शुक्रवार, 23 मई 2025

जियारत व पूजा भी कोई खबर है?

किसी भी व्यक्ति का दरगाह जियारत करना अथवा तीर्थराज पुश्कर की पूजा अर्चना करना उसका पूर्णतः वैयक्तिक कृत्य है। यह उसकी व्यक्तिगत आस्था का मामला है, जिससे आम जनता का कोई सरोकार नहीं होता। बावजूद इसके लंबे अरसे से वीवीआईपी, वीआईपी, नेता-अभिनेता आदि जियारत करता है अथवा पुश्कर सरोवर की पूजा करता है तो उसकी विस्तृत खबर छपती है। क्या उस खबर की कोई उपयोगिता है?

उसमें किसने जियारत करवाई, किसने तवरूख भेंट किया, किसने पूजा करवाई, कौन कौन मौजूद थे, आदि का जिक्र होता है। सवाल उठता है कि आम पाठक की क्या इसको जानने में रूचि होती है। वह हैडिंग पढ कर उसे छोड देता है या पूरी खबर पढता है। हां, अगर जियारत व पूजा के दौरान वह कोई बयान देता है तो वह जरूर खबर है, मगर केवल जियारत व पूजा खबर कैसे हो सकती है। होता अमूमन ये है कि जब भी कोई दरगाह षरीफ में आता है या तीर्थराज पुश्कर की पूजा करता है तो मीडिया उसे घेर लेती है और संबंधित व ताजा मामलों में उसका बयान लेती है, जो कि खबर बन जाती है। मुझे ख्याल आता है कि दैनिक भास्कर अजमेर के तत्कालीन स्थानीय संपादक श्री जगदीष षर्मा ने एक व्यवस्था बनाई थी कि जियारत व पूजा की कोई खबर नहीं जाएगी। यदि जाएगी भी तो दो तीन लाइन में, जानकारी मात्र के लिए। ताकि यह पता रहे कि अमुक विषिश्ट व्यक्ति यहां आया था। खबर तभी बनाई जाए जब वह कुछ बयान दे। उसमें भी जियारत व पूजा की जानकारी दो तीन लाइन में होनी चाहिए। यह व्यवस्था काफी दिन चली। 

अब बात करते हैं कि जियारत व पूजा की खबर बनाने की परंपरा कैसे षुरू हुई। ऐसा प्रतीत होता है कि आरंभ में अखबार वालों ने विषिश्ट व्यक्ति के दरगाह व पुश्कर आने पर जियारत व पूजा करवाने वालों से खबर ली। बाद में इसका उलट हो गया। खबर अखबार के दफ्तर में भी आने लगी। यह ठीक वैसा ही है कि अमुक वकील ने अमुक मामले में अमुक को जमानत दिलवाई या बरी करवाया, और उसकी खबर बन जाए। अब तो जियारत व पूजा करने वाले स्वयं भी खबर लगवाने में रूचि लेते हैं।

https://www.youtube.com/watch?v=vvHkmnZ2HJ0


शनिवार, 17 मई 2025

आजादी के बाद अजमेर नगर पालिका से निगम के मुखिया

1947-48ः श्री हेमचंद सोगानी

1948-49ः श्री कृष्णगोपाल गर्ग

1949-51ः श्री कृष्णगोपाल गर्ग

1951ः श्री विशम्बरनाथ भार्गव

1951-52ः श्री ज्वाला प्रसाद शर्मा

1952ः श्री जे. के. भगत

1953 व 54 में प्रशासकों ने व्यवस्था संभाली

1954-55ः श्री दुर्गादत्त उपाध्याय

1955-57ः श्री कृष्णगोपाल गर्ग

1957-58ः श्री ज्वालाप्रसाद शर्मा

1959-60ः श्री देवदत्त शर्मा

1960-61ः श्री माणकचंद सोगानी

1961 से 69 तक प्रशासकों ने व्यवस्थाएं संभाली

1970ः श्री एम.के. नाथूसिंह तंवर

1971ः श्री माणकचंद सोगानी

1973ः डॉ. एम. एल. बाघ

1973 से 90 तक प्रशासकों ने काम संभाला

1990-95ः श्री रतनलाल यादव

1995-2000 श्री वीरकुमार

24.1.2000-9.4.2000: श्रीमती विद्या कमलाकर जोशी (कार्यवाहक)

