उसमें किसने जियारत करवाई, किसने तवरूख भेंट किया, किसने पूजा करवाई, कौन कौन मौजूद थे, आदि का जिक्र होता है। सवाल उठता है कि आम पाठक की क्या इसको जानने में रूचि होती है। वह हैडिंग पढ कर उसे छोड देता है या पूरी खबर पढता है। हां, अगर जियारत व पूजा के दौरान वह कोई बयान देता है तो वह जरूर खबर है, मगर केवल जियारत व पूजा खबर कैसे हो सकती है। होता अमूमन ये है कि जब भी कोई दरगाह षरीफ में आता है या तीर्थराज पुश्कर की पूजा करता है तो मीडिया उसे घेर लेती है और संबंधित व ताजा मामलों में उसका बयान लेती है, जो कि खबर बन जाती है। मुझे ख्याल आता है कि दैनिक भास्कर अजमेर के तत्कालीन स्थानीय संपादक श्री जगदीष षर्मा ने एक व्यवस्था बनाई थी कि जियारत व पूजा की कोई खबर नहीं जाएगी। यदि जाएगी भी तो दो तीन लाइन में, जानकारी मात्र के लिए। ताकि यह पता रहे कि अमुक विषिश्ट व्यक्ति यहां आया था। खबर तभी बनाई जाए जब वह कुछ बयान दे। उसमें भी जियारत व पूजा की जानकारी दो तीन लाइन में होनी चाहिए। यह व्यवस्था काफी दिन चली।
अब बात करते हैं कि जियारत व पूजा की खबर बनाने की परंपरा कैसे षुरू हुई। ऐसा प्रतीत होता है कि आरंभ में अखबार वालों ने विषिश्ट व्यक्ति के दरगाह व पुश्कर आने पर जियारत व पूजा करवाने वालों से खबर ली। बाद में इसका उलट हो गया। खबर अखबार के दफ्तर में भी आने लगी। यह ठीक वैसा ही है कि अमुक वकील ने अमुक मामले में अमुक को जमानत दिलवाई या बरी करवाया, और उसकी खबर बन जाए। अब तो जियारत व पूजा करने वाले स्वयं भी खबर लगवाने में रूचि लेते हैं।
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