शुक्रवार, 14 मार्च 2025

बुरा न मानो होली है

लाल फीता


लोकबंधु, जिला कलेक्टर- मौनी बाबा
वंदिता राणा, पुलिस अधीक्षक- आयरन लेडी
गजेन्द्र सिंह- आम आदमी
ज्योति ककवानी- काम से काम
सुरेश सिंधी- राजनीति का चस्का
भानु प्रताप गुर्जर- जय बाबा देवनानी की
संतोष प्रजापति- संतोषी सदा सुखी

शतरंज के खिलाडी
सचिन पायलट- उडान की उम्मीद
भागीरथ चौधरी- लंबी छलांग
भूपेंद्र यादव- अबूझ पहेली
वासुदेव देवनानी- मुकद्दर का सिकंदर
सुरेश रावत- पुष्कर किंग
रघु शर्मा- परशुराम
ओंकार सिंह लखावत- धरोहर का पट्टा
धर्मेंद्र सिंह राठौड़- गुरिल्ला
सुशील कंवर पलाड़ा- सौभाग्यवति
रिजू झुंझुनवाला- पलटीमार
अनीता भदेल- कल्पित मुख्यमंत्री
रामस्वरूप लांबा- मस्तमौला
रामनारायण गूजर- इमारत कभी बुलंद थी
डॉ प्रभा ठाकुर- हाशिये पर
सुरेश टाक- काठ की हांडी
शंकर सिंह रावत- पर्ची नहीं खुली
राकेश पारीक- पायलट जिंदाबाद
महेंद्र गुर्जर- मेरा क्या होगा?
ब्रजलता हाडा- ना काहू से बैर
धर्मेंद्र गहलोत- हार नहीं मानूंगा
वंदना नोगिया- भाग्य के भरोसे
भंवर सिंह पलाड़ा- बेताज बादशाह
प्रो. बी. पी सारस्वत- शनि दोष
शिव शंकर हेडा- गोडावण
रामचंद्र चौधरी- अभी तो मैं जवान हूं
जसराज जयपाल- जगत डैडी
श्रीकिशन सोनगरा- वो भी क्या दिन थे
हेमंत भाटी- हार्ड लक
राजकुमार जयपाल- खुद के दम पर
नाथूराम सिनोदिया- देहाती अंदाज
पुखराज पहाडिया - ढाई घर की चाल
श्रीमति सरिता गैना - वक्त का इंतजार
श्रीमति वंदना नोगिया - फिर लहर आएगी
किशन गुर्जर - अगली बार का इंतजार
ओम प्रकाश भडाना - बाजी मार ली
कमल पाठक - जमींदार
राजेश टंडन- वन मेन आर्मी
डॉ प्रियशील हाडा- नई भूमिका को तैयार
विजय जैन- पेंडुलम
भूपेंद्र राठौङ- टाइम पास
अरविंद यादव- किस्मत के धनी
धर्मेश जैन- प्यास अभी बाकी है
नीरज जैन- फटे में टांग
संपत सांखला- कछुआ चाल
महेंद्र सिंह रलावता- हम किसी से कम नहीं
देवीशंकर भूतड़ा- ब्यावर नरेश
कमल बाकोलिया- एंटिक
नसीम अख्तर- अमीबा
विकास चौधरी - कभी तो लहर आएगी
सुरेन्द्र सिहं शेखावत- हमको भी जाती है क्रेडिट
डॉ. श्रीगोपाल बाहेती- मात्र एक चूक
हरीश झामनानी-जाहि विधि रोखे राम
हाजी कयूम खान- उम्मीद बाकी है
सत्य किशोर सक्सेना- इमारत कभी बुलंद थी
हरी सिंह गुर्जर- सेचुरेटेड
नरेन शाहनी भगत- घूरे के दिन भी फिरते हैं
संग्राम सिंह गुर्जर- साहब का लाडला
राजू गुप्ता.- धीरे धीरे रे मना
ब्रम्हदेव कुमावत- वो भी क्या दिन थे
शक्ति प्रताप सिंह पीपरोली - अंगद
बाबूलाल सिघांरिया- वक्त का इंतजार
सतीश बंसल- सदाबहार
कंवल प्रकाश किशनानी- चस्का कायम है
गजवीर सिंह चुंडावत- छींका टूटने का इंतजार
स्वामी अनादि सरस्वती- बुरी फंसी राजनीति में आ कर
भारती श्रीवास्तव- बिंदास
अमोलक सिंह छाबड़ा- बुलंद आवाज
प्रताप यादव- बेटी में भविष्य की तलाश
नरेंद्र सत्यावना- अफलातून
कैलाश झालीवाल- किनारे पर नाव
द्रोपदी कोली- मत चूके चौहान
श्रवण टोनी- धरती पकड
चन्द्रशेखर बालोटिया काकू- पेट में दाढी
सुनील केन- खिलाडी
शैलेन्द्र अग्रवाल- राडौड बाबा जिंदाबाद
गजेन्द्र सिंह रलावता- दाई माई
रमेश सोनी- जय बाबा देवनानी
देवेन्द्र सिंह शेखावत- लंबी रेस का घोडा
नौरत गुर्जर- अंगूर खट्टे हैं
विकास सोनगरा- विरासत के भरोसे
ज्ञान सारस्वत- मांद में शेर
महेश ओझा- चाइना वाल
डॉ सुरेश गर्ग- आठ सोलह का पाना
सर्वेश पारीक- जोडी जिंदाबाद
बिपिन बेसिल- पट्टा लिखा लाया हूं
श्याम प्रजापति - जैन की छाया

