रविवार, 26 फ़रवरी 2017

मनन चतुर्वेदी की अनूठी पेंटिंग : कहीं स्टंट बन कर न रह जाए

राजस्थान बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी बहुत सक्रिय हैं, इसमें कोई दो राय नहीं। कदाचित इस प्रकार के अन्य आयोगों के अध्यक्षों की तुलना में अधिक। यह बहुत अच्छी बात है कि वे इस प्रकार के पद पर रह कर केवल उसका लाभ लेने की बजाय दिल लगा कर काम कर रही हैं। बेशक उसका लाभ होता ही होगा।
गत दिवस उन्होंने अजमेर में बच्चों को नशे की लत से छुटकारा दिलाने के लिए जागरूकता अभियान के तहत लगातार 24 घंटे की पेंटिंग बनाई। यह एक नया प्रयोग था, लिहाजा लोगों में कौतुहल भी खूब रहा। कुछ सरकारी तामझाम तो था ही, कुछ जागरूक लोगों की भागीदारी भी रही। इनमें छपास के रोगी व आधुनिक फेसबुकिये भी मौजूद थे। बड़ी तारीफ हुई। मीडिया कवरेज भी जम कर मिला। कार्यक्रम सफल रहा। मगर असल सवाल ये कि क्या वाकई ऐसे स्टंट जनता में वास्तव में जागरूकता पैदा करते हैं?
वस्तुत: कोई भी संदेश देना और उसका अनूठा प्रयोग करना अच्छी बात है, मगर धरातल पर वह कितना कारगर होता है, वह ज्यादा जरूरी है। चाहे दहेज के खिलाफ नुक्कड़ नाटक हों या फिर भ्रूण हत्या रोकने केलिए लघु नटिकाओं का प्रदर्शन, सच्चाई ये है कि इनसे संदेश तो जाता है, मगर न तो दहेज रुका, न ही भ्रूण हत्या। कानून भी कई बार बेबस सा नजर आता है, क्योंकि उसका इंप्लीमेंटेंशन ठीक से नहीं होता। बच्चों में नशे की आदत वाला मसला भी ऐसा ही है। पुलिस ने कई बार कार्यवाही की, मगर नतीजा ढ़ाक के तीन पात ही रहा है। यदि गहराई से जांच करेंगे तो पाएंगे कि जिन दुकानदारों को बच्चों को नशे का सामान बेचने के आरोप में पकड़ा गया, वे फिर से यही धंधा कर रहे हैं। पुलिस को भी सब पता है। या तो वह व्यवस्था का हिस्सा बनी हुई या फिर शिकायत मिलने पर फौरी कार्यवाही कर इतिश्री कर रही है। अर्थात समस्या का समाधान करने के तरीके में ही कहीं गड़बड़ है। बेशक समस्या है कि नशे का कारोबार करने वालों पर कैसे काबू पाया जाए, मगर उससे भी कहीं ज्यादा ये जानना जरूरी है कि बच्चे नशे की ओर क्यों आकर्षित हो रहे हैं? अगर हमारा ध्यान उस पर नहीं है तो समझिये कि नब्ज हमारी पकड़ में है ही नहीं, ऐसे में इलाज की उम्मीद बेमानी है।
मनन चतुर्वेदी को साधुवाद कि उन्होंने एक अनूठा प्रयोग किया। मकसद तो तारीफ ए काबिल है। मगर प्रत्यक्षत: नजर यही आया कि इस अभियान का कथित रूप से हिस्सा बने लोग औपचारिता भर निभा रहे थे। किसी को चर्चित चेहरा बनी मनन के दीदार का शौक था तो किसी को उनकी पेंटिंग देखने का। या तो छपास पीडि़त थे, या फिर फेसबुकिये, जिन्हें मनन के साथ फोटो खिंचवाने का शौक था। स्टाइलिश मनन भी बड़े मजे से सैल्फियां खिंचवा रही थीं। वे सोशल एक्टिविस्ट हैं, ये तो सर्वविदित ही है, एक अच्छी पेंटर भी हैं, ये भी स्थापित हो गया। साथ ही स्टंटबाज भी। खुदा करे, उनका अभियान कामयाब हो, कहीं स्टंट भर बन कर न रह जाए।
-तेजवानी गिरधर

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