शनिवार, 28 दिसंबर 2024

जन्नती दरवाजे से मुतल्लिक हुआ था दिलचस्प वाकया

झंडे की रस्म के साथ षनिवार को ख्वाजा साहब का सालाना उर्स आरंभ हो गया। इस मौके पर दरगाह षरीफ स्थित जन्नती दरवाजे के मुतल्लिक एक दिलचस्प वाकया ख्याल में आ गया।

हुआ यूं कि जब पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ भारत दौरे पर थे और उनका आगरा के बाद अजमेर आने का कार्यक्रम था तो एक खबर ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी थी। वो यह कि मुशर्रफ के आने पर उनके स्वागत में दरगाह स्थित जन्नती दरवाजा नहीं खोला जाएगा। उन दिनों दोनों देशों के बीच संबंध भी कुछ गड़बड़ चल रहे थे, इस कारण इस खबर का अर्थ ये निकाला गया था कि मुशर्रफ के प्रति असम्मान के चलते ही जन्नती दरवाजा नहीं खोलने का निर्णय किया गया है। हालांकि तब उनका अजमेर दौरा रद्द हो गया था और वे आगरा से ही लौट गए थे। उनके अजमेर न आ पाने को इस अर्थ में लिया गया कि ख्वाजा साहब के यहां उनकी हाजिरी मंजूर नहीं थी। तभी तो कहते हैं कि वहीं अजमेर आते हैं, जिन्हें ख्वाजा बुलाते हैं।

असल में उनके प्रति असम्मान जैसा कुछ नहीं था। हुआ यूं कि मुशर्रफ के आगमन पर पत्रकार अंजुमन पदाधिकारियों से तैयारियों बाबत जानकारी हासिल कर रहे थे। हिंदुस्तान टाइम्स के तत्कालीन अजमेर ब्यूरो चीफ एस एल तलवार, जिन्हें कि दरगाह की रसूमात के बारे में कुछ खास जानकारी नहीं थी, उन्होंने यह सवाल दाग दिया कि क्या मुशर्रफ के आने पर जन्नती दरवाजा खोला जाएगा। इस पर अंजुमन पदाधिकारियों ने कहा कि नहीं। नतीजा ये हुआ कि यह एक खबर बन गई और विशेष रूप से दिल्ली के अखबारों में प्रमुखता से छपी कि मुशर्रफ के आने पर जन्नती दरवाजा नहीं खोला जाएगा। दरअसल अंजुमन पदाधिकारियों ने सवाल का जवाब देते वक्त केवल नहीं शब्द का इस्तेमाल किया। वे अगर कहते कि किसी भी वीवीआईपी के आने पर जन्नती दरवाजा नहीं खोला जाता है तो यह वाकया नहीं होता। यहां ज्ञातव्य है कि यह साल में चार बार खोला जाता है, उर्स हजरत ख्वाजा गरीब नवाज पर यानि 29 जमादिस्सानी से छह रजब तक, हजरत गरीब नवाज के पीर-ओ-मुर्शद के उर्स की तारीख पर यानि छह शबाकुल मुकर्रम पर और ईद उल फितर यानि मीठी ईद व ईद उल जोहा यानी बकरा ईद के दिन।


शुक्रवार, 20 दिसंबर 2024

क्या कांग्रेस को पुष्कर के लिए संभावित प्रत्याशी मिल गया?

अजमेर जिला बार एसोसिएशन के वार्षिक चुनाव में अशोक सिंह रावत को अध्यक्ष चुना जाना भले ही वकील जमात का मसला हो, मगर इसने एक राजनीतिक संभावना को जन्म दिया है। इसके लिए रावत की पृश्ठभूमि को देखना होगा। रावत ने गत विधानसभा का चुनाव आरएलपी के चुनाव चिन्ह पर पुष्कर से भाजपा उम्मीदवार सुरेश सिंह रावत के सामने लड़ा था। उन्हें 16 हजार से भी ज्यादा वोट प्राप्त हुए थे। वे पूर्व में पीसांगन पंचायत समिति के प्रधान भी रह चुके हैं। यानि राजनीति का भरपूर अनुभव है। पिछले चुनाव में भले ही उन्होंने किन्हीं समीकरणों के तहत आरएलपी का दामन थामा हो, मगर आगामी चुनाव में कांग्रेस उन पर विचार कर सकती है। उसकी एक वजह यह भी है कि रावत को कांग्रेस विचारधारा वाले वकीलों का साथ मिला है। वैसे भी पुश्कर में श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ के लगातार तीसरी बार हारने के बाद एक वैक्यूम उत्पन्न हो गया है। हालांकि कांग्रेस यहां मुस्लिम को प्राथमिकता देती रही है, मगर उसे अगर मसूदा में कोई उपयुक्त मुस्लिम उम्मीदवार मिल जाए तो वह पुश्कर में रावत पर दाव खेल सकती है। चूंकि पिछले चुनाव में उन्हें समाज के नेता डॉ. शैतान सिंह रावत और कपालेश्वर मंदिर के महंत सेवानंद गिरी का साथ मिला था, अतः प्रयोग के बतौर उन्हें ब्यावर में भी आजमाया जा सकता है। वैसे इतना पक्का माना जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में कोई मौका नहीं छोडेंगे।


