रविवार, 19 फ़रवरी 2017

अजमेर में है जिला स्तरीय नेताओं का अभाव

आगामी लोकसभा चुनाव में दोनों दलों को रहेगी सशक्त प्रत्याशी की तलाश
अजमेर। हालांकि इस वक्त अजमेर जिले से दो राज्य मंत्री, दो संसदीय सचिव, एक प्राधिकरण के अध्यक्ष और एक आयोग के अध्यक्ष होने के कारण ऐसा प्रतीत होता है कि यह जिला राजनेताओं से संपन्न है, मगर सच्चाई ये है कि आगामी लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस व भाजपा, दोनों के पास जिला स्तरीय नेताओं का अभाव होने वाला है। इस सोच के पीछे दृष्टिकोण ये है कि अगले चुनाव से पहले कांग्रेस सांसद रहे सचिन पायलट किसी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे और संभव है भाजपा सांसद रहे प्रो. सांवरलाल जाट चुनाव ही न लड़ें। प्रो. जाट को भी पिछले चुनाव में प्रोजेक्ट किया गया था, उससे पहले के चुनाव में तो हालत ये थी कि दोनों दलों के पास स्थानीय दमदार दावेदार नहीं थे, इस कारण सचिन पायलट व किरण माहेश्वरी को बाहर से ला कर चुनाव लड़ाया गया।
अगर सचिन विधानसभा चुनाव लड़े तो कांग्रेस के पास लोकसभा चुनाव का प्रत्याशी तलाशना कठिन होगा। ज्ञातव्य है कि पूर्व में पूर्व भाजपा सांसद प्रो. रासासिंह रावत के सामने कांग्रेस भूतपूर्व राजस्व मंत्री किशन मोटवानी, पुडुचेरी के उपराज्यपाल बाबा गोविंद सिंह गुर्जर, जगदीप धनखड़ व हाजी हबीबुर्रहमान को लड़ाया गया था, जो कि हार गए। इनमें से मोटवानी व बाबा का निधन हो चुका है, जबकि धनखड़ ने राजनीति छोड़ दी है और हाजी हबीबुर्रहमान भाजपा में जा चुके हैं। कांग्रेस के पास स्थानीय प्रत्याशी का अभाव पूर्व में भी था, तभी तो धनखड़ व हाजी हबीबुर्रहमान को लाना पड़ा। हां, एक बार जरूर राज्यसभा सदस्य रहीं डॉ. प्रभा ठाकुर पर दाव खेला गया, जिसमें एक बार उन्होंने प्रो. रावत को हराया और एक बार हार गईं। कांग्रेस का सचिन को बाहर से ला कर चुनाव लड़ाने का प्रयोग तो एक बार सफल रहा, मगर दूसरी बार मोदी लहर में वे टिक नहीं पाए। अब जब कि सचिन को कांग्रेस मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करने का मानस रखती है, तो स्वाभाविक रूप से वे विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। बताया जा रहा है कि वे अजमेर की पुष्कर, नसीराबाद व मसूदा विधानसभा सीटों में से किसी एक सीट से चुनाव लडऩे का मानस बना रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस के लिए फिर लोकसभा चुनाव का प्रत्याशी तलाशना कठिन होगा। यदि जातीय समीकरण की बात करें तो कांग्रेस के पास सचिन के अतिरिक्त कोई दमदार गुर्जर नेता जिले में नहीं है। चूंकि यह सीट अब जाट बहुल हो गई है, उस लिहाज से सोचा जाए तो कहने को पूर्व जिला प्रमुख रामस्वरूप चौधरी व पूर्व विधायक नाथूराम सिनोदिया हैं, मगर वे दमदार नहीं माने जाते।
उधर समझा जाता है कि प्रो. जाट की रुचि अपने बेटे रामस्वरूप लांबा को नसीराबाद विधानसभा सीट से चुनाव लड़वाने की इच्छा है तो भाजपा के पास फिर सशक्त जाट नेता का अभाव हो जाएगा। यूं पूर्व जिला प्रमुख श्रीमती सरिता गेना को दावेदार माना जा सकता है, मगर वे पिछला विधानसभा उपचुनाव हार चुकी हैं। हां, अजमेर डेयरी अध्यक्ष व प्रमुख जाट नेता रामचंद्र चौधरी जरूर भाजपा के खेमे में हैं, मगर अभी उन्होंने भाजपा ज्वाइन नहीं की है। वे एक दमदार नेता हैं, क्योंकि डेयरी नेटवर्क के कारण उनकी पूरे जिले पर पकड़ है। शायद ही ऐसा कोई गांव-ढ़ाणी हो, जहां उनकी पहचान न हो। यदि संघ सहमति दे दे तो वे भाजपा के एक अच्छे प्रत्याशी हो सकते हैं। वैसे समझा ये भी जाता है कि कांग्रेस उन्हें फिर अपनी ओर खींचने की कोशिश कर सकती है। हालांकि अभी उनका सचिन से छत्तीस का आंकड़ा है, मगर राजनीति में कुछ भी संभव है। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस ने पिछले दिनों छिटके जाट नेताओं की वापसी की मुहिम चलाई थी।
यूं पूर्व जिला प्रमुख व मौजूदा मसूदा विधायक श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के पति युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा प्रयास कर सकते हैं, मगर राजपूत का प्रयोग कितना कारगर होगा, इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता।
यदि जाट-गुर्जर से हट कर बात करें तो कांग्रेस के पास बनियों में पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती हैं, जिनका नाम पूर्व में भी उभरा था। भाजपा के पास पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा हैं, हालांकि नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन भी अपने आप को इस योग्य मानते रहे हैं।
कुल मिला कर आगामी लोकसभा चुनाव के संभावित प्रत्याशियों को लेकर दोनों ही दलों में खुसरफुसर शुरू हो चुकी है।
-तेजवानी गिरधर
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