शुक्रवार, 14 जुलाई 2017

बनते बनते बिगड़ी बात, लॉ एंड ऑर्डर फेल

राजस्थान पुलिस के हाथों एनकाउंटर में मारा गया कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल सिंह मौत के बाद भी सरकार और पुलिस के लिए सिर दर्द बना हुआ है। पूरा राजपूत समाज उसके साथ खड़ा है। किसी अपराधी के साथ पूरा समाज एकजुट है तो इसका सीधा सा अर्थ है कि यह मसला अकेला कानून व्यवस्था का नहीं, बल्कि इसके राजनीतिक निहितार्थ भी हैं। उधर सरकार का सीबीआई जांच के लिए राजी न होना संकेत देता है कि वह किसी आशंका से घिरी हुई है।
चलो, पहले कानून व्यवस्था की बात। मुठभेड़ से पहले समस्या ये थी कि जब भी सरकार कानून व्यवस्था की उपलब्धियों का बखान करती तो आनंदपाल का नाम उस पर कालिख पोत देता और अब मौत के बाद हुआ आंदोलन जब पूर्णाहुति के करीब था तो कानून व्यवस्था की विफलता ने ही पानी फेर दिया। पहले गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया आनंदपाल का नाम सुनते ही झल्ला जाते थे और और बोल पड़ते थे कि वह मेरी जेब में तो बैठा नहीं है। अब भी उनकी स्थिति ये है कि सांवराद में सुलह सिरे पर पहुंचती, इससे पहले ही हिंसा भड़क उठी और डीजी जेल अजीत सिंह शेखावत की सारी मेहनत जाया हो गई, ऐसे में उनसे जवाब देते नहीं बन रहा। समस्या वहीं की वहीं है। कानून व्यवस्था संभाले नहीं संभल रही। इसकी जड़ें मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व संघ पृष्ठभूमि के गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया के बीच खिंची अदृश्य रेखा की तह में तो नहीं है, इसका केवल कयास ही लगाया जा सकता है।
असल में सरकार ऐसे पेचीदा मसले में भी सीबीआई जांच की मांग तुरंत मानने की बजाय आगामी चुनाव को ही ध्यान में रख रही है। दैनिक भास्कर ने तो साफ लिखा है कि सुलह के लिए डीजी जेल अजीत सिंह शेखावत को भेजने का मकसद ही ये था कि राजपूत समाज में संदेश जाए कि वे ही राज्य के नए डीजीपी बनाए जा रहे हैं। अगर सफलता मिलती तो सरकार में एक दमदार राजपूत चेहरा उभरता। प्राप्त सूचनाओं के अनुसार सुलह लगभग हो भी चुकी थी, मगर इस बीच अचानक हिंसा भड़क उठी और सब कुछ बिखर गया। स्पष्ट है कि जब अजीत सिंह बातचीत में व्यस्त थे तो वहां की कानून व्यवस्था संभाले हुए अफसर गच्चा खा गए। अब लाख तर्क दिए जाएं कि पुलिस की कोई गलती नहीं है, आंदोलनकारियों ने हिंसा की, मगर इस बात का जवाब क्या है कि आपसे भीड़ हैंडल क्यों नहीं हो पाई? भीड़ अनुमान से ज्यादा पहुंचने का तर्क भी पुलिस के ही गले पड़ा हुआ है कि आपका सूचना तंत्र फेल कैसे हो गया? खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक 15 से 20 हजार लोगों के ही आने की संभावना थी, मगर आ गए तीन गुना ज्यादा, जबकि जवान तैनात थे 2 हजार 500। इसका सीधा सा अर्थ है कि आपने भीड़ को रोकने के इंतजामात के तहत 16 स्थानों पर जो नाकेबंदी की थी, वह भी गड़बड़ा गई।
बात अगर राजनीतिक कोण की करें तो इस आंदोलन से परंपरागत रूप से भाजपा मानसिकता से जुड़े राजपूत समाज के छिटकने का खतरा है।  अब अगर सरकार सीबीआई जांच की मांग मान भी लेती है तो भी जो नुकसान हो चुका है, उसकी भरपाई पूरी तो नहीं हो पाएगी।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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