गुरुवार, 19 दिसंबर 2024

सिख समाज की पहचान थे स्वर्गीय श्री जोगेन्द्र सिंह दुआ

पूर्व कांग्रेस पार्षद स्वर्गीय श्री जोगेन्द्र सिंह दुआ अजमेर में सिख समाज के जाने-माने समाजसेवक थे। असल में वे सिख समाज की पहचान थे। जब भी सर्व धर्म सम्मेलन अथवा बैठक होती थी तो उनको जरूर बुलाया जाता था। वे अत्यंत सरल व सहज स्वभाव के मालिक थे। उनका जन्म 1 जनवरी 1939 को श्री मेला सिंह उर्फ मानसिंह दुआ के घर हुआ। उन्होंने दसवीं कक्षा तक अध्ययन किया और व्यवसाय के रूप में भवन निर्माण सामग्री बेचने का काम शुरू किया। वे फर्शी पट्टी विक्रेता एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष व संरक्षक, श्री गुरु सिंह सभा, अजमेर के सचिव, राज्य खालसा पंथ के सदस्य,  पहाडग़ंज श्री गुरु तेग बहादुर स्कूल के अध्यक्ष, नशा मुक्त अजमेर एसोसिएशन के अध्यक्ष, दक्षिण ब्लाक  कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष, अजमेर जिला भ्रष्टाचार निरोधक बोर्ड के पूर्व सदस्य और जिला स्थाई लोक अदालत के पूर्व सदस्य थे।

https://thirdeye.news/choupal/4142/


शोक सभाओं का दुर्भाग्यपूर्ण आयोजन

प्रमुख समाजसेवी व भारतीय सिंधु सभा के उपाध्यक्ष श्री महेन्द्र कुमार तीर्थाणी ने एक विचारणीय पोस्ट भेजी है। आप भी पढियेः- शोक सभाएं आजकल दुःख बांटने और मृतक के परिवार को सांत्वना देने के अपने मूल उद्देश्य से भटक गईं हैं। आजकल शोक सभाओं के आयोजन के लिए विशाल मंडप लगाए जा रहे हैं। सफेद पर्दे और कालीन बिछाई जाती है या किसी बड़े बैंक्वेट हाल में भव्य सभा का आयोजन किया जाता है, जिससे यह लगता है कि कोई उत्सव हो रहा है। इसमें शोक की भावना कम और प्रदर्शन की प्रवृत्ति ज्यादा दिखाई देती है। मृतक का बड़ा फोटो सजा कर भव्यता के माहौल में स्टेज पर रखा जाता है। यहां तक कि मृतक के परिवार के सदस्य भी अच्छी तरह सज-संवर कर आते हैं। उनका आचरण और पहनावा किसी दुःख का संकेत ही नहीं देता।

समाज में अपनी प्रतिष्ठा दिखाने की होड़ में अब शोक सभा भी शामिल हो गई है। सभा में कितने लोग आए, कितनी कारें आईं, कितने नेता पहुंचे, कितने अफसर आए, इसकी चर्चा भी खूब होती है। ये सब परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा के आधार बन गए हैं। उच्च वर्ग को तो छोड़िए, छोटे और मध्यमवर्गीय परिवार भी इस अवांछित दिखावे की चपेट में आ गए हैं। शोक सभा का आयोजन अब आर्थिक बोझ बनता जा रहा है। कई परिवार इस बोझ को उठाने में कठिनाई महसूस करते हैं पर देखा-देखी की होड़ में वे न चाह कर भी इसे करने के लिए मजबूर होते हैं।

