यह इतिहास लिखने की परंपरा कब शुरू हुई, इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है, लेकिन तीर्थ पुरोहितों के पास मौजूद रिकार्ड से अनुमान लगाया जा सकता है कि इतिहास को लिपिबद्ध करने का क्रम एक हजार साल से भी पहले शुरू हुआ होगा। कई पुरोहितों के पास ग्यारह सौ साल पहले के भोज-पत्र व ताम्र-पत्र मौजूद हैं, जिन पर राजा-महाराजाओं के हुक्मनामे अंकित हैं। तीर्थ पुरोहितों की निजी संपत्ति होने के कारण पुरातत्व विभाग इनको संरक्षित रखने को कोई कदम नहीं उठा पाया है। तीर्थ पुरोहितों के पास भी इन्हें सुरक्षित रखने के पर्याप्त साधन नहीं हैं।
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