौलिक रूप से राजनीतिज्ञ नहीं हैं। वे प्रशासनिक सेवा के अफसर रहे हैं। और प्रशासनिक अफसरों को पता होता है कि सत्ता तो बदलती रहती है, इस कारण सभी राजनीतिक दलों में घुसपैठ बनाए रखते हैं। जब जिसकी सरकार, तब उस दल के आका से ट्यूनिंग। और बेहतर यही होता है कि अगर ढंग के पद पर रहना है तो जिसका राज, उसके पूत बन कर रहो।
हालांकि चौधरी जब तक सरकारी सेवा में रहे, तब उनकी अपनी कार्यशैली की वजह से पहचान रही। एक कुशल प्रशासक के उनमें सभी गुण हैं। अजमेर में सिटी मजिस्ट्रेट पद पर रहते उनके संपर्क में आए लोग जानते हैं कि वे कितने ठंडे दिमाग से उग्र से उग्र आंदोलनकारियों को कैसे मीठी गोली देते थे। इसमें कोई दो राय नहीं कि चौधरी की कार्यकुशलता की वजह से उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान लोक सेवा आयोग का सदस्य बनाया था, मगर इस सच को भी नहीं नकारा जा सकता कि इसके पीछे जाट समुदाय को खुश करने की भी नीति रही। यही वजह रही कि उनका झुकाव कांग्रेस की ओर माना जाने लगा। इसे वे भलीभांति जानते थे, इस कारण जैसे ही भाजपा की सरकार आई तो मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की नजदीकी हासिल करने की कोशिश की। भाजपा भी चाहती थी कि जाट बहुल नागौर जिले के किसी शख्सियत को आगे बढ़ाया जाए, ताकि उसके माध्यम से कांग्रेस विचारधारा के रहे जाटों में पैठ बनाई जा सके। इसी के तहत उन्हें वसुंधरा राजे ने उन्हें राजस्थान लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष बनाया। यानि के चौधरी ने बड़ी चतुराई से अपने जाट होने का फायदा उठाया। यह कम चतुराई नहीं कहलाएगी कि सरकारी पद से सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने राजनीति का रुख कर लिया और मिर्धा परिवार के दबदबे वाले नागौर जिले से भाजपा का टिकट हासिल कर लिया। आकर्षक व्यक्तित्व, जातीय लामबंदी और मोदी लहर के दम पर वे जीत भी गए। जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहला मंत्रीमंडल बनाया तो आयोग अध्यक्ष जैसे पद रहे योग्य प्रशासक के नाते उसमें प्रवेश की कोशिश की, मगर धरातल पर प्रो. सांवरलाल जाट की पकड़ मजबूत होने के कारण उन्हें कामयाबी हासिल नहीं हुई। चूंकि प्रो. जाट को राज्य का केबीनेट मंत्री रहते लोकसभा चुनाव लड़ाया गया और उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज सचिन पायलट को हराया तो जाट समुदाय से पहला हक उनका ही था। खैर, अब जब कि स्वास्थ्य कारणों से प्रो. जाट को हटाया गया तो चौधरी ने तुरंत उनकी जगह हासिल करने का जुगाड़ कर लिया। वे सुलझे विचारों के नेता हैं, ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि वे अपनी कार्यशैली से मोदी का दिल जीत लेंगे। हालांकि उनका रुझान अपने गृह जिले नागौर की ओर ज्यादा रहेगा, मगर उम्मीद की जाती है कि नागौर के अजमेर संभाग में होने के कारण अजमेर का भी ख्याल रखेंगे। यूं भी काफी समय अजमेर में बिताने के कारण अजमेर के प्रति उनका विशेष रहा है।
-तेजवानी गिरधर
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