कुछ लोगों का मानना है कि उन पर इतना दबाव बनाया जाएगा कि चुप रहने में ही अपनी भलाई समझेंगे। दूसरी ओर कुछ का मानना है कि धनखड का जैसा स्वभाव है, वे ज्यादा दिन तक चुप रह नहीं पाएंगे। न चाहते हुए भी जाट व किसानों के दबाव में उनके हितों के लिए चल रहे संघर्ष में शामिल होंगे। पद पर रहते हुए भी उन्होंने किसानों की आवाज उठाई थी, जो उनकी विदाई का एक कारण माना जाता है।
जहां तक उनके कांग्रेस में शामिल होने का कयास है, तो उसके पीछे यह दलील दी जा रही है कि मूलतः वे कांग्रेस पृष्ठभूमि से हैं। एक बार किशनगढ से कांग्रेस के विधायक रहे तो एक बार अजमेर लोकसभा सीट पर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड चुके हैं। दूसरा यह कि राज्यसभा में उन्होंने विपक्ष का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था। कांग्रेस नेता जयराम रमेश की इस्तीफे के बाद धनखड के पक्ष में दी गई प्रतिक्रिया को भी रेखांकित किया जा रहा है। विपक्ष के नेताओं से मीटिंग्स को भी संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है। आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल से मुकालात के भी अर्थ निकाले जा रहे हैं।
हालांकि फिलहाल उनके भावी कदम के बारे में हो रहे कयास प्रीमैच्योर ही कहे जाएंगे, मगर इतना तय माना जा रहा है कि वे देर से ही सही, मगर मुखर जरूर होंगे।
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