बुधवार, 20 सितंबर 2017

क्या सचिन पायलट अजमेर से चुनाव लड़ेंगे?

क्या प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट अजमेर लोकसभा सीट के लिए आगामी नवंबर-दिसंबर में संभावित उपचुनाव लड़ेंगे, यह सवाल यहां की राजनीतिक फिजां पर छाया हुआ है। हर आदमी के जेहन में यह सवाल कौंध रहा है, जिसे पैदा करने में मीडिया की अहम भूमिका है।
यूं सवाल स्वाभाविक भी लगता है, क्योंकि पिछले दो चुनाव वे यहां से लड़ चुके हैं, जिसमें एक बार जीते व दूसरी बार मोदी लहर के चलते नहीं जीत पाए। उनके यहां से लडऩे की चाहत उन लोगों में ज्यादा हो सकती है, जिन्हें अहसास है कि एक बार जब वे यहां से जीतने के बाद केन्द्र में अजमेर के पहले मंत्री बने तो खूब काम करवाए। इसके अतिरिक्त चूंकि उनके मुकाबले का दूसरा प्रत्याशी कांग्रेस में है नहीं, इस कारण भी उनसे लडऩे की उम्मीद की जा रही है। मगर बदले राजनीतिक समीकरणों में उनके यहां से लडऩे का सवाल पूरी तरह से बेमानी भी है। वजह ये है कि उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया ही इस कारण गया कि उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया जाना है। उसी के तहत विधानसभा चुनाव में बुरी तरह परास्त और पस्त कांग्रेस में उन्होंने पिछले तीन साल में जान फूंकने के लिए दिन-रात एक कर रखा है। उनकी मेहनत का ही फल है कि आज कांग्रेस, भाजपा को टक्कर देने की स्थिति में मानी जाती है। ऐसे में एक अदद लोकसभा सीट के चुनाव, वो भी एक डेढ़ साल के कार्यकाल के लिए होने वाले उपचुनाव में उनका लडऩा निहायत ही असंभव सा है। यह बात बिलकुल सीधी और सहज है, फिर भी मीडिया ने इसे तूल दे रखा है।
हालांकि यह सही है कि वे कांग्रेस के एक आइकन हैं, इस कारण उनकी हर गतिविधि पर सब की नजर रहती है। केन्द्र व राज्य में सत्ता पर काबिज भाजपा के लिए अजमेर सीट प्रतिष्ठा का सवाल है, इस कारण उसे इस मुद्दे पर विचार करना ही पड़ रहा है। उनको टक्कर देने के लिए भाजपा के पास कोई प्रत्याशी नहीं है। पिछली बार जाटों की बहुलता के आधार पर प्रो. सांवरलाल जाट को प्रत्याशी बनाया गया, मगर सब जानते हैं कि उनकी जीत में ज्यादा भूमिका मोदी लहर की ही रही। अब न तो मोदी लहर जैसी कोई बात है और न ही प्रो. जाट जैसा नेता भाजपा के पास है। ऐसे में उसका चिंतित होना स्वाभाविक है।
बात मीडिया की करें तो उसने इस मुद्दे को इस तरीके से उठाया कि सचिन चुनाव लडऩे पर केवल इसी कारण विचार करें कि अगर वे नहीं लड़े तो यह माना जाएगा कि हार के डर से घबरा गए, जबकि मुद्दा ये है ही नहीं। उनकी भूमिका अब एक सांसद की नहीं रह गई है। कांग्रेस की ओर से वे भावी मुख्यमंत्री के रूप में देखे जा रहे हैं, तो भला वे क्यों बहुत कम समय के लिए सांसद बनना चाहेंगे, जो कि केन्द्र में पूर्ण बहुमत वाली भाजपा सरकार के रहते अजमेर को कुछ विशेष नहीं दे सकते। दैनिक भास्कर की ओर से एक कथित सर्वे का क्या परिणाम आया, ये तो सर्वे करने वाली कंपनी ही जाने, मगर उसी सर्वे की खबर को फेसबुक पर शाया किया गया तो अधिसंख्य ने यही राय जाहिर की कि वे सांसद की बजाय मुख्यमंत्री के रूप में पसंद किए जा रहे हैं। सचिन पायलट से संबंधित खबर के लिए मीडिया की आतुरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जैसे ही प्रदेश कांग्रेस सेवादल के अध्यक्ष राकेश पारीक की जुबान फिसली, अथवा नहीं फिसली, उसे तुरंत लपक कर यह खबर बना दी कि उन्होंने सचिन पायलट के अजमेर से लडऩे की घोषणा की है, जबकि एक सामान्य बुद्धि भी अंदाजा लगा सकता है कि भला पारीक कैसे घोषणा कर सकते हैं। पारीक की ओर से भी सोचें तो कैसे कोई इतना जिम्मेदार नेता इतना अहम निर्णय सुना सकता है, जबकि इसका अधिकार क्षेत्र कांग्रेस हाईकमान व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पास है। निश्चय ही उनका ये मकसद ये रहा होगा कि सचिन पायलट को अजमेर से चुनाव लडऩे का आग्रह किया जाए। हालांकि बाद में उन्होंने जब अपनी मंशा को स्पष्ट किया तो मामले का पटाक्षेप हो गया।
बात अगर कांग्रेस कार्यकर्ताओं के नजरिये की करें तो उनके प्रति लगाव के चलते वे ऐसा कह सकते हैं कि उन्हें यह चुनाव लडऩा चाहिए, मगर वे भी मन ही मन जानते हैं कि उनके ऊपर पूरे प्रदेश का दायित्व है, अत: सारा ध्यान आगामी विधानसभा चुनाव पर देंगे। हां, इतना जरूर है कि उन पर यह पूरा मानसिक दबाव रहेगा कि ऐसा प्रत्याशी मैदान में उतारें जो जीत कर आए, ताकि आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और अधिक उत्साह के साथ कमर कस सके।
कुल मिला कर मोटे तौर पर यही माना जा सकता है कि वे उपचुनाव नहीं लड़ेंगे। केवल एक क्षीण सी संभावना ये है कि हाईकमान यह सोच कर  कि उनके अतिरिक्त कोई दूसरा उपयुक्त प्रत्याशी है नहीं और इस उपचुनाव को किसी भी सूरत में जीतना है, ताकि आगामी विधानसभा चुनाव में जीत का आगाज हो, तो उन्हें चुनाव लडऩे को कहे। अथवा स्वयं उन्हें लगे कि ऐसा करना उचित रहेगा, तभी उनके लडने की संभावना बनती है पर यह उनके स्वविवेक पर निर्भर करता है। कानूनी रूप से एक सांसद चुने जाने के बाद भी वे मुख्यमंत्री बनाए जा सकते हैं और छह माह में किसी भी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ कर विधायक बन सकते हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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