दुकानदार

सुनील दत्त जैन - मन की मन में
सीताराम गोयल- उंचे सपने
मनोज मित्तल- कसक बाकी है
राधेश्याम चोयल- लंबी छलांग
अशोक रावत- भावी दावेदार
जगदीश वच्छानी- कभी तूती बोलती थी
कोसिनोक जैन - मैनेजर
धनराज चौधरी- साजिश का शिकार
अतुल दुबे - लंबी लकीर
जे पी दाधीच- टापू किंग
रासबिहारी गौड़- पद्मश्री की आस
उमरदान लखावत- तटस्थ
सूर्य प्रकाश गांधी- वकील कम पत्रकार ज्यादा
अतुल दुबे- तीन लोक से मथुरा न्यारी
लाखन सिंह- ड्रामा ही जिंदगी
दिलीप पारीक- आवाज का जादूगर
मधु खंडेलवाल- लेखिका क्वीन
दिशा किशनानी- लेडी लीडर
गोपाल बंजारा- ठीयेबाज
कृष्ण गोपाल पाराशर- घुंघरू
विष्णु अवतार भार्गव- छुपा रुस्तम
विवेक पाराशर- वकील कम राजनीतिज्ञ ज्यादा
संदीप धाबाई- पाला बदल लिया
प्रशांत यादव- उछल कूद

