गुरुवार, 19 सितंबर 2024

और भी हैं अनोखे चरित्र

पिछले दिनों भूले बिसरे अजमेरी कॉलम के अंतर्गत चूरण वाले बाबा का जिक्र किया था, जो जय गुरूदेव का बारंबार उच्चारण करते हुए भांति भांति के चूरण बेचा करते थे। आजकल न जाने कहां है? इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कुछ मित्रों ने ऐसे अन्य केरेक्टर्स के बारे में भी जानकारी साझा की है।

चूरण वाले बाबा के बारे और जानकारी देते हुए एक सज्जन ने बताया कि हम उन बाबा को जय गुरुदेव बाबा के नाम से जानते थे। बाबा तीन पहिए की साइकिल पर चूर्ण की बारनियां लगा कर चूरन की गोलियां बेेचते थे। ज्यादातर मार्टिंडल ब्रिज व केसरगंज इलाके में ही नजर आते थे। उनका घर हमारे पड़ोस में नोनकरण का हत्था, नगरा पर अब भी स्थित है, जिसमें उनकी लड़की एवं उनका नवासा रहता है।

एक आदमी ऐसा भी था, जो चाक या कोयले से बिजली के खंबों या दीवारों पर बरसात शब्द लिखा करता था। अंग्रेजी में रेन लिखा करता था। ऐसा करने वाला वह कौन था, इसका कभी पता नहीं लगा। चूंकि बरसात शब्द में लाइन नहीं होती थी, इस कारण समझा गया कि कदाचित वह गुजराती रहा होगा। ज्ञातव्य है कि गुजराती भाषा में शब्दों के ऊपर लाइन नहीं होती है। हर जगह बरसात लिखने वाला कहां चला गया? इस शीर्षक से मेरा ब्लॉग प्रकाशित होते ही कई प्रतिक्रियाएं आई। मेरे मित्र श्री रमेश टिलवानी व श्री गोविंद मनवानी ने बताया कि उस शख्स का नाम श्री झामनदास है। वे अंग्रेजी में एमए हैं और पहले मीरा स्कूल में व बाद में उसका सारा स्टाफ आदर्श विद्यालय में शिफ्ट हो जाने पर वहां पर दसवीं-ग्यारहवीं के छात्रों को अंग्रेजी पढ़ाया करते थे। वे बहुत इंटेलीजेंट थे, मगर बाद में किसी कारणवश मेंटली डिस्टर्ब हो गए। जहां तक बरसात शब्द की टाइपोग्राफी का सवाल है, वह गुजराती भाषा की तरह होने के पीछे कारण ये रहा होगा कि वे मूलतः अहमदाबाद से अजमेर आए थे। शुरू में वे लाखन कोटड़ी में रहा करते थे। अब वैशाली नगर में रहते हैं। अब भी यदा-कदा किताब हाथ में लिए हुए दिखाई दे जाते हैं।

इसी प्रकार एक आदमी कचहरी रोड पर दिखाई देता था, वह रिक्शा चलाया करता था, बहुत सारे कपड़े पहनता था और हर वक्त कुछ बुदबुदाता रहता था। इसी प्रकार कोयले की टाल पर काम करने वाला एक आदमी तीन पहिये की गाडी के साथ गंज से वैशाली नगर मार्ग पर नजर आता था, वह अपनी कमाई से ब्रेड खरीद कर कुत्तों को खिलाया करता था। 

पुराने प्राइवेट बस स्टैंड पर एक सिंधी बुजुर्ग गोली बिस्किट बेचा करता था और बसों के गन्तव्य के लिए रवाना होते वक्त खडा हो कर जोर जोर से पुकारा करता था कि बस अमुक स्थान के लिए रवाना होने वाली है। उसे बस वाले पांच दस रूपये दे दिया करते थे।

इसी प्रकार रेलवे स्टेशन के सामने फुटपाथ पर दो बुजुर्ग बहिनें बैठी रहती थीं। सालों तक उन्हें वहां देखा गया।

दरगाह इलाके में बडी बडी मूछों वाला हट्टा कट्टा एक आदमी दरबान की वेषभूशा में सजा धजा नजर आता था। वह किसी वीआईपी के आने पर जरूर दिखाई देता था।