इस आयोजन में खाना, चाय, कॉफी, मिनरल वाटर, जैसी चीजों पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। पूरी सभा अब शोक सभा की बजाय एक भव्य आयोजन का रूप ले रही है। यह उचित नहीं है। शोक सभाओं को अत्यंत सादगीपूर्ण ही हो होना चाहिए।


बुधवार, 18 दिसंबर 2024

लोकप्रिय गायक व लेखक थे स्व. श्री मिरचूमल सोनी

स्व. श्री मिरचूमल सोनी अपने जमाने के विलक्षण गायक कलाकार व लेखक थे। भूतपूर्व भाजपा पार्षद स्वर्गीय श्री सेवकराम सोनी के साथ उनकी जोडी बहुत लोकप्रिय थी। वे एक दूसरे पर्याय थे। 

स्वर्गीय श्री सोनी का जन्म नवम्बर, 1933 में मांझन्द, जिला दादू सिन्ध प्रान्त में हुआ था। उन्होंने सिन्धी फाइनल तथा शास्त्रीय संगीत में विशारद की शिक्षा अर्जित की। पेशे से स्वर्णकार होने के साथ ही उनको गीत, संगीत, नाटक, साहित्य एवं लेखन में महारत हासिल थी। उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी थीं, जिनमें प्रमुख हैं मुहिन्जो मुल्क मलीर, रुह जा रोशनदान, मोतियन जो महिराण। उनको अनेक सम्मान हासिल हुए। उनको राजस्थान सिन्धी अकादमी की और से ‘रुह जा रोशनदान‘ पुस्तक लिखने पर अवार्ड दे कर सम्मानित किया गया था। उनके कई कार्यक्रम आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर भी प्रसारित हुए। उन्होंने कई स्टेज कार्यक्रमों का मंचन भारत के विभिन्न शहरों में एवं विदेशों में खास कर हांगकांग में स्वर्गीय श्री सेवकराम सोनी के साथ गोरधन भारती के सान्निध्य में किया। वे बडड़िया सिन्धी स्वर्णकार समाज में सलाहकार व सम्मानित सदस्य थे। भोलेश्वर मण्डल, वैशाली नगर के अध्यक्ष भी थे। वैशाली सिन्धी सेवा समिति में विशेष आमंत्रित सदस्य थे। शहर की विभिन्न समितियों में सक्रिय योगदान एवं भागीदारी रखते थे।

वे बाल्यकाल से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रतिज्ञत स्वयंसेवक थे। भारतीय सिन्धु सभा, अजमेर के स्थापना के समय से ही सक्रिय सदस्य रहे। भारतीय सिन्धु सभा द्वारा आयोजित सिन्धी कार्यशाला में उन्होंने सिन्धी गीत संगीत का ज्ञान भावी पीढ़ी को दिया। उनका स्वर्गवास 18 दिसम्बर 2011 को हुआ।

मंगलवार, 17 दिसंबर 2024

केकडी बार अध्यक्ष मनोज आहूजा में छिपी है राजनीतिक संभावना

राज्य में सरकार बदलने के साथ केकडी जिले के अस्तित्व पर संषय उत्पन्न हो गया है। पूर्व चिकित्सा मंत्री डॉ रघु षर्मा सहित अन्य जागरूक नेता केकडी को पिछली सरकार में हासिल जिले का दर्जा बरबरार रखने की मुहिम छेडे हुए हैं। इस मुहिम को एक और ताकत मिल गई है। केकड़ी जिला बार एसोसिएशन के हाल ही चुने गए अध्यक्ष मनोज आहूजा ने मन्तव्य जाहिर कर दिया है कि वे केकडी को हासिल जिला मुख्यालय का दर्जा कायम रखने का पूरा प्रयास करेंगे।

