रविवार, 8 जनवरी 2017

गहलोत-शेखावत मिलन से उठे कई सवाल

राजनीति के साथ कानूनी जंग भी लड़ चुके अजमेर नगर निगम के महापौर धर्मेन्द्र गहलोत व महापौर चुनाव में हारे पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत गले मिल लिए। मजे की बात ये कि किसी राजनीतिक मंच पर अथवा राजनेता की मध्यस्थता से नहीं, बल्कि यह ऐतिहासिक घटना मसाणिया भैरवधाम के मुख्य उपासक चंपालाल जी महाराज के दरबार में हुई। सर्वविदित है कि दोनों की महाराज में गहरी आस्था है और लगभग हर रविवार व विशेष मौकों पर वहां हाजिरी भरते हैं।
सुविज्ञ सूत्रों के अनुसार ऐसा यकायक ही नहीं हो गया। जब से इन दोनों के बीच विवाद खड़ा हुआ, तब से महाराज की ये कोशिश रही कि वे किसी न किसी तरह से एक हो जाएं। आखिरकार दोनों ही उनके चहेते हैं।  दोनों पर उनका आशीर्वाद है। अंतत: उन्हें सफलता हासिल हो ही गई। उनका ये मिलन महज निजी नहीं, बल्कि इसके गहरे राजनीतिक निहितार्थ हैं। सबसे बड़ी बात तो ये कि महापौर चुनाव में पार्टी से बगावत करने के कारण शेखावत भाजपा से बाहर हो गए थे। कांग्रेस में जाने की संभावना लगभग शून्य थी, क्योंकि वहां आगे की राजनीतिक यात्रा के सुनिश्चित पड़ाव नहीं दिख रहे थे। जिस अजमेर उत्तर विधानसभा सीट का विधायक बनने की उनकी ख्वाहिश है, उस पर पहले ही पुराने राजपूत नेता महेन्द्र सिंह रलावता घात लगा कर बैठे हैं। यह दीगर बात है कि इस बार इस सीट का टिकट किसी सिंधी को देने का मानस बताया जाता है। शेखावत के पास एक विकल्प ये था कि अगर दोनों राजनीतिक दल सिंधी प्रत्याशी मैदान में उतारें तो वे गैर सिंधीवाद के नाम पर निर्दलीय रूप से टांग फंसा सकते थे, मगर यह बहुत आसान या सुरक्षित कदम नहीं था। हालांकि तैयारी उनकी यही बताई जाती रही है, मगर जानकार लोग मानते थे कि वे देर सवेर भाजपा में ही लौटेंगे। अब जबकि उन्होंने अपने प्रमुख राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी से हाथ मिला लिया है तो समझा जाता है कि उनका पार्टी में लौटना आसान हो गया है। मगर कई किंतु अब भी मौजूद हैं, वो ये कि महापौर चुनाव के दौरान महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल से अलग हुए शेखावत क्या फिर से उनके खेमे में जा सकेंगे? क्या वे उन्हें स्वीकार कर लेंगी? क्या गहलोत के राजनीतिक आका शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी को इन दोनों का मिलन रास आएगा? क्या शेखावत अब देवनानी खेमा ज्वाइन करेंगे या अब तटस्थ रह कर राजनीति करेंगे? ऐसे ही अनेक सवाल इस मिलाप के साथ उठ खड़े हो गए हैं। इतना ही नहीं, ये भी अगर वे भाजपा में लौटने की ओर अग्रसर हैं तो उनका मास्टर प्लान क्या है? क्या जल्द ही पार्टी में प्रवेश कर भाजपा सरकार के बाकी रहे दो साल में कोई पद हासिल करेंगे या फिर अगले चुनाव का इंतजार करेंगे? उसमें भी ये कि क्या फिर गहलोत के आका देवनानी के समानांतर गैर सिंधीवाद के नाम पर टिकट लेने की कोशिश करेंगे या फिर आगे के लिए कोई आश्वासन लेकर चुप रहेंगे? इन सवालों के जवाब मिलने तक सिर्फ कयास ही लगाए जा सकते हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000, 8094767000

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