उन्हें गत 19 दिसंबर 2021 को शिमला में अखिल भारतीय शैक्षिक महासंघ की ओर से आयोजित भव्य समारोह में राष्ट्रीय शिक्षा भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
वे हिंदी व संस्कृत भाषा और व्याकरण के इतने प्रकांड विद्वान हैं कि उन्हें शब्दों की व्युत्पत्ति तक का पूर्ण ज्ञान है। मेरी जानकारी के अनुसार वेद संस्थान के स्वर्गीय श्री अभयदेव शर्मा भी उनके समकक्ष माने जाते थे। श्री पंचोली को मैने ऐसे जाना कि मैं जब दैनिक न्याय में था, तब आपका संपादकीय नियमित रूप से प्रकाशन हेतु आता था। लेखन के क्षेत्र में उन्होंने लंबी यात्रा तय की है। उन्होंने तकरीबन चालीस साल तक न्याय में नियमित रूप से संपादकीय लिखा। शायद ही ऐसा कोई विषय हो, जिस पर आपकी कलम न चली हो। हम जानते हैं कि संपादकीय आम तौर पर घटनाओं की संतुलित समीक्षा के साथ समाज को दिशा देने का काम करते हैं। इस लिहाज से उन्होंने लंबे समय तक एक उपदेशक के रूप में भी समाज को अपनी सेवाएं दी हैं। वे इतना सधा हुआ इतना लिखा करते थे कि वह धारा प्रवाह तो होता ही था, उसमें व्यवस्था पर प्रहार करती धार भी पर्याप्त होती थी। आम तौर पर नैतिकता पर जोर हुआ करता था। जिस भी विषय पर संपादकीय लिखा, उस पर संक्षेप में संपूर्ण जानकारी मिल जाती थी। न तो उसमें कोई अवांछनीय शब्द होता था और न ही उसमें कुछ जोड़ा जा सकता था। लेखनी पर कितना नियंत्रण था, इसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे। यूं समझिये कि ए फोर साइज के कागज से कुछ छोटे कागज पर ऊपर कोने से लिखना शुरू करते और ठीक नीचे के कोने तक संपादकीय पूरा हो जाता। कांट-छांट कहीं भी नहीं। कागज की बचत के लिए हाशिया तक नहीं छोड़ते। है न समझ से परे कि क्या किसी की अपनी लेखनी पर इतनी कमांड हो सकती है कि उसे शब्दों की गिनती तक का पता हो कि कितने में अपनी बात पूरी करनी है। यह जानकर आपका मन उनको नमन करने को करता है कि नहीं। उनके सुपुत्र इंदुशेखर पंचोली जाने माने पत्रकार हैं, जिनकी गिनती उन पत्रकारों में होती है, जिन्होंने अजमेर से लंबी छलांग लगाई है।