शहर के जाने-माने राजनीतिक व प्रशासनिक पंडित एडवोकेट राजेश टंडन ने एक बार फिर सोशल मीडिया में साध्वी अनादि सरस्वती का नाम आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर की सीट के लिए उछाल दिया है। चूंकि वे पेशे से पत्रकार नहीं हैं, इस कारण उनके शब्द विन्यास में पत्रकारिता की बारीक नक्काशी नहीं होती, मगर जो भी अनगढ़ शैली में कंटेंट होता है, उस पर गौर करना ही होता है। खबर में ही व्यंग्य, चुटकी व तंज का अनूठा पुट डाल देते हैं, जिससे वह रोचक बन पड़ती है। अनादि सरस्वती के बारे में उनकी पोस्ट का पोस्टमार्टम करने का इसलिए जी चाहता है कि उनके पास शहर व राज्य के कई महत्वपूर्ण राजनीतिक व प्रशासनिक तथ्य होते हैं। कदाचित वे एक मात्र ऐसे बुद्धिजीवी हैं, जो न केवल हर ताजा हलचल पर नजर रखते हैं, अपितु सोशल मीडिया पर शाया भी करते हैं।
खैर, पहले उनकी पोस्ट पर नजर डालते हैं:-
जय हो मां अनादि सरस्वती जी की, इस बार अजमेर नॉर्थ से विधानसभा का चुनाव भाजपा के टिकट पर लडऩे की सर्वत्र चर्चा है, आलाकमान की मंजूरी व मजबूरी, दोनों ही हैं, जातीय समीकरण भी पक्ष में हैं, और पार्टी का नीतिगत निर्णय है, साधु सन्यासियों को ज्यादा से ज्यादा टिकट देने हैं, हिंदुत्व का कार्ड फिर से खेलना है, इसलिये अनादि सरस्वती को भाजपा के हर समारोह में मंचासीन किया जाता है, योजनाबद्ध तरीके से, और आलाकमान व संघनिष्ठों के आदेश से, स्वयं अनादि जी में भी ग्लो व ग्लैमर है, आकर्षक व मोहक तथा कुशल वक्ता हैं और वाक पटु हैं और साथ ही वे स्वयं कुशल ऑर्गेनाइजर हैं तथा आजकल कई बड़े-बड़े आयोजक एव राजनीतिज्ञ साथ लग गये हैं, शुभकामनाएं।
देखा, कितने दिलकश अंदाज में उन्होंने अपनी बात कही है। अव्वल तो अपुन यह साफ कर दें कि खुद अनादि सरस्वती ने कहीं भी यह नहीं दर्शाया है कि उनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा है भी या नहीं। वे कुशल वक्ता व वाक् पटु तो हैं, मगर वाचाल नहीं, सीमित बोलती हैं, इस कारण कहीं भी ये पकड़ में नहीं आया कि वे राजनीति की दिशा में जा रही हैं। हां, उनके एक्ट से यह अनुमान जरूर लगाया जा सकता है कि संघ उनको प्रोजेक्ट करने के मूड में है। हालांकि संघ वालों के मन को भांपना देवताओं भी बस में भी नहीं, मगर जिस तरह से पिछले दिनों वे संघ व भाजपा पोषित मंचों के अतिरिक्त सामाजिक मंचों पर दिखाई दी हैं, उससे उनके साइलेंट एजेंड पर शक होता है। वे मूलत: आध्यात्म के क्षेत्र से हैं और पिछले कुछ वर्षों से यकायक जिस तरह से छा कर गिनी-चुनी संभ्रांत शख्सियतों में शुमार हुई हैं, वह वाकई चौंकाने वाला है। विद्वता एक मूल वजह है, लोकप्रिय होने की, मगर उनका खूबसूरत व्यक्तित्व भी हर किसी को अपनी ओर खींचता है। महिला होने का एडवांटेज तो है ही।
