1960 के दशक तक अजमेर में अनेक बावड़ियां चर्चित थीं - भांग बावड़ी, चांद बावड़ी, कुम्हार बावड़ी, कातन बाय, भाटा बाय, आम्बा बाय, आम वाला तालाब, कमला बावड़ी और भूत बावड़ी। अंग्रेजों के शासनकाल में कर्नल डिक्सन ने अजमेर में बीस से भी अधिक बावड़ियां खुदवाई थीं। जल स्रोतों के रूप में यहां चांदी का कुआं सबसे पुराना है। इसके साथ दूधिया कुआं और तुलसा जी की बेरी ने कई सालों तक अजमेर की प्यास बुझाई है।
तो बात है भूत बावड़ी की। यह दौलत बाग में थी। कुम्हार बावड़ी की तरह इसे भी शहर का विस्तार खा गया। यह बावड़ी बगीचे में प्रवेश द्वार के दाहिनी तरफ थी; तीन मंजिल की थी। हमने दो मंजिल के तिबारे देखे हैं। पहली मंजिल पानी में डूबी रहती थी और बरसात के समय दूसरी मंजिल तक पानी भर जाता था। गरमी के समय इन तिबारों मे लोग बैठे रहते थे। ऐसी किंवदंती फैली हुई थी कि रात के वक्त यहां एक भूत रहता था। भूतिया हलवाई जैसे किस्से इस बावड़ी के बारे मे भी प्रचलित थे। हमने लाखन कोठरी निवासी रामचंद जी, छोटे लाल जी आदि से ऐसे किस्से सुने हैं।
यहाँ लोग नहाते थे लेकिन इसका पानी नहीं पीते थे। बाद में यहां चिड़ियाघर शुरू किया गया। तब बावड़ी को बूर दिया; यहां सपाट मैदान हो गया। उन दिनों बगीचे में प्रवेश द्वार के बाईं तरफ कचरा डाला जाता था; कचरे के ढेर लग जाते थे। थोड़े समय बाद चिड़ियाघर हटा दिया और यहां जलदाय विभाग का एक कार्यालय खोला गया। उधर कुम्हार बावड़ी पर लकड़ी की टाल बन गयी; फिर आईस फैक्ट्री खुल गयी।
खाईलैंड की खाई भी देखते-देखते पाट दी गई। किसी वक्त यहां रोडवेज बस स्टैंड था। प्राइवेट बस स्टैंड मैजिस्टिक पर प्लाजा सिनेमा के बीच में था।