10.4.2000-28.8.2000: श्री सुरेन्द्र सिंह शेखावत

28.8.2000-22.12.2003ः श्रीमती अनिता भदेल

22.12.2003-31.12.2005ः श्रीमती सरोज देवी जाटव

2005-10ः            श्री धर्मेन्द्र गहलोत

सन् 2008 में भाजपा शासनकाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की पहल पर नगर परिषद को नगर निगम का दर्जा दे दिया गया। इसकी घोषणा उन्होंने अजमेर में ही की। वे यहां राज्य स्तरीय गणतंत्र समारोह में शिरकत करने आई थीं। इस लिहाज से श्री धर्मेन्द्र गहलोत को पहला मेयर बनने का गौरव हासिल हुआ। हालांकि जनसंख्या संबंधी औपचारिकता बाद में कुछ गांव मिला कर की गई।

अगस्त 2010 में करीब बीस साल भाजपा का कब्जा रहने के बाद पहली बार कांग्रेस के नए चेहरे वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी व पूर्व पार्षद स्वर्गीय श्री हरिशचंद जटिया के पुत्र श्री कमल बाकोलिया अजमेर नगर निगम के पहले निर्वाचित मेयर बने। उन्होंने भाजपा के डॉ. प्रियशील हाड़ा को पराजित किया।

2015 में नई व्यवस्था के तहत मेयर का चुनाव पार्षदों में से किया गया और एक बार फिर धर्मेन्द्र गहलोत मेयर बने

2020 में भाजपा की श्रीमती ब्रजलता हाडा मेयर चुनी गई

गुरुवार, 15 मई 2025

आज भी जिंदा हैं सबा खान

सुर्खी पढ़ कर आपका चौंकना लाजिमी है। मगर मेरी कलम की कोख से यह सुर्खी इसलिए पैदा हुई, क्योंकि मेरी नजर में वे आज भी जिंदा हैं। चार साल बीत गए। एक मर्द औरत कोरोना से जंग हार गईं थीं। मगर वे आज भी लोगों के जेहन में जिंदा हैं। फेसबुक अटा पडा है, उनको याद किया जा रहा है। उनका जिक्र करते हुए उनके नाम के साथ मरहूम इसलिए नहीं जोडूंगा, चूंकि उनके भीतर जो जज्बा था, वो शहर में गिनती के जिंदा लोगों के जेहन में धड़क रहा है। वह कभी नहीं मरा करता। सबा ने जो पहचान बनाई, वह उनके अलविदा होने के बाद भी जिंदा है। मेरी नजर में वे मर्द औरत थीं। बिंदास। उनके कांधे पर चस्पा उन तमगों का जिक्र करना बेमानी सा है, जिसके बारे में हर किसी को पता है कि वे राजस्थान प्रदेश महिला कांग्रेस की प्रदेश महासचिव थीं, अजमेर शहर जिला महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं, सामाजिक सरोकार के क्षेत्र में अग्रणी संस्था प्रिंस सोसाइटी के संस्थापक अध्यक्ष और जवाहर फाउंडेशन की मजबूत स्तंभ थीं। हां, इतना जरूर कहना पड़ेगा कि वे एक जिंदादिल इंसान, हरदिल अजीज और खुश मिजाज थीं। हर किसी से बड़े खुलूस के साथ मिला करती थीं, मानों बरसों जी जान-पहचान हो। असल में वे भरपूर सेहतमंद थीं। गर कोरोना के शिकंजे में नहीं आतीं तो खूब जीतीं। क्या यह सरासर नाइंसाफी नहीं है कि कोरोना ने कम उम्र में ही जबरन उनकी सांसें रोक दीं? बिना यह सोचे कि ऐसे इंसानों की अजमेर को कितनी दरकार है?

फोटो कांग्रेस नेता सौरभ यादव ने अपनी फेसबुक वाल पर साझा की है। कदाचित सबा खान की यह आखिरी फोटो है।

अब जरा, उनकी शख्सियत के बारे में। उनमें गजब की फुर्ती थी, चुस्ती थी। यानि बिजली जैसी चपलता। तभी तो उनकी साथिनें पूछा करती थीं कि कौन सी चक्की का आटा खाती हो। कांग्रेस में तकरीबन दस साल शहर महिला अध्यक्ष रहीं। इस दौरान शायद ही कोई ऐसा दिन रहा हो कि वे कहीं नजर न आई हों। राजनीति से इतर भी वे आम अवाम के हर काम के लिए जुटी दिखाई देती थीं। उनके पास शहर का जो भी मसला आता था, जो भी फरियादी आता था, वे तत्काल आला अफसरान के चेंबर में बेधड़क घुस कर पैरवी करती थीं। सियासत उनकी रोजमर्रा की जिंदगी बन गई थी। कांग्रेस और भाजपा, दोनों में इस किस्म के नेता कम ही हैं। अफसोस, एक मर्द औरत कोरोना से जंग हार गईं। और इसी के साथ अपार संभावनाओं का अंत हो गया। शहर वासियों केलिए भी, परिवार वालों के लिए भी।

