शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

भाजपा की वजह से ही लखावत के घर के बाहर तैनात हुई पुलिस

राजस्थान पुरा धरोहर संरक्षण एवं प्रौन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत के सुपुत्र एवं जाने माने वकील उमरदान लखावत ने फेसबुक अकाउंट पर एक विचारणीय बिंदु पर चर्चा की है। अपनी बात लिखने से पहले उनकी बात हूबहू देखिए:-
आदरणीय पुलिस जी, अजमेर की राजनैतिक संस्कृति ऐसी नहीं रही है कि विरोधी दल शहर बंद कराए तो दूसरे दल के नेताओं के घर सुरक्षा के लिए पुलिस लगानी पड़े। आज सुबह जब उठे तो घर के बाहर चार पुलिस के सिपाही जी खड़े थे पूछा क्या हुआ तो बोले आज अजमेर बंद है, लखावत जी के घर पर हमें भेजा है पूछा क्यों तो बोले सुरक्षा के लिए, दूसरे नेताओं के भी ऐसा ही किया है। मैंने कहा भाई अजमेर शहर की संस्कृति में ऐसा नहीं होता है, आप जाओ। एक एसआई से बात कराई तो वो बोले ठीक है सर वापस बुला लेता हूं। अभी कोर्ट से वापसी पर वे पुलिस जी गली के बाहर अजमेर की राजनैतिक संस्कृति की सुरक्षा में खड़े है अब पुलिस जी कौन समझाए?
अब अपनी बात। असल में उमरदान लखावत ने बिलकुल सही लिखा है। वाकई अजमेर की राजनीतिक संस्कृति ऐसी नहीं है। यहां नेता भले ही अपनी अपनी पार्टी के प्रति निष्ठावान हैं, मगर आपस में उनके संबंध सौहार्द्रपूर्ण हैं। किसी के मन में व्यक्तिगत दुर्भावना नहीं। ये अच्छी बात है। बंद करवाने निकले नेता व कार्यकर्ता भी लखावत जी का सम्मान करते हैं। मगर पुलिस की तो अपनी ड्यूटी है। लखावत जी आज राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त नेता हैं। खुदानखास्ता बंद के दौरान कोई असामाजिक तत्त्व भीड़ का फायदा उठा कर गलत हरकत कर देता तो पुलिस के लेने के देने पड़ जाते। ऐसे में उनकी तो ड्यूटी थी कि वे लखावत जी के घर के बाहर सुरक्षा व्यवस्था चौकस रखते।
सामान्यत: भी यदि सुरक्षा के लिए व्यवस्था की जाती तो उसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होती। मगर ऐसा लगता है कि पुलिस को इस कारण ज्यादा ध्यान रखना पड़ा चूंकि भाजपा की ओर से टकराव के संकेत दिए गए थे। जबरन बंद करने का विरोध करने के लिए खुद भी मैदान में डटने का ऐलान करने से स्वाभाविक रूप से पुलिस भी चौकन्नी हो गई। उसे मजबूरन संवेदनशील स्थानों पर पुलिस कर्मी लगाने पड़े। छिटपुट घटनाएं हुई भीं, जिनको पुलिस ने ही निपटाया। काश भाजपा ने टकराव की रणनीति नहीं अपनाई होती, तो न तो लखावत जी के घर के बाहर पुलिस तैनात होती और न ही उमरदान लखावत को इस प्रकार की बात कहनी पड़ती। यह तो भाजपा को ही समझना होगा कि अजमेर की राजनीतिक संस्कृति को कायम रखना चाहिए अथवा नहीं।
-तेजवानी गिरधर
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