शनिवार, 26 अक्तूबर 2024

और भी रहे हैं ठीये-ठिकाने चौधर करने वालों के

पिछले किस्से में हमने नाले शाह की मजार का जिक्र किया था। दैनिक राज्यादेश व दैनिक मरु प्रहार के संपादक श्री गोपाल सिंह लबाना ने जानकारी दी है कि नाले शाह की मजार की तरह का ही एक और ठीया हुआ करता था। वे बताते हैं कि मदारगेट पर राधाकृष्ण गुरुदयाल मिष्ठान्न भंडार के पास बाटा की दुकान पर रात में चंद बुद्धिजीवी बतियाने को जमा हुआ करते थे। उनमें स्वयं लबाना के अतिरिक्त भभक पाक्षिक समाचार पत्र के भूतपूर्व संपादक व वरिष्ठ पत्रकार-ब्लॉगर श्री एस. पी. मित्तल के पिताश्री स्वर्गीय श्री कृष्णगोपाल गुप्ता, श्री केवल राम वासवानी, ईश्वर लालवानी आदि शामिल थे। तब रात बारह बजे दैनिक नवज्योति अखबार आ जाता था, जिसे पढ़-पढ़ा कर, टीका-टिप्पणियां करके ही सभा विसर्जित हुआ करती थी। वे बताते हैं कि तब क्लॉक टावर पुलिस थाने के कोने में इंडिया पान हाउस के सामने दुकान के शेड के नीचे दैनिक नवज्योति के वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय श्री श्याम जी व स्वर्गीय श्री जवाहर सिंह चौधरी के साथ भी बातों की हुक्केबाजी होती थी।

ऐसा ही पत्रकारों का अड्डा रेलवे स्टेशन के सामने स्थित शहर के जाने-माने फोटोग्राफर इन्द्र नटराज की दुकान पर भी सजता था, जहां विज्ञप्तिबाज विभिन्न अखबारों के लिए विज्ञप्तियां दे जाते थे। बौद्धिक विलास के लिए पत्रकारों का जमावड़ा जाने-माने पत्रकार श्री अनिल लोढ़ा के कचहरी रोड पर नवभारत टाइम्स के ऑफिस में भी होता था। वह पत्रकारिता की अनौपचारिक पाठशाला भी थी।

अखबार वालों व उनकी मित्र मंडली का नया ठिकाना वैशाली नगर में अजयमेरु प्रेस क्लब के रूप में विकसित हुआ है। यहां केरम खेलने व गीत-संगीत के बहाने बुद्धजीवी रोज इकत्र होते हैं। इसके अधिष्ठाता दैनिक भास्कर के स्थानीय संपादक डॉ. रमेश अग्रवाल हैं। इससे पहले यह गांधी भवन में हुआ करता था।

यूं सबसे बड़ा व ऐतिहासिक ठिकाना शुरू से नया बाजार चौपड़ रहा है। न जाने कितने सालों से यह चौराहा शहर की रूह है। यहां से शहर की दशा-दिशा, बहुत कुछ तय होता रहा है।

इसी प्रकार सबको पता है कि अजमेर क्लब शहर के संभ्रात लोगों, व्यापारियों व रईसों का आधिकारिक ठिकाना है। वर्षों से इसके महंत पूर्व विधायक डा. राजकुमार जयपाल हैं। वे बिना शोरगुल किए अपनी राजनीतिक पृष्ठभूमि व मधुर व्यवहार के दम पर इसका संचालन कर रहे हैं।

इसी प्रकार पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती के निवास स्थान की जाफरी वर्षों तक आबाद रही। यहां भी शहर की आबोहवा का थर्मामीटर हुआ करता था। अब वह शिफ्ट हो कर डॉक्टर साहब की क्लीनिक में आ गया है। इसी प्रकार धाकड़ कांग्रेस नेता श्री कैलाश झालीवाल का मदारगेट स्थित ऑफिस भी कई सालों से खबरनवीसों व कांग्रेस कार्यकर्ताओं का ठिकाना रहा है।

जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के सामने स्थित मुड्डा क्लब भी शहर के बातूनियों का ठिकाना रहा है। वहां भी राजनीति का तानाबाना नापा जाता था। इसी प्रकार पलटन बाजार के सामने झम्मू की होटल कॉफी के शौकीनों के लिए आकर्षण का केन्द्र रही। मूंदड़ी मोहल्ले का चौराहा भी बतरसियों की चौपाल रही है। दरगाह इलाके में अंदरकोट स्थित हथाई भी किस्सागोइयों का जमघट लगाती है। इसी तरह शाम ढ़लते ही सुरा प्रेमियों का जमघट ब्यावर रोड पर दैनिक न्याय के पास फ्रॉमजी बार में लगता था।


क्या मीडिया की सतत कवायद बेमानी तो नहीं?

पूरे राजस्थान में अजमेर के मीडिया की विषेश पहचान है। विषेश रूप से खोजपूर्ण पत्रकारिता में यह अग्रणी रहा है। अजमेर की ज्वलंत समस्याओं के लिए यहां का मीडिया षासन-प्रषासन को सतत जगाता रहता है, मगर चहुंओर समस्याओं का अंबार कभी खत्म होने का नाम ही नहीं लेता। स्थाई-अस्थाई अतिक्रमण पसरे हुए हैं। नालों को पाट दिया गया है। पहाडियों तक नहीं छोडा गया। अवैध बहुमंजिला इमारतें कुकुरमुत्तों की तरह पनप गई हैं। बेतरतीब यातायात लाइलाज प्रतीत होता है। पार्किंग की समस्या का समाधान होता ही नहीं दिखता। पानी की तो बात करना ही बेकार है। वह चिरस्थाई है। हम आदी हो चुके हैं। प्यास चाहे न बुझी हो, मगर जलभराव छप्पर फाड कर होने लगा है। दरगाह और पुश्कर के नाम पर भरपूर धन राषि आती है, मगर धरातल पर विकास कितना हुआ है, किसी से छुपा नहीं है। आनासागर की दुर्गति, जलकुंभी की विकरालता, सीवरेज योजना की नाकामी, स्मार्ट सिटी के नाम पर हुई मनमानी इस षहर का दुर्भाग्य नहीं है तो क्या है?

कभी कभी ऐसा लगता है कि क्या हमारे जागरूक मीडिया कर्मियों की हैमरिंग बेमानी तो नहीं?