अल्लाह उन्हें जन्नतुल फिरदोस में आला मुकाम अता फरमाए। गमजदा परिवार वालों को सब्र जमील अता फरमाए। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीन श्रद्धांजलि अर्पित करता है।


मंगलवार, 13 मई 2025

प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है सुधाबाय में

हर मंगला चौथ पर भरता है मेला

तीर्थराज पुष्कर के ही निकट सुधाबाय में हर मंगला चौथ अर्थात मंगलवार व चतुर्थी तिथी का संगम होने पर मेला भरता है। यहां श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए अनुष्ठान करते हैं। अनेक वे लोग, जो आर्थिक अथवा अन्य कारणों से अपने पितरों के पिंड भरने गया नहीं जा पाते, वे यहां यह अनुष्ठान करवाते हैं। बताया जाता है कि भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का श्राद्ध इसी कुंड में किया था। मान्यता है कि यहां कुंड में स्नान से प्रेत-बाधा से मुक्ति मिलती है। इस कारण कथित ऊपरी हवा से पीड़ित लोगों को उनके परिजन यहां लाते हैं और कुंड में डुबकी लगवा कर राहत पाते हैं।

जानकारों का कहना है कि पुष्कर से करीब 4 किलोमीटर दूर व बूढा पुश्कर के पास स्थित सुधाबाय कुंड में शुक्ल पक्ष चतुर्थी मंगलवार के त्रि-संयोग के अवसर पर गया माता स्वयं विराजमान रहती है। इस मौके पर नारायण बली की पूजा भी यहां पर करवाई जाती है। आसानी से देखा जा सकता है कि महिला पुरुषों में कुंड में स्नान करने के साथ ही अदृश्य आत्माएं स्वयं अपनी भाषा बोलती है। अपना नाम पता बोलती है तथा उसका शरीर से निकल जाने की सौगंध लेती हैं। स्नान करने के बाद कुछ समय में ही प्राणी हंसता हुआ स्नान करता है तथा कुंड से बाहर आता है। 

पद्मपुराण के पृष्ठ संख्या 104 में लिखा है कि मर्यादा पर्वत यज्ञ पर्वत के बीच सतयुग के तीन कुंड बताए गए हैं, जिन्हें ज्येष्ठ पुष्कर, मध्य पुष्कर ओर कनिष्ठ पुष्कर के नाम से जाना जाता है। मध्य पुष्कर के समीप अवियोगा नामक एक चोकोर बावड़ी है, जिसके मध्य मे जल से युक्त एक कुआं है, जिसे सौभाग्य कूप कहते हैं। यहां पिंड दान करने से भटकती आत्माओं को मुक्ति मिलती है। 


https://www.youtube.com/watch?v=Q1g4_2z08PU

रविवार, 11 मई 2025

समाजसेवी श्री ओमप्रकाश हीरानंदानी नहीं रहे

भोलेश्वर मन्दिर सेवा ट्रस्ट, जनता कॉलोनी, वैशाली नगर, अजमेर के ट्रस्टी मुखी साहब श्री ओमप्रकाश हीरानंदानी का 11 मई को हृदयगति रुक जाने से आकस्मिक निधन हो गया है। उनकी शवयात्रा सोमवार 12 मई, 2005 को प्रातः 9.30 बजे उनके निवास स्थान जनता कालोनी, वैशाली नगर से छतरी योजना मुक्तिधाम तक निकाली जाएगी। वे समाज की सभी गतिविधियों में बढ-चढ कर हिस्सा लेते थे। वे श्री अमरापुर सेवा घर (वृद्धाश्रम) की देखरेख कर रहे श्री शंकर बदलानी के साथ सेवा में भागीदारी निभाते थे। पिछले दिनों पूज्य झूलेलाल जयंती समारोह समिति की ओर से आयोजित चेटीचंड पखवाडे में उन्होंने पूरी सक्रियता के साथ सहभागिता निभाई। साथ ही स्वामी श्री हिरदारामजी की प्रेरणा व आशीर्वाद से ताराचंद हुंदलदास खानचंदानी सेवा संस्था (श्री अमरापुर सेवा घर), सिंधी समाज महासमिति व सांई बाबा मंदिर, अजमेर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित श्री झूलेलाल सामूहिक कन्यादान समारोह में भी उनकी सक्रियता सदैव याद की जाएगी। वे हाल ही स्वामी कॉम्पलैक्स में नवीनीकृत रसोई रेस्टोरेंट में सार्वजनिक रूप से पूर्ण स्वस्थ दिखाई दिए थे। उनके अकस्मात निधन से पूरा सिंधी समाज स्तब्ध है। हर कोई हतप्रभ है कि कोई कम उम्र में ही अचानक कैसे इस दुनिया से विदाई ले सकता है? अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है। 