वे बहुत जुझारू, बहुआयामी, मुखर व जागरूक वकील हैं। राजनीति में भी उनकी गहरी दिलचस्पी है, जो किसी से छिपी नहीं है। किसी समय विधायक ब्रह्मदेव कुमावत के सारथी थे। वकालत के अतिरिक्त जन समस्याओं के निराकरण के लिए भी सतत प्रयत्नषील रहते हैं। पत्रकारिता में भी दखल रखते हैं। खुद का वीडियो चैनल चलाते हैं। जाति से सिंधी आहूजा का केकडी में भले ही सषक्त जातिगत आधार न हो, मगर जिस तरह से वे केकडी बार के अध्यक्ष चुने गए हैं, उससे साबित होता है कि उनकी क्षेत्र में खासी लोकप्रियता है। वकालत के कारण उनकी अजमेर में आवाजाही रहती है। उन्होंने यहां अपना फ्रेंड सर्किल भी बना रखा है। पिछले चुनाव में पार्शद ज्ञान सारस्वत को समर्थन देकर उन्होंने अजमेर की सरजमीं अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई थी। इतना ही नहीं, वासुदेव देवनानी के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस की। जरूर वे किसी भावी ताने बाने का बीजारोपण करने अजमेर आए थे, वरना केकडी से यहां आने का क्या मकसद हो सकता है। मूलतः कांग्रेस विचारधारा से जुडे हैं, ऐसे में कांग्रेस अजमेर उत्तर के लिए विचार कर सकती है। कदाचित दूरदृश्टि के तहत ही उन्होंने बहुत पहले अजमेर में मकान बनवाया हो। हालांकि यह बात दूर की कौडी है, मगर राजनीति संभावनाओं खेल है, जिसमें कुछ भी संभव है।


शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

हिंदी व संस्कृत की प्रकांड विदुषी श्रीमती ज्योत्सना

पिछले दिनों अजमेर के पत्रकारों व साहित्कारों के व्यक्तित्व व कृतित्व पर एक शृंखला आरंभ की थी। उस कडी में हिंदी व संस्कृत की गहन जानकार श्रीमती ज्योत्सना का जिक्र यदि नहीं किया जाए तो बात अधूरी रह जाएगी। आर्य समाज के सचिव स्वर्गीय श्री धर्मवीर शास्त्री की धर्मपत्नी श्रीमती ज्योत्सना दैनिक भास्कर में कॉपी डेस्क पर रहीं। कॉपी डेस्ट का यह कन्सैप्ट भास्कर प्रबंधन का अनूठा प्रयोग था। प्रबंधन का मानना था कि आम तौर पर पत्रकारों की हिंदी भाषा पर अच्छी पकड़ नहीं होती। इस कारण संपादन करने के दौरान संपादक का सारा ध्यान गलतियां सुधारने पर चला जाता है और खबर को और उन्नत नहीं बनाया जा पाता। अतः संपादक तक खबर आने से पहले उसमें वर्तनी व व्याकरण संबंधी गलतियां दुरुस्त होनी चाहिए। साथ ही भाषा का स्तर पर भी सुधार किया जाना चाहिए। समझा जा सकता है कि कॉपी डेस्क पर काम करने वाले कितने सिद्धहस्त होते होंगे। श्रीमती ज्योत्सना उनमें से एक थीं। उनके अतिरिक्त शिक्षाविद् नवलकिशोर भाभड़ा, विनोद शर्मा व केदार जी माडसाब भी थे। श्रीमती ज्योत्सना के बारे में एक बेहद रोचक जानकारी देना प्रासंगिक होगा कि उनके परिवार के सभी सदस्य आपस में संस्कृत में ही बात किया करते हैं। संभवतः वह अजमेर का एक मात्र परिवार है। ज्ञातव्य है कि स्वर्गीय श्री धर्मवीर शास्त्री संस्कृत व वेदों के ज्ञाता थे।

