गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

क्या हाईकोर्ट को दिखाने भर के लिए बना अतिक्रमण हटाओ अभियान?

हाईकोर्ट के आदेश से शहर में अतिक्रमण हटाए जाने के लिए बनाए गए कार्यक्रम के पहले दिन ही नगर निगम का जो रवैया नजर आया, उसको लेकर निगम की खूब छीछालेदर हुई। जाहिर सी बात है कि जिन अफसरों पर अतिक्रमण हटाने की जिम्मेदारी थी, वे ही सरकारी दौरे पर दिल्ली चले गए तो आलोचना होनी ही थी। हार्टकोर्ट के आदेश की पालना में निगम के गंभीर नजर नहीं आने का सवाल भी उठा। अभियान का तो जो हश्र होना था, वह भी हुआ। उसका बखान करना बेकार है।
ज्ञातव्य है कि आगामी 30 अप्रैल को निगम को हाईकोर्ट में शपथ पत्र दे कर बताना है कि अतिक्रमण हटाने के उसके आदेश की अनुपालना कर दी गई है। अर्थात निगम पर ये दबाव था कि वह किसी भी तरह से अतिक्रमण हटाने के लिए बाकायदा अभियान चलाए। अभियान के लिए कार्ययोजना भी बनाई गई और दो जोन बना कर जिम्मेदारी भी तय की गई। शहर में जहां दुकानदारों में खलबली थी तो नगर वासियों में संतोष था कि आज तगड़ी कार्यवाही होगी और यातायात सुगम होगा। मगर हुआ ये कि दक्षिण जोन की प्रभारी उपायुक्त ज्योति ककवानी अपना कार्यभार उपायुक्त गजेन्द्र सिंह रलावता को सौंप कर दिल्ली चली गईं। साथ में प्रभारी अधिकारी रेखा जेसवानी और असेसर नीलू गुर्जर को ले गईं। उन्हें वहां स्मार्ट सिटी के लिए आयोजित कार्यशाला में हिस्सा लेना था। उत्तर जोन की स्थिति ये थी कि जोन प्रभारी पवन मीणा की छुट्टी पहले से ही मंजूर की हुई थी। एक दिन के लिए जैसे तैसे बुलाया गया, मगर रवैया टालमटोल वाला ही रही। समझा जा सकता है कि ऐसे में अतिक्रमण हटाने का जो हल्ला मचाया गया था, उसकी हवा तो खुद निगम के ही अधिकारी निकाल चुके थे।
सवाल ये उठता है कि जब तीन अधिकारी दिल्ली जाने थे और एक ने छुट्टी ले रखी थी तो अतिक्रमण हटाने का कार्यक्रम तय ही क्यों किया गया? ऐसा तो था नहीं कि कार्यक्रम तय होने के बाद अचानक रात में दिल्ली से न्यौता आया। जरूर पहले से सूचना या जानकारी रही होगी। बावजूद इसके मीडिया के जरिए ढि़ंढ़ोरा पीटा गया कि बुधवार को शहर को दो जोन में बांट कर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हटाए जाएंगे। ऐसा प्रतीत होता है कि यह सब हाईकोर्ट के संज्ञान में लाने के लिए सायास किया गया, ताकि यदि आधी अधूरी कार्यवाही पर फटकार लगे तो बताया जा सके कि निगम तो तय समय में अतिक्रमण हटा देता, मगर अचानक नई परिस्थिति पैदा हो गई।
जहां तक अतिक्रमण हटाओ अभियान तय होने के बाद भी अधिकारियों के दिल्ली जाने का मसला है तो यह सही है कि दिल्ली जाना ज्यादा जरूरी था। अतिक्रमण तो कभी भी हट सकता है, एक-दो दिन देर से ही सही, मगर स्मार्ट सिटी के लिए दिल्ली में होने वाली कार्यशाला अजमेर के लिए तो टल नहीं सकती थी। कार्यशाला में न जाने पर अधिकारी जरूरी जानकारियों से वंचित रह जाते, साथ ही ऊपर से भी अनुपस्थिति पर खिंचाई हो सकती थी।
अजमेर के लिए जितना जरूरी स्मार्ट सिटी योजना है, उतना ही जरूरी अतिक्रमण हटाना भी है, दोनों को अंजाम भी इन्हीं अधिकारियों को देना है, तो बेहतर ये है कि तालमेल बैठा कर कार्ययोजना बनाई जाए।
हाईकोर्ट की बात छोडिय़े, निगम की खुद की ही जिम्मेदारी है कि अतिक्रमण हटाए, उसके लिए हाईकोर्ट को क्यों दखल देना पड़े? अव्वल तो अतिक्रमण होने ही नहीं देना चाहिए, मगर सच्चाई क्या है, इस बारे में ज्यादा खुलासा करने की जरूरत नहीं है। सब कुछ मिलीभगत से होता है। फिर जब समस्या बेहद गंभीर हो जाती है तो अतिक्रमण हटाने के लिए अभियान की जरूरत पड़ती है। अगर निगम शहर को वाकई अतिक्रमण से मुक्त करना चाहता है तो उसे बाकायदा योजनाबद्ध तरीके से अभियान चलाना होगा। इतना ही नहीं, उसकी आगे भी मॉनिटरिंग करते रहनी होगी, ताकि फिर अतिक्रमण न होने पाए।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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