बेमिसाल सहजता की प्रतिमूर्ति थे स्वर्गीय श्री रासासिंह रावत

चार साल पहले अजमेर ने एक ऐसी षख्सियत को खो दिया था, जो अपने विषिश्ट व्यक्तित्व के कारण लोकप्रिय थे। वे थे भाजपा भाजपा नेता व भूतपूर्व सांसद स्वर्गीय प्रो रासासिंह रावत। वे पांच बार अजमेर के लोकसभा सदस्य थे। वे सहज सुलभता और अपनी विशेष भाषण शैली और धाराप्रवाह उद्बोधन के कारण अजमेर वासियों के चहते थे। उनका जन्म सन् 1 अक्टूबर 1940 को श्री भूरसिंह रावत के घर हुआ। उन्होंने बी.ए. व एल.एल.बी. और हिंदी व संस्कृत में एम.ए. की शिक्षा अर्जित की और अध्यापन कार्य से अपनी आजीविका शुरू की। उन्हें 25 साल तक अध्यापन का अनुभव था। उल्लेखनीय सेवाओं के कारण उन्हें शिक्षक दिवस, 5 सितम्बर 1989 को राज्य सरकार की ओर से सम्मानित किया गया। अध्यापन कार्य के दौरान स्काउटिंग में विषेश सेवाएं देने के कारण उन्हें राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया जा गया। सामाजिक संगठन आर्य समाज अजमेर से उनका गहरा नाता रहा और पूर्व में इसके अध्यक्ष रहे व बाद में संरक्षक रहे। समाजसेवा से उनका कितना गहरा रिश्ता है, इसका अनुमान उनके दयानंद बाल सदन के प्रधान, भारतीय रेड क्रॉस सोसायटी के प्रधान व राजस्थान रावत राजपूत महासभा के पूर्व प्रधान व हाल तक संरक्षक का दायित्व निभाने से हो जाता है। वे सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यों में विशेष रुचि रखते थे। भाजपा की नई चुनावी रणनीति के चलते उन्हें राजसमंद से लड़ाया गया, लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिली। बाद में उन्हें अजमेर शहर भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया। 

भाजपा में जाने से पहले रासासिंह रावत ने दो बार कांग्रेस के टिकट पर भीम विधानसभा सीट से चुनाव भी लड़ा था, लेकिन वे हार गए। बाद में भाजपा में शामिल हो गए। वे विरजानंद स्कूल के प्रधानाचार्य रहे। बाद में उन्हें डीएवी स्कूल का प्राचार्य बना दिया गया, फिर वे आर्य समाज के प्रधान भी बने। आर्य स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधारने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान भी रहा है।

सांसद के रूप में उन्होंने सभी पांचों कार्यकालों में उन्होंने लोकसभा में अपनी शत-प्रतिशत उपस्थिति दर्ज करवाई। अजमेर से जुड़ा शायद ही कोई ऐसा मुद्दा रहा होगा, जो उन्होंने लोकसभा में नहीं उठाया। यह अलग बात है कि दिल्ली में बहुत ज्यादा प्रभावी नेता के रूप में भूमिका न निभा पाने के कारण वे अजमेर के लिए कुछ खास नहीं कर पाए। एक बार उनके मंत्री बनने की स्थितियां निर्मित भी हुईं, लेकिन चूंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी के सोलह सहयोगी दलों के साथ मिल कर सरकार बनाने के कारण वे दल आनुपातिक रूप में मंत्री हासिल करने में कामयाब हो गए और प्रो. रावत को एक सांसद के रूप में ही संतोष करना पड़ा। उनकी सबसे बड़ी विशेषता ये थी कि वह सहज उपलब्ध हुआ करते थे। बेहद सरल स्वाभाव और विनम्रता उनके चारित्रिक आभूषण थे। 10 मई 2021 को उनका देहावसान हो गया। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।


