शुक्रवार, 1 अगस्त 2025

इस बार होगी निर्दलियों की पौ-बारह

आगामी नगर निगम चुनाव का ताना बाना बुना जा रहा है। चुनाव लडने के इच्छुक नेता वार्डों के परिसीमन व आरक्षण की घोशणा का इंतजार कर रहे हैं। फिलवक्त संभावित स्थिति के मद्देनजर जमीन पर सक्रिय बने हुए हैं। इस बार का चुनाव अपेक्षाकृत अधिक रोचक होने की संभावना है। दोनों प्रमुख दलों कांग्रेस व भाजपा में अंतर्विरोध के चलते सारे समीकरण गड्डमड होते दिखाई दे रहे हैं। खींचतान मची हुई है। सबसे पहले तो टिकट वितरण को लेकर तलवारें खिंचेंगी। दोनों विधानसभा क्षेत्रों में धडेबाजी उभर कर आएगी। बेषक दोनों दलों के हाईकमान सुलह करते हुए टिकट वितरण की कोषिष करेंगे, मगर इतना पक्का है कि जिनको टिकट नहीं मिलेगा, वे या तो निर्दलीय मैदान में उतरेंगे, या फिर भीतरघात करेंगे। राजनीति के जानकार मानते हैं कि इस बार निर्दलियों की पौ बारह होगी। ऐसे में बोर्ड किस दल का बनेगा, कुछ नहीं कहा जा सकता। जहां तक मुद्दों का सवाल है, एलिवेटेड रोड के निर्माण में हुई अनियमितता व भारी बरसात के कारण जगह जगह हुए जल भराव जनमानस को उद्वेलित किए हुए है। समझा जाता है कि चुनाव आने तक आम मतदाता के मनसपटल से ये मुद्दे विस्मृत नहीं होंगे। कांग्रेस इन्हीं का सिरा पकड कर वैतरणी पार करने की कोषिष करेगी, वहीं भाजपा केन्द्र व राज्य में अपनी सरकार का लाभ लेना चाहेगी। मोदी फैक्टर भी काम करेगा। ऐसे में भिडंत तगडी होगी। निर्भर इस पर करेगा कि कौन कितना एकजुट हो कर चुनाव लडता है। कयास है कि इस बार एक बार फिर मेयर का चुनाव डायरेक्ट होगा, इस पर भी दावेदारों की नजर बनी हुई है।

चुनाव हारा हूं, भरोसा नहीं

दोस्तो, नमस्कार। किषनगढ के पूर्व निर्दलीय विधायक सुरेष टाक पिछले चुनाव भले ही हार गए हों, मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी है। असल में उनकी हिम्मत के पीछे हैं वे विकास कार्य जो उन्होंने विधानसभा चुनाव फिर जीतने की उम्मीद में करवाए थे। पूर्व मुख्यमंत्री अषोक गहलोत को समर्थन देकर उन्होंने सरकार का भरपूर लाभ लिया भी। लोग उनके जन समर्पण को भूले नहीं हैं। आषा थी कि जनता विकास कार्यों का याद रख कर चुनावी वैतरणी पार लगा देगी, मगर इस बार हुए चुनाव में जमीन पर जातीय व अन्य समीकरण बदल गए। नतीजतन वे हार गए। प्रसंगवष बता दें कि सचिन पायलट ने भी अजमेर में इसलिए विकास कार्य करवाए थे कि अगली बार जमीन और मजबूत होगी, मगर अकेले मोदी लहर ने सब कुछ धो दिया था। यानि जीत के लिए अकेले विकास कार्य पर्याप्त नहीं होते, तत्कालीन और फैक्टर भी असर डालते हैं। बहरहाल, वैसे भी किसी निर्दलीय का दुबारा चुना जाना कठिन ही होता है। निर्दलीय प्रत्याषी अमूमन काठ की हांडी की तरह होता है। हांडी एक बार में तो काम में आ भी सकती है, मगर अपवाद को छोड दे ंतो वह एक बार ही चढती है। खैर, हारने के बाद भी टाक जमीन पर पकड बनाए हुए हैं। उनका बडा समर्थक वर्ग है। अगले विधानसभा चुनाव बहुत दूर हैं, मगर नगर निगम चुनाव में अपना दखल जरूर रखेंगे। हाल ही उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट पर फोटो के साथ एक पोस्ट साझा की है- 

चुनाव हारा हूं,

भरोसा नहीं।

यही भरोसा मेरी 

असली जीत है।