टंडन जी ने जिन तथ्यों को आधार बनाया है, उनमें थोड़ा दम है। एक तो वे सिंधी हैं और अजमेर उत्तर की सीट पर भाजपा सदैव किसी सिंधी को प्रत्याशी बनाती रही है। वे महिला भी कोटा पूरा करती हैं, जिसके प्रति आम तौर पर मतदाता का सहज रुझान होता है। खूबसूरती सोने में सुहागा है। वे इस कारण भी सुपरिचित हैं, क्योंकि फेसबुक व वाटृस ऐप पर छायी रहती हैं। पिछले कुछ दिनों से संघनिष्ठों से उनकी नजदीकी यह भान कराती है कि उनकी विचारधारा हिंदुत्व को पोषित करती है। जैसा कि नजर आ रहा है कि भाजपा इस बार फिर हिंदुत्व का एजेंडा आगे ला सकती है, क्योंकि एंटीइंकंबेंसी फैक्टर तगड़ा काम कर रहा है, ऐसे में किसी साध्वी को अगर मैदान में उतारा जाता है तो उसमें कोई आश्चर्य वाली बात नहीं होगी।
मगर सवाल ये कि अगर संघ वाकई उन पर काम कर रहा है तो मौजूदा विधायक व शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी का क्या होगा? क्या संघ पत्ता बदलने के मूड में है? क्या देवनानी का टिकट काटना इतना आसान है? क्या देवनानी इतनी आसानी से सीट छोड़ देंगे? जानकारी तो ये है कि पिछले दिनों भी जब अनादि का नाम अफवाहों में आया था तो जैसा कि राजनीति में होता है, कुछ लोगों ने उनकी कुंडली के रहस्य जुटाना शुरू कर दिए थे। कहते हैं न कि अगर आपको अपने पुरखों के बारे में जानकारी न हो तो अपना नाम टिकट की दावेदारी में पेश कर दो, लोग आपकी सात पीढ़ी की कारगुजारियों को ढूंढ़ निकालेंगे। यही वजह है कि संघ ने कहीं भी यह अहसास नहीं कराया कि उसका अनादि के बारे में क्या दृष्टिकोण है। मगर टंडन जी ने जिस तरह से लिखा है कि अनादि सरस्वती को भाजपा के हर समारोह में मंचासीन किया जाता है, योजनाबद्ध तरीके से, तो कान खड़े होते हैं। हो सकता है कि यह कयास मात्र हो, मगर इस खबर में रोचकता तो है, लिहाजा इसकी पॉलिश कर आपकी सेवा में प्रस्तुत की है।
खैर, पहले उनकी पोस्ट पर नजर डालते हैं:-
जय हो मां अनादि सरस्वती जी की, इस बार अजमेर नॉर्थ से विधानसभा का चुनाव भाजपा के टिकट पर लडऩे की सर्वत्र चर्चा है, आलाकमान की मंजूरी व मजबूरी, दोनों ही हैं, जातीय समीकरण भी पक्ष में हैं, और पार्टी का नीतिगत निर्णय है, साधु सन्यासियों को ज्यादा से ज्यादा टिकट देने हैं, हिंदुत्व का कार्ड फिर से खेलना है, इसलिये अनादि सरस्वती को भाजपा के हर समारोह में मंचासीन किया जाता है, योजनाबद्ध तरीके से, और आलाकमान व संघनिष्ठों के आदेश से, स्वयं अनादि जी में भी ग्लो व ग्लैमर है, आकर्षक व मोहक तथा कुशल वक्ता हैं और वाक पटु हैं और साथ ही वे स्वयं कुशल ऑर्गेनाइजर हैं तथा आजकल कई बड़े-बड़े आयोजक एव राजनीतिज्ञ साथ लग गये हैं, शुभकामनाएं।
