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पृथ्वीराज स्मारक पर धर्मेश जैन की पीछे हैं भगत |
समझा जाता है कि भगत की भाजपाइयों से नजदीकी बनाना उनकी राजनीतिक मजबूरी है। नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष रहते कथित रूप से कांग्रसियों ने ही उन्हें लैंड फॉर लैंड मामले में फंसाया और बाद में मदद भी नहीं की। यदि सरकार चाहती तो मामले की जांच त्वरित करवा कर वास्तविकता तक पहुंच सकती थी, मगर उनकी अजमेर उत्तर से टिकट की पक्की दावेदारी को कमजोर बनाए रखने के लिए मामले को जानबूझ कर लटकाए रखा। आखिरकार उनका टिकट कट गया। बावजूद इसके उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कहने पर कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. श्रीगोपाल बाहेती के लिए खुल कर काम किया। जब भाजपा की सरकार आ गई तो उन पर शिकंजा कसा जाने लगा। लोकसभा चुनाव में वे अगर कांग्रेस प्रत्याशी सचिन पायलट के लिए काम करते तो शर्तिया सरकार का कोप भाजन बनते।
जानकार सूत्रों के अनुसार पर उन पर दबाव था कि एक तो सचिन के लिए काम न करें और कांग्रेस भी छोड़ें तो सचिन पर आरोप लगा कर। मरता क्या न करता, उन्होंने वही किया। परिणामस्वरूप पार्टी की पूरे पंद्रह साल की सेवा पर पानी फिर गया। हां, मगर अब वे मानसिक तनाव से मुक्त हो चुके हैं। जानकारी के अनुसार अब वे नए सिरे से राजनीतिक जीवन को आरंभ करने के लिए ऊर्जा जुटा रहे हैं। भाजपाई कार्यक्रम में जाने से भले ही उनकी भाजपाइयों से नजदीकी झलकती है, मगर इससे ये संकेत कहीं नहीं मिलते कि वे भाजपा ज्वाइन कर रहे हैं। अपुन ने पहले ही लिखा कि उनके अब किसी भी राजनीतिक पार्टी के कार्यक्रम में जाने पर सवाल उठाना बेमानी है, क्योंकि वे फिलहाल किसी भी पार्टी में नहीं हैं, मगर पृथ्वीराज चौहान स्मारक पर आयोजित कार्यक्रम में उनकी मौजूदगी इस बात का तो संकेत है ही कि वे जल्द ही सार्वजनिक जीवन में खुल कर काम करने जा रहे हैं। जहां तक सामाजिक जीवन का सवाल है, वे कांग्रेस में आने से पहले से ही समाज सेवा करते रहे हैं और वह फील्ड उनके लिए अब भी खुला हुआ है।
चलते-चलते एक बात और। उनके कांग्रेस छोडऩे से कांग्रेस में सिंधी लीडरशिप का अभाव हो गया है। वे पूर्व मंत्री स्वर्गीय किशन मोटवानी की कमी पूरी करने की ओर अग्रसर थे, मगर अब एक बार फिर वैक्यूम हो गया है। हालांकि मुख्यमंत्री गहलोत को डॉ. बाहेती को ही टिकट देना था, मगर इसके लिए उन्होंने बहाना यही बनाया कि कांग्रेस में कोई उपयुक्त सिंधी दावेदार नहीं है।
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