अजमेर के बेशर्म नागरिकों में सफाई के प्रति कितनी जागरूकता है, इसका इजहार फेसबुक पर एक मित्र नरेन्द्र सिंह शेखावत ने कुछ इस प्रकार किया है:-पटेल मेदान के सामने से एक बारात जा रही थी। बारातियों को नाश्ता दिया था। एक ओर सेवादार सड़क को साफ कर चुके थे तो दूसरी और सभी बारातियों ने प्लेटें सड़क पर ऐसे फैंक दी मानों किसी कूड़ेदान का इस्तेमाल कर रहे हों। कुछ सेवादार यह सब देख कर मायूस हो गए। इस पर पास ही खड़े मित्र ने पूछा, यह देख कर कैसा लगा, उन्होंने कहा बहुत बुरा लगा। मित्र ने कहा यह तो आपने केवल यहां पर ही देखा है, अगर आप पूरे शहर में जाकर देखोगे, जहां आपने सफाई की है तो वहां पर भी ऐसा ही मिलेगा। इस पर सेवादार बोले कि हम क्या करें सर, हम तो हमारे गुरू के आदेश का पालन करते हैं।
आम जनता को भीड़ की संज्ञा देकर नजरअंदाज भी कर दिया जाए, मगर नगर निगम की कार्यप्रणाली तो कत्तई माफ करने लायक नहीं है। सफाई के लिए डेरा सच्चा सौदा की ओर से जो सहयोग की अपेक्षा थी, उस पर निगम खरा नहीं उतरा। हाल यह है कि सेवादारों के अजमेर से कूच करने के बाद अनेक जगहों पर कचरा ढ़ेर के रूप में पड़ा है। नगर निगम प्रशासन की उदासीनता के चलते नालों में उतरे सेवादारों को बिना गम बूट और बिना फावड़ों के गीला कचरा निकालना पड़ा। कचरा परिवहन के लिए लगाये गये ट्रेक्टर भी नदारद रहे। मात्र एक दिन के लिए आए सेवादारों ने उस सच को भी उघाड़ कर रख दिया है कि नगर निगम के सात सौ स्थाई व बारह सौ अस्थाई सफाई कर्मचारियों की फौज से काम लेने का जिम्मा जिन लोगों पर है, वे कितने कर्तव्यपरायण हैं।
असल में होना यह चाहिए था कि जब डेरा सच्चा सौदा का प्रस्ताव आया था तो जिला प्रशासन व निगम मेयर कमल बाकोलिया का इस स्वर्णिम मौके का फायदा उठाते हुए सफाई महाअभियान में अजमेर के नागरिकों की भागीदारी का सुझाव देना चाहिए था। अगर ऐसा होता तो इसमें कोई शक नहीं है कि अजमेर की अनेक स्वयंसेवी संस्थाएं आगे बढ़ कर सहयोग देने को तैयार हो जातीं। अब जब कि सांप निकल गया है तो यह सांप पीटने के समान ही है कि ये नहीं हुआ, वो नहीं हुआ, मगर इसका अर्थ ये भी नहीं है कि अजमेर की पूरी जनता बिलकुल ही बेशर्म है। अच्छे नागरिक भी हैं, पढ़-लिखे समझदार भी हैं, मगर उन्हें दिशा देने की न तो प्रशासन को सूझी और न ही निगम को। सच तो ये है कि उन्होंने एक शानदार मौका गंवा दिया। राजनीतिक दल भी अपने आप को अलग किए रहे। भाजपा ने सेवादारों का आभार जरूरत जताया, मगर हाथ बंटाने की बात वहां भी नहीं उपजी। अगर इस अभियान में स्थानीय जनता की भागीदारी भी होती तो इससे उसमें भी जागृति आती। मगर, अफसोस कि किसी की इस पर नजर नहीं गई।
असल में होना यह चाहिए था कि जब डेरा सच्चा सौदा का प्रस्ताव आया था तो जिला प्रशासन व निगम मेयर कमल बाकोलिया का इस स्वर्णिम मौके का फायदा उठाते हुए सफाई महाअभियान में अजमेर के नागरिकों की भागीदारी का सुझाव देना चाहिए था। अगर ऐसा होता तो इसमें कोई शक नहीं है कि अजमेर की अनेक स्वयंसेवी संस्थाएं आगे बढ़ कर सहयोग देने को तैयार हो जातीं। अब जब कि सांप निकल गया है तो यह सांप पीटने के समान ही है कि ये नहीं हुआ, वो नहीं हुआ, मगर इसका अर्थ ये भी नहीं है कि अजमेर की पूरी जनता बिलकुल ही बेशर्म है। अच्छे नागरिक भी हैं, पढ़-लिखे समझदार भी हैं, मगर उन्हें दिशा देने की न तो प्रशासन को सूझी और न ही निगम को। सच तो ये है कि उन्होंने एक शानदार मौका गंवा दिया। राजनीतिक दल भी अपने आप को अलग किए रहे। भाजपा ने सेवादारों का आभार जरूरत जताया, मगर हाथ बंटाने की बात वहां भी नहीं उपजी। अगर इस अभियान में स्थानीय जनता की भागीदारी भी होती तो इससे उसमें भी जागृति आती। मगर, अफसोस कि किसी की इस पर नजर नहीं गई।
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http://ajmernama.blogspot.in/2011/03/blog-post_2897.html
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-तेजवानी गिरधर, अजमेर