रविवार, 13 अप्रैल 2025

कभी फिल्मी पोस्टर लगा करते थे यहां

अजमेर के वरिष्ठ पत्रकार जनाब मुजफ्फर अली ने फिल्मी पोस्टर्स पर एक बहुत दिलचस्प स्टोरी लिखी है। इसे सुन कर आपको बहुत अच्छा लगेगा। पेश है वह स्टोरी 

कभी कभी बचपन में देखी- सुनी जगह या बातें हमेशा के लिए ज़ेहन में बैठ जाती हैं और फिर वक्त बदलने पर भी उस जगह का पुराना स्वरुप दिमाग में रहता है। ऐसी ही कुछ जगह अजमेर में बचपन से किशोर अवस्था तक आते आते देखी, वो थी अजमेर के सिनेमाघरों के फिल्मी पोस्टरों के चिपकने की जगह। अजमेर में छह सिनेमाघर हुआ करते थे और सभी सिनेमाघरों के पोस्टरों के लिए जगह तय थी कि किस जगह पर लगने वाला पोस्टर कौन से सिनेमाघर में चलने वाली फिल्म का है। मोइनिया इस्लामिया स्कूल की दीवार पर कभी अजंता सिनेमा हॉल में लगी या लगने वाली फिल्मों के बड़े पोस्टर लगा करते थे। सत्तर के दशक की बात है। उन दिनों दो तरह के पोस्टर दीवारों पर लगा करते थे। एक विद्युत पोल पर लगने वाले क्यिोस्क साईज में और दूसरे बड़े चौड़े होर्डिंग साइज़ में। मोइनिया इस्लामिया स्कूल की दीवार बड़ी और लंबी थी इसलिए वहां बड़े साइज के पोस्टर ही लगा करते थे। फिर देखने में आया कि फिल्मी पोस्टर के साइज में सीमेंट का प्लास्टर कर जगह मुकर्रर कर दी गई। उस प्लास्टर की मोटी परत पर पोस्टर चिपकाए जाने लगे। 

बड़े साइज के पोस्टर मदार गेट पर फल बेचने वालों की दुकानों के पीछे, कबाडी बाजार की दीवार पर मृदंग सिनेमा में लगी या लगने वाली फिल्मों के पोस्टर लगा करते थे। पड़ाव में पुराने कपड़े बेचने वालों के पीछे की दीवार पर एक कोने में अंजता फिर मैजिस्टिक, प्रभात, श्री और दूसरे कोने में मृदंग सिनेमा के बड़े पोस्टर लाइन से लगा करते थे। फव्वारा चौराहे पर भी अंजता और प्रभात सिनेमा की फिल्मों के पोस्टर लोहे के फ्रेम बना कर उस पर चिपकाया करते थे। सोनी जी की नसियां के सामने प्रभात की ओर जाने वाले रास्ते के कोने में प्रभात सिनेमा के बड़े पोस्टर लोहे के फ्रेम में लगते थे जो आगरा गेट से आने वालों को दूर से दिख जाते थे। आगरा गेट चौराहे पर चर्च की दीवार के सहारे भी लोहे के फ्रेम सडक़ पर लगे थे, जिन पर प्रभात और अंजता के फिल्मी पोस्टर लगते थे। मदार गेट पर फूल बेचने वालों के पीछे की कस्तूरबा अस्पताल की दीवार पर सिर्फ मैजिस्टिक सिनेमा में लगी फिल्मों के पोस्टर लगा करते थे। उसरी गेट के बाहर की दीवार पर प्रभात और मृदंग सिनेमा के पोस्टर लगते थे। तब शहरी आबादी का अधिक विस्तार नहीं था, और फिल्मी पोस्टर शहर के अंदरूनी इलाकों में ही लगते थे।


https://www.youtube.com/watch?v=hDE7cv8pqMo


लोकगीत व मुहावरों में अजमेर

यह सामग्री अजमेर एट ए ग्लांस पुस्तक से ली गई है, जिसमें अजमेर के इतिहास, वर्तमान व भविष्य का विस्तार से वर्णन मौजूद है।

राजस्थान के लोकगीत व मुहावरों में अजमेर का उल्लेख कई जगह आता है। यथा प्रसिद्ध लोक कथा ढोला-मरवण की पंक्तियां देखिए, जिनमें आनासागर, पुष्कर व बीसला तालाब की जिक्र हुआ है-

ढोला कंवर जी आनासागर

पछ कयिजे बीसल्यो

पीठ पर पोखर जी हिलोला खाय

बेगातो आईजो धण का साहिबां।

इसी प्रकार राजस्थान की मौसम संबंधी एक लोकोक्ति में भी अजमेर का उल्लेख प्रसिद्ध है, जिसमें बताया गया है कि गर्मी का मौसम अजमेर में बिताने लायक है। कदाचित मुगल शासकों और ब्रिटिश हुक्मरानों को अजमेर मौसम मुफीद होने के कारण भी अजमेर उनकी गतिविधियों का केन्द्र रहा-

सियालो खाटू भलो, उन्नाळो अजमेर

नागाणो नित को भलो सावण बीकानेर

अजमेर सांप्रदायिक सौहार्द्र की एक अनूठी बात देखिए कि धर्मांतरण से मुस्लिम बने अनेक वर्गों के एक गीत में पुरातन सांगीतिक संस्कार मौजूद है-

ठंडा रहजो म्हारा पीर दरगा में

नित का चढ़ाऊं थारे सीरणी

देसूं थाने जोड़ा सूं जात

ठंडा रहीजो म्हारा पीर दरगा में

झोली भराऊं कोडिय़ां

घणी घणी करूं खैराद

ठंडा रहिजो म्हारा पीर दरगा में

साथ जिमाऊं औलिया

कोई पांच पचीस फकीर

ठंडा रहिजो म्हारा पीर दरगा में। 

इन पंक्तियों में साथ जिमाऊं, ठंडा रहिजो आदि शब्द पारंपरिक राजस्थानी संस्कृति की याद दिलाते हैं। ख्वाजा साहब और मदार साहब की मान्यता कितनी रही है, इसका साक्षात प्रमाण है राजस्थानी भाषा के ही एक लोक गीत में उनका उल्लेख-

मदारजी के लेचल ओ बलमा

ख्वाजाजी के ले चल ओ बलमा

सासू तो नणदल पूछण लागी

कठा सूं ल्याई ललवा ने

मदार जी के ले चल ओ बलमा

दरगा में जोड़ा की जारत बोली

बठा सूं ल्याई ललवा ने।

यहां के इतिहास में अजयपाल जोगी का अप्रतिम स्थान है। अनेक इतिहासकार मानते हैं कि अजमेर के प्रथम शासक अजयराज ही अजयपाल जोगी थे। उनके प्रति लोगों में कितनी आस्था रही है, यह इस लोकोक्ति से जाहिर हो जाती है-

अजयपाल जोगी, काया राख निरोगी।


https://www.youtube.com/watch?v=3zpOxLo2uEE