शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

कार्यकारिणी न बना पाने की वजह से जैन को असफल करार देना गलत

भले ही पूरा एक साल बीत जाने के बाद भी शहर कांग्रेस की कार्यकारिणी घोषित न हो पाई हो, और मीडिया में इसे शहर अध्यक्ष विजय जैन की असफलता के रूप में गिना जा रहा हो, मगर असल बात ये है कि अपनी पसंदीदा टीम के बिना पुरानी कार्यकारिणी के साथ भी उन्होंने एक साल सफलतापूर्वक दर्ज किया है। यूं पूर्व अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता के समय भी कांग्रेस का दफ्तर नियमित रूप से खुलता रहा, मगर जितनी गतिविधियां विजय जैन के कार्यकाल में खुद उनके दफ्तर से नियमित रूप से हुईं व उनमें अपेक्षाकृत अधिक उपस्थिति दिखाई दी, वैसा पूर्व में कभी नहीं हुआ था।
मीडिया का पोस्टमार्टम करने का तरीका अपना है, मगर असल में कार्यकारिणी बना पाना, न बना पाना पार्टी का अंदरूनी मामला है, उसका जनता से कोई लेना देना नहीं है। ये तो है नहीं कि चूंकि वे कार्यकारिणी घोषित नहीं करवा पाए, इस कारण किसी भी धरने-प्रदर्शन में अकेले ही खड़े नजर आते हैं। अगर नई कार्यकारिणी न बना पाने की वजह से संगठन की गतिविधि ठप हो गई होती तो जरूर कहा जा सकता था कि वे असफल रहे हैं, मगर सच्चाई ये है कि वे न केवल पूरी तरह से सक्रिय हैं, अपितु एक साल में अनेकानेक कार्यक्रम व धरना प्रदर्शन आदि को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। वस्तु स्थिति ये है कि अब कार्यक्रमों में कार्यकर्ताओं की उपस्थिति पहले से कहीं अधिक रहती है। भले ही उसकी एक वजह ये हो कि कार्यकारिणी में शामिल होने के इच्छुक दावेदार बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। इसके अतिरिक्त पायलट की सक्रियता और अगली सरकार कांग्रेस की बनने की संभावना के कारण भी कार्यकर्ता सक्रिय हुआ है।
यदि ये मान भी लिया जाए कि कार्यकारिणी न बना पाना एक असफलता है, तो भी उसके लिए अकेले जैन को ही जिम्मेदार मानना गलत है। बकौल जैन इसकी वजह प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट की व्यस्तता है तो उसके साथ सीमा से अधिक दावेदार होने के कारण भी मामला उलझा है। अपने चहेंतो को पद दिलवाने के लिए अड़ जाने वाले भी बराबर के जिम्मेदार हैं। जैसा कि माना जा रहा है कि जैन पूर्व विधायकों व वरिष्ठ कांग्रेसजन को एक मंच नहीं ला पा रहे, तो यह तथ्य भी गलत है। सच तो ये है कि जो नेता रलावता के कार्यकाल में पूरी तरह से निष्क्रिय हो गए थे, वे भी अब सक्रिय हो गए हैं। इतना ही नहीं, एक मंच पर भी आ ही गए हैं, बस दिक्कत सिर्फ ये है कि सभी अपने पसंदीदा दावेदारों को एडजस्ट करने का दबाव बनाए हुए हैं। यानि कि विवाद जैन को अध्यक्ष मानने की स्वीकार्यता का नहीं है, बल्कि मसला है कि कार्यकारिणी में घुसने का।
बहरहाल, कार्यकारिणी को न बना पाने को अगर एक असफलता माना जाए तो साथ ही यह भी समझना होगा कि जो व्यक्ति बिना खुद की टीम के सफल कार्यक्रम दे सकता है, तो वह अपनी टीम के होने पर क्या कर सकता है।

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