गुरुवार, 1 जून 2017

कलैक्टर साहब, क्या ऐसे लोकतंत्र की हत्या नहीं हो जाएगी?

सम्मानीय कलैक्टर साहब,
आपने हाल ही आदेश जारी किए हैं कि सरकारी कर्मचारियों के साथ अभद्रता होने पर पुलिस तुरंत मुकदमा दर्ज करेगी। आपने ऐसा इसलिए किया ताकि कर्मचारी भयमुक्त हो कर कार्य कर सकें। असल में आपने ऐसा राजकार्यों के निवर्हन के दौरान असामाजिक व्यक्तियों द्वारा व्यवधान किए जाने के संदर्भ में कहा है। बेशक आपका आदेश सराहनीय है। ऐसा होना ही चाहिए।
सच तो ये है कि यह व्यवस्था पहले से ही है। बाकायदा कानून बना हुआ है। आपने कोई नया आदेश जारी नहीं किया है। आपने रिपीट मात्र किया है। मगर जितना जोर देकर कहा है, उसके दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। कहीं ऐसा न हो कि आपका कर्मचारी निरंकुश हो जाए? अव्वल तो यह कैसे तय मान लिया जाए कि हर कर्मचारी ईमानदार है? एक बारगी मान भी लिया जाए, मगर वह जिस पर कार्यवाही कर रहा है, उसकी भी कोई अपेक्षा हो सकती है। क्या हर बार जनता का व्यक्ति गलत ही होता है और कर्मचारी हर बार सही? मान लो किसी व्यक्ति के साथ कोई कर्मचारी ज्यादती कर रहा है, तो उसे कौन तय करेगा कि वह ठीक कर  रहा है? फिर अभद्रता का पैरामीटर क्या है? बेशक कर्मचारी के साथ हाथापाई करना राजकाज में बाधा है, मगर केवल विरोध दर्ज करने मात्र को भी तो कर्मचारी राजकाज में बाधा मान कर पुलिस को शिकायत कर सकता है। हो सकता है कि आपका तर्क ये हो कि मौके पर कर्मचारी जो कर रहा है, उसे करने दिया जाए, अगर शिकायत है तो उच्च अधिकारी से कहा जाए। मगर जिस तरह का आदेश है, उसे देखते तो यही लगता है कि आम आदमी की सुनवाई उच्च अधिकारी भी करने वाला नहीं है, वह अपने कर्मचारी का ही पक्ष लेगा।
उदाहरण के तौर पर कर्मचारी किसी का कथित अतिक्रमण हटा रहा है। अगर दूसरे पक्ष के पास दस्तावेजी सबूत हैं कि वह अतिक्रमण नहीं है, या फिर कोर्ट का स्थगनादेश है, तो क्या वह इस डर से कि अगर विरोध करूंगा तो मेरे खिलाफ मुकदमा दर्ज हो जाएगा, वह चुपचाप रह जाए? कर्मचारी तो तोडफ़ोड़ करके चला जाएगा, यह बाद की बात है कि कोर्ट की अवमानना साबित होने पर कोर्ट कर्मचारी के खिलाफ फैसला करेगा। मगर तब तक तो जो तोडफ़ोड़ हुई है, उसका नुकसान तो आम आदमी ही भुगतेगा ना? ऐसे अनेक मामले सामने आते रहे हैं, जबकि जबरन कार्यवाही के दौरान गेहूं के साथ घुन भी पिस गया, बाद में जा कर कर्मचारी को कोर्ट की फटकार लगी।
ऐसे अनेक प्रकार के मामले हो सकते हैं। कम से कम आमजन को मौके पर अपना पक्ष रखने का अधिकार तो होना ही चाहिए। विरोध जताने का भी अधिकार होना चाहिए। यदि कोई विरोध स्वरूप अपनी बात कह रहा है और आपके कर्मचारी ने उसे अभद्रता मान लिया तो पुलिस तो आम आदमी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लेगी।
काश, आपने जरा इसका भी ख्याल कर लिया होता कि आखिरकार हम लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं, जिसमें जनता व जनहित ही सर्वोपरि है। राजकाज करने वालों को पूरी निष्पक्षता के साथ काम करने की छूट होनी ही चाहिए, मगर वे निरंकुश न हो जाएं, इसको लेकर आपने एक भी शब्द नहीं कहा, जिससे एक बारगी ऐसा आभास होने लगा मानो हम प्रजातंत्र में नहीं बल्कि राजतंत्र में जी रहे हों। अजमेर के कार्यकाल में आपने जो निष्पक्षता, कर्मठता से जनहित के काम में आ रही बाधाओं को तुरंत हटाया है, उससे आपकी छवि एक सख्त अफसर की भी बनी है। कहीं ऐसा न हो कि आपकी इसी छवि की आड़ में भ्रष्ट व बेईमान कर्मचारी आपके आदेश का दुरुपयोग न करने लगें?
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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