कलमतोड

डी .बी चौधरी- भीष्म पितामह
नरेंद्र चौहान- ना काहू से दोस्ती
डॉ रमेश अग्रवाल - लौ कायम है
आनंद ठाकुर- अजमेर रास आ गया
गिरधर तेजवानी- साधू बाबा
राजेन्द्र गुंजल चाणक्य
ओम माथुर- झुकना मंजूर नहीं
सुरेंद्र चतुर्वेदी- डब्ल्यू डब्ल्यू एफ
एस पी मित्तल- ब्लॉगिंग आदत या मजबूरी
सुरेश कासलीवाल- इनाम दर इनाम
राजेंद्र शर्मा- अल्लाह की गाय
प्रताप सनकत- गायक कलाकार
प्रेम आनंदकर- देवनानी जी की जय
संजय माथुर- साहब का कृपापात्र
अशोक शर्मा- हिटलर
नरेंद्र भारद्वाज- घाव करें गंभीर
विनीत लोहिया- खेल राजनीति से दूर
राजेंद्र याग्निक- वास्तविक पंडित
प्यारे मोहन त्रिपाठी- पीआर मास्टर
गोपाल सिंह लबाना- धीरे धीरे रे मना
त्रिलोक जैन- वजूद की खातिर
आरिफ कुरैशी- खादिम
युगलेश शर्मा- मेहनत पर भरोसा
क्षितिज गौड - क्षितिज दूर है
दिलीप शर्मा- भोला भंडारी
सुरेश लालवानी- मस्त मौला
विक्रम चौधरी- जिंदगी ऐसे जियो
धर्मेन्द्र प्रजापति- पुलिस की नब्ज
मनीष चौहान- काम से काम
पवन अटारिया- उठाउ चूल्हा
इन्द्रशेखर भटनागर - वॉट्सएप न्यूज
दिलीप मोरवाल- जेएलएन ही जिंदगी
योगेश सारस्वत- हर जगह फिट
अतुल सिंह बाग- सबसे अलग
बलजीत सिंह- नींव की ईंट
निर्मल मिश्रा- जवानी कायम है
संतोष खाचरियावास- संतोषी जीव
बृजेश शर्मा- पानी रास आ गया
रक्तिम तिवारी- राजपूत
गिरीश दाधीच- ज्योतिषी
रजनीश रोहिल्ला- जड अभी जिंदा है
सी पी जोशी- मुकाम पा लिया
रजनीश शर्मा- बस नौकरी
पी के श्रीवास्तव- हमारे भी किस्से थे
मनोज दाधीच- जादूगर
नरेश राघानी- ऊंची दुकान
जाकिर हुसैन- ख्वाहिश कुछ और है
विजय मौर्य- गहरी चाल
अनिल माहेश्वरी- जुगाडू
गजेंद्र बोहरा- अफलातून
अभिजीत दवे- एक घर बसाउंगा
मनवीर सिंह चुंडावत- लंबी छलांग
आनंद शर्मा - गुरूओं का गुरू
प्रियांक शर्मा- जो हम से टकराएगा
नवाब हिदायत उल्ला- सेटिंग मास्टर
बालकिशन शर्मा- देखन में छोटे लगें
डॉ राशिका महर्षि- स्टील लेडी
अनुराग जैन- लंबी कहानी
कौशल जैन- हम नहीं ठहरेंगे
आशु कौशिक- हंगामा है क्यूं बरपा
दीपक शर्मा- एकला चालो रे
मुकेश परिहार- पेट में दाढी
जय मखीजा- आपका दोस्त
चंद्रशेखर शर्मा - दूर का दर्शन
संजय गर्ग- सबसे फास्ट
अशोक सिंह भाटी- मूंछ पर ताव
शुभम जैन- बडा दुकानदार
दुर्गेश डाबरा- हुकम का गुलाम
रूपेंद्र शर्मा- तोकू कोई और नहीं
नजीर कादरी- छपासियों का इलाज
मोहन ठाडा- हम किसी से कम नहीं
राजकुमार वर्मा- पुराना चावल
आरजू प्रजापत- फेमस ऐंकर


https://ajmernama.com/chaupal/428505/

स्मार्ट अजमेर बैंड कंपनी

अजमेर ब्रॉस बैंड कंपनियों के लिए प्रसिद्ध है। इन दिनों स्मार्ट अजमेर बैंड कंपनी एक्टिव है। खूब हल्ला मचा रखा है। सेवन वंडर्स के निधन पर मातमी धुन बजा रही है। किसी को मातमी धुन सुनाई देती है तो किसी का जश्न सा आभार करवा रही है। कोई ढोल बजा रहा है तो कोई पींपाडी, कोई नक्कार से हाहाकार मचा रहा है तो कोई तूती से काम चला रहा है। कंपिटीशन छिडा हुआ है। हर कोई दूसरे से आगे निकलना चाहता है। पुष्कर की कपडा फाड होली जैसी प्रतिस्पर्द्धा है। परस्पर विरोधी तर्क इतने उलझे हैं कि पता ही नहीं चल रहा कि सच क्या है और झूठ क्या? आंकडों के मायाजाल ने आम अजमेरी को कन्फ्यूज करके रख दिया है। लानत अफसरों पर भेज रहे हैं और भिडे हुए आपस में हैं। अरे भाई, जब सेवन वडर्स के लिए अफसरशाही को दोषी ही मानते हो, कि उन्होंने आपकी एक नहीं चलने दी तो आपस में काहे को एक दूसरे को भेंटी मार रहे हो। इससे क्या हासिल हो जाएगा? यह देख अफसर मन ही मन खुश हैं। वे यही तो चाहते हैं। तभी तो कहते हैं कि दो बंदरों की लडाई में बिल्ली माल खाती रहती है। यही अजमेर की फितरत है। अजमेर का इतिहास है। हम कभी नहीं सुधरेंगे।

