गुरुवार, 16 नवंबर 2017

टिकट का दावा तो ठोकेंगे ही भूतड़ा

भले ही तीन साल पहले पार्टी से छह साल के लिए बाहर किए गए पूर्व विधायक व पूर्व अजमेर देहात जिला भाजपा अध्यक्ष देवीशंकर भूतड़ा को अब जा कर फिर भाजपा में शामिल कर लिया गया हो, जिससे ऐसा प्रतीत होता हो कि ऐसा भाजपा हाईकमान की दया पर हुआ है, मगर इसका मतलब ये नहीं कि वे ब्यावर विधानसभा सीट की टिकट के लिए दावा नहीं करेंगे।
वस्तुस्थिति ये है कि भाजपा हाईकमान ने आगामी लोकसभा उपचुनाव में पार्टी को मजबूती प्रदान करने की खातिर ही भूतड़ा व पूर्व देहात जिला अध्यक्ष नवीन शर्मा को गले लगाया है। स्वाभाविक है कि दोनों नेताओं के भाजपा में आने से पार्टी को लाभ मिलेगा। खुद मौजूदा देहात जिला अध्यक्ष डॉ. बी. पी. सारस्वत भी स्वीकार करते हैं कि भूतड़ा को पार्टी से बाहर किए जाने के बावजूद उन्होंने कभी पार्टी की खिलाफत नहीं की बल्कि पार्टी के कार्यकर्ताओं को अपने से जोड़ा रखा और खुद की देखरेख में पार्टी के कार्यक्रम भी आयोजित करते रहे। इसका भी उन्हें फायदा मिला और पार्टी में वापसी के लिए यह प्रयास उनके लिए मददगार बने।
बात अब मुद्दे की। भूतड़ा मात्र मुख्य धारा में शामिल होने मात्र के लिए नहीं लौटे हैं। उनकी पिछली गतिविधियों पर जरा नजर डालें तो यह साफ हो जाएगा कि उनकी महत्वाकांक्षा अब भी उछाल मार रही है। वे सोशल मीडिया पर लगातार इस प्रकार की पोस्ट डाल रहे थे, जिससे ये इशारा होता था कि मौजूदा विधायक शंकर सिंह रावत की तुलना में उनके विधायक कार्यकाल में ज्यादा विकास कार्य हुए हैं। इसका सीधा सा अर्थ था कि एक तो वे जनता में अपनी लोकप्रियता कायम रखना चाहते थे, साथ ही पार्टी के खिलाफ इसलिए नहीं बोले ताकि वापसी संभव हो सके। वे पार्टी के आदर्श पुरुष पंडित दीनदयाल का नाम जपते हुए वैतरणी पार करने की कोशिश करते रहे। भले ही मौजूदा विधायक शंकर सिंह रावत ने उनके भाजपा में लौटने का स्वागत किया हो, मगर वह औपचारिक सा है। वे जानते हैं कि भूतड़ा इस बार फिर दावेदारी करेंगे। सच तो ये है कि भूतड़ा की वापसी होना उनके लिए नागवार गुजरा होगा, क्योंकि शहर व देहात की राजनीति के चलते दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा है। भला खुद के खिलाफ बगावत करने वाले नेता को कोई कैसे बर्दाश्त कर सकता है। दोनों के बीच कैसे संबंध हैं, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि भूतड़ा कर निर्वासन समाप्त होने पर एक ओर जहां आम शहरी भाजपा कार्यकर्ता में खुशी की लहर देखी गई, वहीं रावत लॉबी के छुटभैये औपचारिक स्वागत करने भी आगे नहीं आए।
वैसे आम राजनीतिक धारणा है कि इस बार संभवतया रावत टिकट हासिल करने में कामयाब न हो पाएं, ऐसे में भूतड़ा का भाग्य खुल सकता है। रावत के टिकट में संशय इस कारण बना है क्यों कि उनके सीनियर होने के बावजूद पहली बार पुष्कर से जीते सुरेश रावत को संसदीय सचिव बना दिया गया। अर्थात मुख्यमंत्री वसुंधरा के साथ उनकी ट्यूनिंग नहीं रही। यूं जनता के हित में उन्होंने ब्यावर को जिला बनाने की मांग को लेकर खूब मशक्कत की, मगर वसुंधरा की फटकार पर उन्हें अपना आंदोलन समाप्त करना पड़ा।
तथ्यात्मक जानकारी के लिए आपको बता दें कि 18 नवंबर 2013 को भाजपा प्रत्याशियों के सामने बागी के रूप में चुनाव मैदान में उतरने पर पार्टी ने शर्मा व भूतड़ा को 6 साल के लिए निष्कासित करने की घोषणा की गई थी।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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