बुधवार, 27 जुलाई 2016

डॉ. बाहेती की अब भी सक्रियता के मायने?

लगातार दो बार विधानसभा चुनाव हारने के बाद हालांकि पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को तीसरी बार भी अजमेर उत्तर से टिकट मिलने की संभावना न्यून है, बावजूद इसके उनकी लगातार सक्रियता जाहिर करती है कि उनमें कांग्रेस के प्रति काम करने का जज्बा अब भी मौजूद है। यूं चुनावी राजनीति में कोई फार्मूला अंतिम नहीं होता। रामबाबू शुभम को लगातार दो बार हारने के बाद भी तीसरी बार टिकट दिया गया, तो भला डॉ. बाहेती हताश क्यों हों? मगर अजमेर उत्तर का मसला अलग है। यदि इस सीट को लेकर सिंधी-गैर सिंधी का विवाद नहीं होता तो डॉ. बाहेती तीसरी बार भी उम्मीद कर सकते थे, क्योंकि कांग्रेस के पास उनसे बढिय़ा गैर सिंधी चेहरा नहीं है। लेकिन उनके लगातार दो बार हारने की वजह ही सिंधी-गैर सिंधीवाद रहा, इस कारण समझा यही जाता है कि इस बार कांग्रेस फिर किसी गैर सिंधी को टिकट देने की गलती नहीं करेगी। ऐसे में डॉ. बाहेती के लिए उम्मीद कम ही है। हां, वे फिर पुष्कर कर रुख कर सकते हैं, जहां से वे एक बार विधायक रहे हैं, मगर वहां उनके ही शागिर्द इंसाफ अली की पत्नी नसीम अख्तर इंसाफ एक बार विधायक और राज्य मंत्री बनने के बाद मैदान पर लगातार डटी हुई हैं। उनको टिकट सिर्फ उसी परिस्थिति में नहीं मिलेगा, अगर कांग्रेस ने मसूदा से किसी मुस्लिम को टिकट दे दिया।
बहरहाल, डॉ. बाहेती की सक्रियता की एक वजह ये भी हो सकती है कि उनके आका पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की लॉबी अब भी मैदान में खम ठोक कर खड़ी है, तो भला डॉ. बाहेती निराश क्यों हों? राजनीति में संभावनाओं की सीमा कहीं समाप्त नहीं होती। अगर अशोक गहलोत प्रभाव में रहे और सरकार कांग्रेस की बनी तो अपने कृपापात्र को भूलेंगे थोड़े ही।
ज्ञातव्य है कि शहर कांग्रेस अध्यक्ष विजय जैन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की पसंद से बने हैं। स्वाभाविक रूप से पायलट लॉबी का दबदबा है। फिर भी डॉ. बाहेती कांग्रेस के हर कार्यक्रम में मौजूद रहते हैं। चूंकि अजमेर में वे ही मिनी गहलोत हैं, इस कारण उनकी सक्रियता से गहलोत समर्थकों में भी जोश बरकरार है। यूं भले ही सभी कांग्रेसी एकजुट दिखाने का प्रयास करते हैं, मगर सोशल मीडिया पर उनके बीच की दीवारें साफ देखी जा सकती हैं। अशोक गहलोत के नाम से बने फेसबुक अकाउंट्स पर उनकी तारीफों के पुल बांधने वाले कई समर्थक हर वक्त डटे रहते हैं।
खैर, कुल मिला कर डॉ. बाहेती की सक्रियता खास मायने रखती है। वह कांग्रेस और भाजपा की कल्चर में अंतर की ओर भी इशारा करती है। ये कांग्रेस ही है, जहां व्यक्ति भी कुछ मायने रखता है, वरना भाजपा में देखिए, पांच बार सांसद रहे प्रो. रासासिंह रावत, पूर्व राज्य मंत्री श्रीकिशन सोनगरा, पूर्व विधायक नवलराय बच्चानी और हरीश झामनानी सरीखों की क्या कद्र है? एक ओर जहां रावत व सोनगरा के पुत्रों को संगठन में स्थान दे कर संतुष्ट किया गया है, वहीं झामनानी व बच्चानी सामाजिक कार्यों में सक्रिय रह कर अपना वजूद बचाए हुए हैं। हालांकि उनका उपयोग चुनाव के वक्त तो किया जाता है, लेकिन बाद में उनकी कोई खास पूछ नहीं होती। ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि कांग्रेस अमूमन व्यक्तित्व पर दाव खेलती है, जबकि भाजपा व्यक्ति पर। इस कारण जैसे ही व्यक्ति पर से पार्टी का साया हटता है, वह फिर से व्यक्ति बन जाता है। शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी और महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल भाजपा द्वारा व्यक्तियों पर हाथ रखने का सटीक उदाहरण है, जिनकी चवन्नी अभी रुपए में चल रही है। आगे की भगवान जाने।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
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