गुरुवार, 21 जुलाई 2016

जाट किसी की कृपा से नहीं, अपने दमखम से नेता बने हैं

भाजपा के बूथ स्तरीय सम्मेलन में जिस प्रकार निवर्तमान केन्द्रीय जलदाय राज्य मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट के समर्थकों ने हंगामा किया, वो इस बात का पक्का सबूत है कि प्रो. जाट भाजपा में किसी की कृपा से नेता नहीं बने हैं, बल्कि अपने दमखम और जनाधार की वजह से मंत्री स्तर पर पहुंचे थे। प्रो. जाट के समर्थकों ने जैसा हंगामा किया, वह भाजपा और संघ की अनुशासन प्रिय रीति-नीति से कत्तई मेल नहीं खाता, फिर भी अगर प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र सिंह राठौड़ को कहना पड़े कि जाट भाजपा के सम्मानित नेता हैं, उन जैसे नेताओं के कारण ही भाजपा सत्ता में है तो समझा जा सकता है कि कथित रूप से बीमारी के कारण से प्रो. जाट को मंत्रीमंडल से हटाए जाने के बाद राज्य की भाजपा इकाई और मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे को कैसे सांप सूंघा हुआ है। कदाचित इसी वजह से ये खबरें आईं हैं कि प्रो. जाट के सम्मान को बरकरार रखने के लिए किसी आयोग में मंत्री के समकक्ष अध्यक्ष सौंपने पर विचार किया जा रहा है।
प्रो. जाट की जमीन पर कितनी पकड़ है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके समर्थक अजमेर में होने वाले राज्य स्तरीय स्वतंत्रता दिवस समारोह के बहिष्कार की धमकी देने की जुर्रत कर रहे हैं। यह कोई छोटी मोटी बात नहीं। यह जातीय एकजुटता का प्रमाण है, जिसके आगे हर राजनीतिक दल को झुकना ही होता है। प्रो. जाट केवल भाजपा के दम पर नहीं हैं, बल्कि उनकी अपने समर्थकों की लंबी चौड़ी फौज है, जो कि प्रो. जाट के केन्द्र व राज्य में मंत्री रहते उपकृत हो चुकी है। हालांकि संघ ने उन्हें कभी पसंद नहीं किया, मगर वे इसी कारण भाजपा में अपना वजूद रखते हैं, क्योंकि वे अपने दम पर ही परंपरागत रूप से कांग्रेस विचारधारा के रहे जाट समुदाय को भाजपा में लेकर आए। मेरी नजर में अजमेर में वे एक मात्र ऐसे नेता हैं, जो इस प्रकार हाईकमान से आंख से आंख मिला कर बात कर सकते हैं, वरना बाकी के तो मात्र पार्टी टिकट की वजह से जीतते हैं और मंत्री भी मुख्यमंत्री की कृपा से ही बनते हैं। उनके साथ वसु मैडम किस अंदाज में बात करती हैं, ये या तो वसु मैडम ही जानती हैं, या फिर वे खुद अथवा वहां मौजूद चंद व्यक्ति।
वस्तुत: पिछले परिसीमन के बाद अजमेर लोकसभा क्षेत्र जाट बहुल हो गया है। चूंकि भाजपा के पास प्रो. जाट से ज्यादा ताकतवर जाट नेता नहीं था, इसी कारण पिछले लोकसभा चुनाव में उनको मैदान में उतारा और वह प्रयोग सफल रहा। हालांकि उनकी राज्य में जलदाय मंत्री पद छोड़ कर केन्द्र में जाने की कत्तई इच्छा नहीं थी, मगर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और भाजपा हाईकमान के दबाव में पार्टी हित के कारण चुनाव लडऩा पड़ा। जीतने के बाद उन्हें केन्द्र में राज्य मंत्री के पद से नवाजा गया, मगर दो साल पूरे होते ही स्वास्थ्य कारणों के चलते हटाया गया है तो स्वाभाविक रूप से प्रो. जाट के समर्थक नाराज हैं। यही वजह है कि राज्य की भाजपा इकाई को चिंता सता रही है कि प्रो. जाट को कैसे राजी किया जाए। राज्य में एक विभाग का केबीनेट मंत्री पद भले चंगे संभाल रहे नेता को उसकी इच्छा के विपरीत केन्द्र में भेजा गया और दो साल में अदद सांसद की हैसियत में ला कर खड़ा कर दिया गया तो वसुंधरा पर भी अब ये दबाव है कि वे उन्हें कहीं ने कहीं एडजस्ट करें।
-तेजवानी गिरधर
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