शनिवार, 3 मई 2025

आनासागर में लिंक ब्रिज होना चाहिए

अजमेर में यातायात की समस्या के स्थाई समाधान के लिए लंबी जद्दोहद और कई पेच ओ खम के बाद एलिवेटेड रोड आरंभ हो गया है। हालांकि इसमे अब भी खामियां हैं, मगर षहर में यातायात का दबाव कुछ कम करने में सफलता हासिल हुई है। आप यह जान कर चकित होंगे कि तकरीबन तेरह साल पहले प्रकाषित पुस्तक अजमेर एट ए ग्लांस में स्वामी न्यूज के एमडी कंवल प्रकाष किषनानी ने वक्त के साथ कदमताल जरूरी षीर्शक के साथ दिए गए आलेख में एलिवेटेड रोड की जरूरत पर जोर देते हुए एक काल्पनिक चित्र दिया था। यह आष्चर्यजनक संयोग है कि वर्तमान एलिवेटेड रोड का वास्तविक चित्र भी उसी से मेल खाता है। यह कल्पनाषीलता की अनूठी मिसाल है। प्रसंगवष बता दें कि श्री किषनानी ने इसी पुस्तक में विजन अजमेर खंड के मुख्य पेज पर आनासागर के एक छोर से दूसरे छोर तक लिंक ब्रिज का काल्पनिक चित्र दिया था। आज जब रिंग रोड की चर्चा हो रही है, प्रषासन को चाहिए कि वह लिंक ब्रिज बनाने पर भी विचार करे, जिससे न केवल यातायात सुगम होगा, अपितु आनासागर और खूबसूरत हो जाएगा।


https://www.youtube.com/watch?v=ZYZtVrpKDgs


गुरुवार, 1 मई 2025

अजमेर को ऊनाळो भलो

दोस्तो, नमस्कार। इन दिनों भीशण गर्मी पड रही है। सामान्य जनजीवन अस्तव्यस्त है। लोग परेषान हैं। अगर कोई आपसे कहे कि अजमेर की गर्मी तो भली है, तो आप झुंझला सकते हैं कि कैसी बात कर रहे हैं। हमारा हाल खराब है और आप इसे अच्छा बता रहे हैं। असल में किसी जमाने में गर्मी के मामले में अजमेर अन्य स्थानों से बेहतर था। इसी कारण राजस्थानी कहावत बनी कि सियाळो खाटू भलो, ऊनाळो अजमेर, नागौर नित रो भलो, सावण बीकानेर। अर्थात सर्दी खाटू की अच्छी है तो गर्मी अजमेर की और नागौर प्रतिदिन अच्छा और बीकानेर का सावन। वस्तुतः किसी जमाने में अरावली पर्वत श्रृंखला के नाग पहाड पर घने जंगल हुआ करते थे। मौसम बहुत सुहावना होता था। इसी सुरम्यता के कारण सत्ताधीषों ने इसे अपना केन्द्र बनाया। प्राचीन काल से लेकर मुगल काल व बाद में ब्रितानी हुकूमत के दौरान अजमेर सत्ता का केन्द्र रहा। पानी की कमी नहीं होती तो कदाचित आजादी के बाद यह राजधानी बनता। खैर, बाद में वृक्षों की निरंतर कटाई के कारण नाग पहाड पर हरियाली कम होती चली गई। इसे पुनः हराभरा करने के लिए भूतपूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री षिवचरण माथुर ने बारिष के मौसम में नाग पहाड पर हैलीकॉप्टर से बीजों का बिखराव किया था। मगर फॉलोअप न होने कारण कोई फायदा नहीं हुआ। इसी प्रकार पुश्कर घाटी में बरसाती पानी के ठहराव व हरियाली के लिए जापान के सहयोग से एक प्रोजेक्ट पर काम हुआ। अनेक उपाय किए गए, मगर ठीक से रखरखाव न किए जाने के कारण सारा पैसा पानी के साथ बह गया। बावजूद इसके गर्मी के लिहाज से अजमेर को आज भी अन्य स्थानों की तुलना में बेहतर माना जाता है। तापमान भले ही समान रहे, मगर आम तौर पर अजमेर में गर्मी सहन करने लायक पडती है। बीच में कुछेक दिन जरूर तापमान बढ जाता है। 

https://youtu.be/dzuGnBYux8M