मंगलवार, 1 अप्रैल 2025
भगवान को भगवान ने बुला लिया अपने पास
अजमेर में जेएलएन मेडिकल कॉलेज व अस्पताल के कार्डियोलॉजी यूनिट के एचओडी वरिष्ठ आचार्य डॉ. राकेश महला प्राणदाता थे। हजारों रोगियों के प्राण बचाए उन्होंने। कैसी विडंबना है कि जिस रोग से निजात दिलाने में वे पारंगत थे, उसी रोग ने उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लिया। वे कार्डियक और रीनल डिजीजेज से जूझ रहे थे। उपचार के दौरान गुरुग्राम के मेदांता हॉस्पिटल में उनका निधन हो गया। उनका निधन हृदयविदारक है, जिसकी पूर्ति नितांत असंभव है। जिन्होंने उनके माध्यम से जीवन बचा लिया, वे उन्हें भगवान सदृश मानते हैं। वे अत्यंत सहज व विनम्र थे। विशेष रूप से गरीबों के लिए मसीहा थे। एंजियोग्राफी व एंजियोप्लाटी के सिद्धहस्त। उनकी विशेषज्ञता का पूरे राजस्थान में कोई सानी नहीं। एसएमएस अस्पताल, जयपुर में 93 बैच के डॉ. महला के अजमेर आने के बाद यहां हार्ट के मरीजों को बहुत राहत मिल रही थी। इससे पहले हर मरीज को जयपुर रेफर कर दिया जाता था। उन्होंने दो बार बैलून माइट्रल वैल्वोट्रॉमी के ऑपरेशन करके रिकॉर्ड बनाया। खान-पान में लापरवाही और कोराना इफैक्ट के चलते हृदय रोगियों की संख्या लगातार बढती ही जा रही है। ऐसे में उनकी अभी बहुत अधिक जरूरत थी। मगर, अफसोस, पूरे जगत को प्राण देने वाले ने उनको हमसे हठात छीन लिया। प्रमाणित हो गया कि जैसे अच्छे इंसान हमे प्रिय हैं, वैसे ही भगवान को भी अच्छे लोग अतिप्रिय हैं। अपने पास बुला लेते हैं। डॉ. विद्याधर महला के सुपुत्र डॉ. राकेष महला की धर्मपत्नी डॉ. आरती महला गायनोकोलॉजिस्ट हैं। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल डॉ. राकेश महला के निधन पर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
मरहूम सूफी संत भी करते हैं दरगाह जियारत?
दोस्तो, नमस्कार। तकरीबन बीस पहले की बात है। एक सज्जन उर्स के दौरान यूपी से अजमेर में दरगाह जियारत को आए थे। वे यहां कुछ माह ठहरे। मेरी उनसे कई बार मुलाकात हुई। षहर जिला कांग्रेस के प्रवक्ता मुजफ्फर भारती और मरहूम जनाब जुल्फिकार चिष्ती के साथ। वे विद्वान थे। कई विधाओं के जानकार। बहुत संजीदा। निहायत सज्जन। उनके चेहरे से नूर टपकता था। मुझे उनका नाम अब याद नहीं। उनसे अनेक आध्यात्मिक विशयों पर चर्चा हुई। उन्होंने बताया कि उर्स के दौरान दुनिया भर के मरहूम सूफी संत ख्वाजा साहब की दरगाह की जियारत करने को आते हैं। वे यहां अकीदत के साथ हाजिरी देते हैं। जैसे मजार षरीफ के चारों ओर जायरीन का हुजूम होता है, वैसे ही मरहूम सूफी संतों का भी जमावडा होता है। जाहिर तौर पर वे अदृष्य होते हैं। आम आदमी को उन्हें देखना संभव नहीं होता। मगर आत्म ज्ञानियों को वे नजर आते हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें भी उनके दर्षन होते हैं। स्वाभाविक रूप से इस रहस्यपूर्ण तथ्य को मानना वैज्ञानिक दृश्टि से ठीक नहीं है। मगर जितने यकीन के साथ उन्होंने यह जानकारी दी तो लगा कि षायद वे सही कह रहे होंगे। उन्होंने बताया कि ख्वाजा साहब को सुल्तानुल हिंद इसीलिए कहा जाता है कि वे भारत भर के सूफी संतों के सरताज हैं। उनकी अलग ही दुनिया है, जिसके वे बादषाह हैं। कदाचित आप इस पर यकीन नहीं करें। मुझे मिली जानकारी को आपसे साझा करने मात्र की मंषा है।
https://youtu.be/Wx_tC7ItgZM
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