शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

हरफनमौला पत्रकार हैं राजेन्द्र याज्ञिक

तीर्थराज पुष्कर की सौंधी खुशबू में उपजे दैनिक नवज्योति के वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र याज्ञिक 27 साल की नौकरी के बाद सेवानिवृत्त हो गए। उल्लेखनीय बात ये कि उनकी पूरी पत्रकारिता बेदाग रही। कभी किसी विवाद में नहीं फंसे। मेरे साथ उन्होंने आधुनिक राजस्थान में काम किया। उसके बाद नवज्योति चले गए। उस जमाने में दैनिक नवज्योति में काम करना बहुत प्रतिष्ठापूर्ण माना जाता था। हर पत्रकार का सपना होता था कि वह नवज्योति में प्रवेश करे। अजमेर से राजस्थान पत्रिका और दैनिक भास्कर के संस्करण प्रकाशित होने के बाद विकल्प बढ़ गए। खैर, जिस समय उन्होंने दैनिक नवज्योति में प्रवेश किया, उस वक्त बड़ी जांच परख कर रखा जाता था। यूं अजमेर में अच्छे पत्रकारों जननी के रूप में दैनिक न्याय प्रतिष्ठित है, मगर यहां की पत्रकारिता को दिशा देने में दैनिक नवज्योति का अहम स्थान है।
खुशमिजाज याज्ञिक ठंडे दिमाग के मालिक हैं, इस कारण उनका कभी किसी से विवाद नहीं रहा। गुस्से में तो मैने उन्हें कभी देखा ही नहीं। न तो वे कभी किसी प्रपंच में फंसे, न ही पत्रकारों की राजनीति में उलझे। उनमें कितनी ऊर्जा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे जब पुष्कर में रहते थे, तब सुबह अजमेर आ जाते और देर रात लौटते। असल में उन्होंने पत्रकारिता का बहुत डूब कर आनंद लिया है। यदि ये कहा जाए कि पत्रकारिता को उन्होंने महज नौकरी न मान कर जीवन समझ कर जिया है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। विशेष बात ये है कि अन्य विभागों के साथ उन्होंने लंबे समय तक क्राइम रिपोर्टिंग भी जम कर की है। जबकि बहुधा ऐसा होता है कि क्राइम रिपोर्टर टाइप्ड हो जाता है। उनके पास जो भी विभाग बीट के रूप में था, उसकी उन्होंने पूरी मास्टरी की। क्या मजाल कि विभाग में पत्ता भी हिले और उन्हें पता न लगे। उन्होंने कई खबरें ऐसी भी लिखीं, जिसकी तह तक जाना किसी और पत्रकार के लिए संभव नहीं था। सीआईडी की खबरों पर भी उनकी सबसे ज्यादा पकड़ रही। सांस्कृतिक खबरें भी बहुत रोचक ढंग से लिखीं। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि वे अजमेर के पहले ऐसे पत्रकार हैं, जिनकी दरगाह से जुड़े मसलों पर जबरदस्त पकड़ रही है। हालांकि उनके बाद दैनिक भास्कर के चीफ रिपोर्टर सुरेश कासलीवाल ने भी अपनी पकड़ साबित की है।
याज्ञिक अजमेर जिले के संभवत: ऐसे पहले पत्रकार हैं, जिनको उत्कृष्ठ पत्रकारिता के लिए जिला प्रशासन ने सबसे पहले सम्मानित किया। उस सम्मान का महत्व इस वजह से माना जा सकता है, क्योंकि वह खालिस योग्यता के आधार पर दिया गया। आपसी प्रतिस्पद्र्धा के चलते अन्य समाचार पत्रों के पत्रकारों ने ऐतराज किया तो उसके बाद प्रशासन ने पत्रकारों की राजनीति से बचने के लिए किसी भी पत्रकार को स्वाधीनता दिवस व गणतंत्र दिवस पर सम्मानित करने पर अघोषित रोक ही लगा दी। उनके सम्मान के बाद तकरीबन 20 साल तक किसी भी पत्रकार को सम्मानित नहीं किया गया। बाद में यह परंपरा तब टूटी, जब मेरा नंबर आया, हालांकि उसमें पेच ये रहा कि मुझे पत्रकारिता के लिए नहीं, बल्कि अजमेर एट ए ग्लांस पुस्तक के लिए सम्मानित किया गया। तत्कालीन कलैक्टर मंजू राजपाल पहले तो केवल इसी कारण सम्मानित करने को तैयार नहीं थीं कि मैं पत्रकार हूं। जब उनको अधीनस्थ अधिकारियों ने समझाया कि मेरा प्रस्ताव अजमेर के इतिहास पर पुस्तक लिखने की उपलब्धि की वजह से है, तब जा क
र वे राजी हुईं। खैर, उसके बाद तो पत्रकारों को सम्मानित करने का सिलसिला शुरू हो गया है। अब तो हालत ये है कि तीनों बड़े समाचार पत्रों को संतुष्ट करने के लिए हर एक के किसी एक पत्रकार को सम्मानित किया जाने लगा है।
बहरहाल, जैसा कि दैनिक नवज्योति के स्थानीय संपादक ओम माथुर ने अपने आलेख में लिखा है कि सेवानिवृत्ति के बाद भी पत्रकारिता में उनके जलवे हम देखते रहेंगे, अजमेर वासियों के लिए सुखद बात है। मैं उनकी लेखनी अनवरत जारी रहने और लंबी उम्र की कामना करता हूं।
-तेजवानी गिरधर
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