देखा, कितने दिलकश अंदाज में उन्होंने अपनी बात कही है। अव्वल तो अपुन यह साफ कर दें कि खुद अनादि सरस्वती ने कहीं भी यह नहीं दर्शाया है कि उनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा है भी या नहीं। वे कुशल वक्ता व वाक् पटु तो हैं, मगर वाचाल नहीं, सीमित बोलती हैं, इस कारण कहीं भी ये पकड़ में नहीं आया कि वे राजनीति की दिशा में जा रही हैं। हां, उनके एक्ट से यह अनुमान जरूर लगाया जा सकता है कि संघ उनको प्रोजेक्ट करने के मूड में है। हालांकि संघ वालों के मन को भांपना देवताओं भी बस में भी नहीं, मगर जिस तरह से पिछले दिनों वे संघ व भाजपा पोषित मंचों के अतिरिक्त सामाजिक मंचों पर दिखाई दी हैं, उससे उनके साइलेंट एजेंड पर शक होता है। वे मूलत: आध्यात्म के क्षेत्र से हैं और पिछले कुछ वर्षों से यकायक जिस तरह से छा कर गिनी-चुनी संभ्रांत शख्सियतों में शुमार हुई हैं, वह वाकई चौंकाने वाला है। विद्वता एक मूल वजह है, लोकप्रिय होने की, मगर उनका खूबसूरत व्यक्तित्व भी हर किसी को अपनी ओर खींचता है। महिला होने का एडवांटेज तो है ही।
टंडन जी ने जिन तथ्यों को आधार बनाया है, उनमें थोड़ा दम है। एक तो वे सिंधी हैं और अजमेर उत्तर की सीट पर भाजपा सदैव किसी सिंधी को प्रत्याशी बनाती रही है। वे महिला भी कोटा पूरा करती हैं, जिसके प्रति आम तौर पर मतदाता का सहज रुझान होता है। खूबसूरती सोने में सुहागा है। वे इस कारण भी सुपरिचित हैं, क्योंकि फेसबुक व वाटृस ऐप पर छायी रहती हैं। पिछले कुछ दिनों से संघनिष्ठों से उनकी नजदीकी यह भान कराती है कि उनकी विचारधारा हिंदुत्व को पोषित करती है। जैसा कि नजर आ रहा है कि भाजपा इस बार फिर हिंदुत्व का एजेंडा आगे ला सकती है, क्योंकि एंटीइंकंबेंसी फैक्टर तगड़ा काम कर रहा है, ऐसे में किसी साध्वी को अगर मैदान में उतारा जाता है तो उसमें कोई आश्चर्य वाली बात नहीं होगी।
मगर सवाल ये कि अगर संघ वाकई उन पर काम कर रहा है तो मौजूदा विधायक व शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी का क्या होगा? क्या संघ पत्ता बदलने के मूड में है? क्या देवनानी का टिकट काटना इतना आसान है? क्या देवनानी इतनी आसानी से सीट छोड़ देंगे? जानकारी तो ये है कि पिछले दिनों भी जब अनादि का नाम अफवाहों में आया था तो जैसा कि राजनीति में होता है, कुछ लोगों ने उनकी कुंडली के रहस्य जुटाना शुरू कर दिए थे। कहते हैं न कि अगर आपको अपने पुरखों के बारे में जानकारी न हो तो अपना नाम टिकट की दावेदारी में पेश कर दो, लोग आपकी सात पीढ़ी की कारगुजारियों को ढूंढ़ निकालेंगे। यही वजह है कि संघ ने कहीं भी यह अहसास नहीं कराया कि उसका अनादि के बारे में क्या दृष्टिकोण है। मगर टंडन जी ने जिस तरह से लिखा है कि अनादि सरस्वती को भाजपा के हर समारोह में मंचासीन किया जाता है, योजनाबद्ध तरीके से, तो कान खड़े होते हैं। हो सकता है कि यह कयास मात्र हो, मगर इस खबर में रोचकता तो है, लिहाजा इसकी पॉलिश कर आपकी सेवा में प्रस्तुत की है।