सवाल ये है कि अजमेर इस काले अध्याय का असली जिम्मेदार कौन है? केवल अफसरों को गाली देना कितना जायज है? अफसर तो लालफीताशाही के आदी हैं, मगर क्या आपकी सामूहिक जिम्मेदारी नहीं बनती थी? क्या केवल मुट्ठी तान लेना ही काफी था? कोरी बयानों में वीरता नाकाफी थी। क्या कभी मतभेद भुला कर कोई आंदोलन किया? या याचक की तरह मांग मात्र करके इतिश्री कर ली। तभी तो कहते हैं कि हक मांगने से नहीं, छीनने से मिलता है। अगर आपकी आवाज नहीं सुनी गई तो यह आपके जननायक होने पर संदेह पैदा करता है। गर सच में चाहते हो कि दोषियों को सजा होनी चाहिए तो पौरुष जगाना होगा। रहा सवाल मूकदर्शक अजमेरी लालों का, तो उसे समझ ही नहीं आता कि कब सियापा किया जाए और कब जश्न मनाया जाए। बेचारे मीडिया ने अपनी ड्यूटी बखूबी निभाई, मगर उसकी तासीर पहले सी नहीं रही। शासन प्रशासन के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। एक कान से सुनता है, दूसरे कान से निकाल देता है।

सात अजूबे

 संपत सांखला होंगे एडीए अध्यक्ष


कानाफूसी है कि अजमेर नगर निगम के पूर्व डिप्टी मेयर संपत सांखला को अजमेर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया जा रहा है। बताया जाता है कि एकाधिक दावेदारों के बीच जबरदस्त खींचतान मची हुई है। सांखला प्रत्यक्षतः इस दौड में नजर नहीं आते। मगर बताते हैं कि उनकी ताजपोशी का ब्ल्यू प्रिंट तैयार किया गया है। समझा जा सकता है कि चौसर बिछाने वाला मास्टर माइंड कौन होगा, जो शह और मात का खेल बखूबी जानता है। जाहिर तौर पर इसके लिए एक नया सियासी तानाबाना बुना जा रहा है, जिसके अजमेर की राजनीति में दूरगामी परिणाम आ सकते हैं। बताया जाता है कि रमेश सोनी को दुबारा शहर जिला भाजपा अध्यक्ष बनाया ही इसलिए गया कि एडीए की सीट खाली रखी जाए, वरना उनके मुकाबले कोई और सशक्त दावेदार था ही नहीं।


हेमंत भाटी का शहर कांग्रेस अध्यक्ष बनना पक्का

लंबे समय से रिक्त अजमेर शहर जिला अध्यक्ष पद, जिसे कि निवर्तमान के तौर पर विजय जैन ढो रहे हैं, जल्द ही भर दिया जाएगा। अनौपचारिक रूप से पद की जिम्मेदारी संभालते संभालते जैन थक गए हैं, मगर इस पद के प्रति उनका लगाव इतना गहरा हो गया है कि अब इसे छोडना नहीं चाहते। सोने का पिंजरा अमूमन उडने की चाह ही खत्म कर देता है। अलग अलग गुटों के दावेदार भी मशक्कत कर रहे हैं। नतीजतन फैसला होने में दिक्कत आ रही है। चूंकि वीटो सचिन पायलट के हाथ में है, इस कारण सभी उनका मुंह ताक रहे हैं। बताया जाता है कि उन्होंने हेमंत भाटी को होल्ड पर रखा हुआ है। मौका पडते ही वे यह पत्ता चल देंगे। 


