बुधवार, 31 मई 2017

अपने सचिव तक को नहीं रोक पाए धर्मेश जैन

एक कहावत है कि जब जहाज डूबने लगता है तो उसमें निवास करने वाले चूहे पहले ही कूद-कूद कर भागने लगते हैं। कुछ इसी तरह की एक मारवाड़ी कहावत मैने अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी से कभी सुनी थी कि भांस मरबा लागे, तो चींचड़ा छोड-छोडर भागै, अर्थात भैंस मरने वाली हो तो उसके शरीर से चिपक कर अपना जीवनयापन पीने वाले जीवाणुओं को पहले ही पता लग जाता है और वे छोड़ कर भाग जाते हैं। ये कहावतें कहने-सुनने में तो ठीक हैं, मगर लिखने की बात हो तो मैं यही कहूंगा कि जैसे ही कोई सत्ता विहीन होने लगता है तो उसके साथी उसे छोड़ कर भाग जाते हैं। यही संभ्रांत तरीका है। बात चूंकि संभ्रांत महानुभावों की है, लिहाजा संभ्रांत ढ़ंग से ही कहा जाए तो ठीक है।
आपको ख्याल होगा कि हाल ही जब महाराणा प्रताप जयंती समारोह का विवाद मीडिया में सुर्खियों में रहा। तत्कालीन नगर सुधार न्यास के सदर धर्मेश जैन को मलाल रहा कि कई साल से वे स्मारक स्थल पर जंयती मनाते रहे, मगर इस बार मौजूदा अजमेर विकास प्राधिकरण अध्यक्ष शिवशंकर हेडा ने कार्यक्रम हथिया लिया। कार्यक्रम क्या, पूर्व में गठित समिति के अधिसंख्य सदस्य भी उन्होंने तोड़ लिए। दिलचस्प बात देखिए कि जैन की समिति के सचिव रहे शिक्षाविद् व इतिहासज्ञ डॉ. नवल किशोर उपाध्याय ने भी पाला बदलने में देर नहीं लगाई। जब हेडा ने अभी सोचा भी नहीं होगा कि जयंती कैसे मनाई जाए, उससे पहले ही जैन व उपाध्याय के हस्ताक्षर से युक्त  पत्र एडीए सचिव को लिख भेजा गया था कि वे हर बार ही तरह इस बार भी जयंती मनाना चाहते हैं, लिहाजा एडीए का सहयोग अपेक्षित है। खैर, उस पत्र पर न कोई कार्यवाही होनी थी, न ही हुई, इस बात का अंदाजा उपाध्याय को हो गया था, लिहाजा जैसे ही हेडा ने एडीए स्तर पर जयंती मनाने कर निर्णय किया तो वे पाला बदल कर उनके पास चले गए। उन्होंने बाकायदा पहले दिन हुए व्याख्यान कार्यक्रम का संयोजन किया। असल में वे ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर वाले शख्स हैं। विद्वान हैं, अच्छे धाराप्रवाह वक्ता हैं, इतिहास के जानकार हैं। जैन ने साथ बुलाया तो उनके साथ हो लिए और हेडा ने बुलाया तो जैन को छोड़ कर उनके साथ हो लिए। उन्हें तो उचित मंच चाहिए होता है। उन्हें इससे क्या मतलब कि इससे जैन नाराज होंगे। नाराज हो भी गए तो क्या, अब सत्ता में तो हेडा जी हैं। खैर, उनकी सदाशयता उनके साथ है, मगर उनके इस पाला बदल से ऊपर लिखी संभ्रांत कहावत तो चरितार्थ होती ही है।

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