सोमवार, 3 अप्रैल 2017

किले का नाम कुछ भी रख दें, बनवाया तो अकबर ने ही था

नया बाजार स्थित अजमेर का किला एवं संग्रहालय को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। पिछले दिनों इस किले का नाम अकबर का किला से बदल कर अजमेर का मिला एवं संग्रहालय करने को लेकर खादिम तरन्नुम चिश्ती के नाम से शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी को भेजे गए धमकी भरे पत्र की वजह से यह किला चर्चा में आ था, अब इसको लेकर  शहर जिला भाजपा अध्यक्ष अरविंद यादव की ओर से जारी एक बयान से यह सुर्खियों में है।
यादव ने किले के वृत्त अधीक्षक जफर उल्लाह खान द्वारा अजमेर के किले को अकबर का किला बताने के बयान को उन्होंने तथ्यहीन बताया है। यादव ने कहा है कि जिस 1968 की अधिसूचना का जफर उल्लाह खान हवाला दे रहे हैं, उससे पूर्व वर्ष 1950 से ही इसका नाम राजपूताना संग्रहालय था तथा यहां पर देश के गौरव से जुड़ी कई ऐतिहासिक जानकारियां व तथ्य उपलब्ध थे। प्रख्यात विद्वान हरविलास शारदा द्वारा लिखित पुस्तक जो कि ऐतिहासिक तथ्यों के प्रमाणित आधार पर रचित है इसमें भी तथा अनेक ऐतिहासिक व पुरातत्व दस्तावेजों से यह सिद्व होता है कि यह राजपुताना संग्रहालय, म्यूजियम व अजमेर का किला है।
यादव ने जिन तथ्यों का हवाला दिया है, वे वाकई सही हैं, इसमें कोई दोराय नहीं है, मगर क्या इन तथ्यों से इस बात को नकारा जा सकता है कि इस किले का निर्माण अकबर ने करवाया था? अगर वृत्त अधीक्षक जफर उल्लाह खान बता रहे हैं कि इसका नाम अकबर का किला है, तो उसमें कुछ भी गलत नहीं है। वे केवल उपलब्ध सरकारी रिकार्ड के हिसाब से जानकारी दे रहे हैं। इतिहासकारों ने भले ही अपनी पुस्तकों में वस्तुस्थिति का हवाला दिया हो। विचारधारा विशेष के महानुभावों को भले ही किसी नाम विशेष से वितृष्णा हो, मगर इतिहास को नहीं झुठलाया जा सकता।
रहा सवाल नाम का तो स्थानों व योजनाओं के नाम बदलने के अनेकानेक उदाहरण हैं। सत्ता पर काबिज राजनेता व दल अपनी पसंद व विचारधारा के अनुसार नाम बदलते रहे हैं। बस, उसकी विधिक प्रक्रिया का पालन करते हैं, ताकि नाम परिवर्तन रिकार्ड पर आ जाए। ऐसा अनेकानेक इमारतों के साथ हुआ है। जैसे किसी समय जवाहर लाल नेहरू अस्पताल का नाम विक्टोरिया अस्पताल था। आजादी के बाद सरकार ने इसका नाम बदल कर जवाहर लाल नेहरू के नाम पर कर दिया। ढ़ाई दिन का झौंपड़ा को ही लीजिए। वह था तो संस्कृत विश्वविद्यालय, मगर मुगल काल में उसे तोड़ कर नई इमारत बना दी गई, जिसका नाम ढ़ाई दिन का झौंपड़ा कर दिया गया।
खैर, वस्तुस्थिति ये है कि अजमेर शहर के केन्द्र में नया बाजार के पास स्थित इस किले का निर्माण अकबर ने 1571 से 1574 ईस्वी में राजपूतों से होने वाले युद्धों का संचालन करने और ख्वाजा साहब के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए करवाया था। किले के मुख्य द्वार के बाद दीवार पर लगे शिलालेख पर भी लिखा है कि अजमेर का मुगल किला बादशाह अकबर के द्वारा हिजरी 978(1570 ईसी) में बनाया गया है अकबर फोर्ट अजमेर। अकबर ने यहां से समस्त दक्षिणी पूर्वी व पश्चिमी राजस्थान को अपने अधिकार में कर लिया था। जहांगीर ने भी 1613 से 1616 के दौरान यहीं से कई सैन्य अभियानों का संचालन किया। बाद में ब्रिटिश काल में 1818 से 1863 तक इसका उपयोग शस्त्रागार के रूप में हुआ, इसी कारण इसका नाम मैगजीन पड़ गया। वर्तमान में यह संग्रहालय है। पूर्वजों की सांस्कृतिक धरोहर का सहज ज्ञान जनसाधारण को कराने और संपदा की सुरक्षा करने की दृष्टि से भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक मार्शल ने 1902 में लार्ड कर्जन के अजमेर आगमन के समय एक ऐसे संग्रहालय की स्थापना का सुझाव रखा था, जहां जनसाधारण को अपने अतीत की झांकी मिल सके। संग्रहालय की स्थापना 19 अक्टूबर, 1908 को एक शानदार समारोह के साथ हुई।
बहरहाल, मुद्दा सिर्फ इतना है कि जब इसका नाम अजमेर का किला व संग्रहालय किया गया तो, उसके लिए उचित विधिक प्रक्रिया क्यों नहीं अपनाई गई? अगर सरकार चाहे तो इसके लिए बाकायदा गजट नोटिफिकेशन जारी कर रिकॉर्ड में इसका नाम बदल सकती है। उस पर किसी को ऐतराज भले ही हो, मगर उसमें कोई बाधा नहीं है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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