धर्मेन्द्र सिंह राठौड की काट भंवरसिंह पलाडा

अजमेर में अभी दो विधानसभा सीटें हैं, मगर समझा जाता है कि परिसीमन के बाद तीन सीटें हो जाएंगी। तब अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित अजमेर दक्षिण व अघोषित रूप से सिंधियों के लिए आरक्षित अजमेर उत्तर के अतिरिक्त तीसरी सीट अनारक्षित रह जाएगी। आरटीडीसी के पूर्व अध्यक्ष धर्मेन्द्र सिंह राठौड की नजर उसी सीट पर है। इसीलिए अभी से हांफने वाली रफ्तार से दौड रहे हैं। योजनाबद्ध तरीके से जाजम बिछा रहे हैं। यूं तो भाजपा के पास एकाधिक दावेदार मौजूद हैं, मगर पार्टी में अंदरखाने चर्चा है कि राठौड का मुकाबला भंवर सिंह पलाडा ही कर पाएंगे। साम, दाम, दंड, भेद, हर लिहाज से।


पुखराज पहाडिया की नजर ब्यावर जिला परिषद पर

अजमेर के जिला प्रमुख रह चुके पुखराज पहाडिया यूं तो एडीए अध्यक्ष बनना चाहते हैं, मगर इस सीट को लेकर बडे झगडे हैं। दौड में नंबर वन हैं, मगर राजनीति में नंबर वन को ही टंगडी लगती है। यह बात अनुभवी पहाडिया भलीभांति जानते हैं। इसीलिए अपनी जेब में सेकंड प्लान रखे हुए हैं। फिलवक्त कहीं जाहिर नहीं होने दे रहे कि उनकी रुचि ब्यावर में है, मगर भीतर ही भीतर ताना बाना बुन रहे हैं। उन्हें पंचायती राज व्यवस्था की गहरी जानकारी है। पिछली बार पार्टी हाईकमान की मर्जी के खिलाफ वार्ड मेंबरों को अपने कब्जे में लेकर पूरे दमखम से जिला प्रमुख बने। फिर अविश्वास प्रस्ताव आया तो इस चतुर राजनीतिज्ञ ने अपने रणनीतिक कौशल को प्रदर्षन कर दिखाया। अगर ब्यावर जिला प्रमुख बनने की ठान ली तो उन्हें कोई नहीं रोक पाएगा।


धर्मेश जैन होंगे मार्गदर्शक मंडल में

अजमेर यूआईटी के अध्यक्ष रहे धर्मेश जैन की पार्टी की लंबे समय से सेवाओं को देखते हुए भाजपा मार्गदर्शक मंडल में शामिल किया जा रहा है। पार्टी चाहती है कि उनके गहन अनुभव का लाभ लिया जाए। हालांकि वे अब भी चाहते हैं कि पिछले कार्यकाल में अधूरे रहे कामों को पूरा कर अजमेर को आदर्श शहर बनाएं, मगर गंगा का पानी बहुत बह गया है। जमीन पर हालात बदल गए हैं। मगर जयपुर से लेकर दिल्ली तक उनकी पकड अब भी बरकरार है। सीधे नरेन्द्र मोदी तक पहुंच है। पार्टी के बडे नेता भी चाहते हैं कि उनकी योग्यता का लाभ उठाया जाए। इसीलिए उन्हें मार्गदर्शक मंडल में शामिल किए जाने पर विचार किया जा रहा है। वस्तुतः उनके जितना सीनियर कोई नेता नहीं है। इसलिए अब भीष्म पितामह की ही भूमिका की उपयुक्त प्रतीत होती है। वैसे बनती कोशिश वे स्वयं नहीं तो पुत्र अमित जैन को एडजस्ट करवा कर ही मानेंगे।

बुरा न मानो होली है