बुधवार, 27 जुलाई 2016

अपनी सरकार रहते मुंह खोलने के लिए धर्मेश जैन जैसा जिगर चाहिए

तत्कालीन नगर सुधार न्यास (यूआईटी) अजमेर के अध्यक्ष रहे धर्मेश जैन ने अपनी ही सरकार के मनोनीत एडीए अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा के फैसलों पर सवाल उठा कर सबको चौंका दिया है। उनके सवाल में जितना दम है, उससे कहीं अधिक दम है उनके अपनी ही सरकार के खिलाफ बोलने की हिम्मत दिखाने में। जिस सवाल को उठाने की अपेक्षा कांग्रेस से थी, उसे अगर कोई प्रतिष्ठित और सूझबूझ वाला भाजपा नेता उठाएगा तो जाहिर है उसमें कुछ तो माद्दा होगा ही। यहां यह चुटकी लेने का मन हो रहा है कि कोई अजमेर का जाया होता तो शायद नहीं बोलता, मगर चूंकि जैन मेवाड़ और महाराणा प्रताप की धरती के जाये हैं, इस कारण इतनी हिम्मत दिखा रहे हैं। वरना इलायची बाई की गद्दी के विख्यात अजमेर वालों का मिजाज कैसा है, सब जानते हैं।
ज्ञातव्य है कि जैन ने एडीए की दीपक नगर योजना को डिनोटिफाइड करने के हेड़ा के फैसले को गलत बताते हुए कहा कि अफसर हेड़ा को गुमराह कर रहे हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने ये तक कहा कि डिनोटिफाइड होने में अधिकारी नियमन के नाम पर भ्रष्टाचार का उद्योग चलाते हैं। यदि किसी का नियमन करना है तो कर दो। उनके कार्यकाल में भी इस योजना के डिनोटिफाइड करने का अधिकारियों ने प्लान बनाया था। एक भूखंड के नियमन के लिए 10 आईएएस अधिकारियों के फोन आए लेकिन उन्होंने उनके मंसूबे कामयाब नहीं होने दिए। जो अधिकारी इसे डिनोटिफाइड करवाना चाहते हैं, उनका खुद का स्वार्थ है। उनकी खुद की इस योजना में जमीनें तथा बंगले हैं। योजना के डिनोटिफाइड होने से अजमेर-जयपुर सड़क को सिक्सलेन करने में बाधा आएगी और इसके लिए जमीन कैसे अवाप्त होगी। जैन ने कहा कि वे एडीए अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा पर वे कोई आरोप नहीं लगा रहे हैं, लेकिन योजना समाप्त होने के कारणों की जांच होनी चाहिए। उन अफसरों को भी चिह्नित किया जाना चाहिए, जिनकी इस क्षेत्र में जमीन हैं।
समझा जा सकता है कि जैन की दलील में कितना दम है। इतनी बारीकी से एडीए बाबत बात करने वाले संभवत: जैन इकलौते नेता हैं, जिन्होंने पद पर रहते हुए और न रहते हुए भी गहराई से अध्ययन किया है। अब ये सरकार को देखना है कि वह अपने ही नेता की ओर से उठाए गए भ्रष्टाचार के मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है।
जैन को इस बात का भी बहुत दु:ख है कि महाराणा प्रताप स्मारक पर हो रहे काम के बारे में उनसे राय ही नहीं ली गई। उल्लेखनीय है कि यह स्मारक बनाने का निर्णय और शिलान्यास जैन के कार्यकाल में हुआ था, मगर एक फर्जी सीडी सामने आने के चक्कर में उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा था। बाद में वह सीडी फर्जी भी साबित हो गई। उनका ऐतराज है कि स्मारक के शिलान्यास का पत्थर हटा दिया गया है। स्मारक के अंदर की सड़क बना दी है। दर्शक दीर्घा का पता नहीं है। पार्किंग की जगह ठीक नहीं है।
हालांकि जैन के मुंह खोलने के समय को लेकर मीडिया ने यह सवाल उठाया कि दोनों मामलों में उन्होंने तुरंत राय क्यों जाहिर नहीं की। मीडिया मानता है कि चूंकि उनके बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के दूसरे दिन अजमेर में पांच मंत्री आने वाले थे और वे चाहते थे कि यह गरमागरम मामला मुख्यमंत्री तक पहुंच जाए। कदाचित ये सही भी हो, मगर जैन ने जो सवाल उठाया है, उसका जवाब इतना नहीं होता, जो कि हेड़ा ने दिया है:- दीपक नगर योजना 25 साल पुरानी है। इसकी 90 फीसदी जमीन हिंदुस्तान जिंक के पास है। दस प्रतिशत में योजना कैसे लागू होगी। अब तक अवार्ड का भुगतान ही किया गया है। सरकारी जमीन पर कार्यालय बन गए है। उपयोगिता नजर नहीं आ रही है। हमने तो प्रस्ताव भेजा है। सरकार उचित समझे तो निरस्त करें।
-तेजवानी गिरधर
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