गुरुवार, 12 दिसंबर 2024

जब शिवचरण माथुर कुली को तलाश रहे थे

राजनीति का अजब खेल है। वह आदमी को कभी अर्श पर बैठा देती है, तो कभी फर्श पर लेटा देती है। वक्त बदलते ही आदमी के नाचीज होने में देर नहीं लगती। इसके अनेकानेक उदाहरण हैं। इसका ख्याल मुझे अरसे से रहा, मगर एक घटना से इसका फलसफा मुझे ठीक से समझ आया। हुआ यूं कि कोई 41 साल पहले मैं नागौर में रहता था। पत्रकारिता का शैशव काल। एक बार तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर को कवर करने गया। उनके इर्द गिर्द सुरक्षा धेरे को देख दंग रह गया। कितने नेता व कार्यकर्ता उनकी मिजाज पुर्सी में लगे थे। स्वागत करने वालों में होड मची थी। कितने प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी तैनात थे। चाक चौबंद थे। अहसास हुआ कि मुख्यमंत्री कितना बडा आदमी होता है। खैर, बाद में मैं माइग्रेट हो कर अजमेर आ गया। यहां दैनिक न्याय में काम करता था। रोज रात को काम से फारिग हो कर कुछ पत्रकार साथियों के साथ रेलवे स्टैशन पर चाय पीने जाया करते था। एक बार मेरे साथ स्वर्गीय श्री सुनिल शर्मा व स्वर्गीय श्री राजू मोहन सिंह थे। हम प्लेट फार्म पर टहल रहे थे। एक टेन आई। यकायक देखा कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर जैसे दिखने वाले कोई सज्जन दोनों हाथों में अटैचियां उठाए उतरे और कुली को तलाशने लगे। सहसा यकीन नहीं हुआ। थोडा नजदीक जा कर देखा तो पाया कि वे माथुर साहब ही थे। चूंकि तब वे मुख्यमंत्री नहीं थे, इस कारण पुलिस के लवाजमे की उम्मीद तो बेमानी थी, मगर कोई कार्यकर्ता भी उन्हें रिसीव करने नहीं आया था। उस दौर में पूर्व जिला प्रमुख सत्यकिशोर सक्सैना उनके करीबी हुआ करते थे। कदाचित माथुर साहब गोपनीय यात्रा पर आए थे, इसलिए अपने अजीज सक्सैना साहब को भी सूचित नहीं किया। हम उनसे इसलिए नहीं मिले कि वे जिस स्थिति में पहचाने गए हैं, तो उन्हें असहज महसूस होगा। हम तो वहां से चले गए, हो सकता है कि बाद में उन्हें कोई लेने आया हो। खैर, माथुर साहब को देख कर यकायक 41 साल पहले का मंजर फिल्म की माफिक मस्तिष्क में घूमने लगा। ख्याल आया कि राजनीति भी क्या चीज है, खास को भी आम बना देती है। जब तक आदमी पद पर रहता है, उसके साथ कई चीजें होती हैं और पद से हटने पर बहुत कुछ खो जाता है।

अजमेर में पैसा पानी की तरह बह जाता है

अजमेर का पानी से गहरा नाता रहा है। यह एक कटु सत्य है कि पानी की कमी के चलते अजमेर राजधानी बनने से रह गया। एक ओर भारी बरसात के कारण पानी निचली बस्तियों में तबाही मचा देता है, तो दूसरी ओर जीवनदायिनी बीसलपुर परियोजना के पानी से अजमेर की प्यास अभी तक नहीं बुझ पायी है।

वैसे एक बात है। तीर्थराज पुश्कर व दरगाह ख्वाजा साहब को अपने आंचल में समेटे अजमेर की अंतर राश्टीय क्षितिज पर खास पहचान है। इसी कारण विकास के लिए कई बार केन्द्र व राज्य सरकार की ओर से विषेश राषि आती रही है, मगर दुर्भाग्य से पैसा पानी की तरह बह जाता है। 

आपको ख्याल होगा कि 786वें उर्स में बडी संख्या में जायरीन की आवक के मद्देनजर वीवीआईपी के लिए नागफणी से अंदर कोट तक संपर्क सडक बनाई गई थी। हालांकि उसकी जरूरत नहीं पडी। बाद में उसका उपयोग ही नहीं किया गया। चट्टानें गिरने से सडक की दुर्दषा होती रही। पहाडी पर अनेक अतिक्रमण हो गए। कुल जमा इस सडक पर लगाया गया पैसा बेकार चला गया।

इसी प्रकार दरगाह से सेंट फ्रांसिस तक सीवरेज लाइन डाली गई, मगर उसका उपयोग हो ही नहीं पाया। बाद में पूरे नगर के लिए सीवरेज लाइन डाली गई, मगर उसकी जो हालत है, वह किसी से छिपी नहीं है। 

भूतपूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय षिवचरण माथुर ने तारागढ के आसपास की पहाडी पर हैलीकॉप्टर से बीज बिखेरने की पहल की, ताकि नाग पहाड पर हरियाली हो, मगर उसका फॉलोअप नहीं हुआ। ऐसे में इसी प्रकार बरसाती पानी के व्यर्थ बह जाने को रोकने के लिए पुश्कर घाटी में जापान के सहयोग से छोटे छोटे एनीकट बनाए गए, मगर बाद में रखरखाव न होने के कारण पैसा पानी की तरह बह गया। सीवरेज टीटमेंट प्लांट की हालत किसी से छिपी नहीं है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट से अजमेर वासियों को बहुत उम्मीदें थीं, मगर आज जब वह प्रोजेक्ट पूरा हो चुका है, उसमें पैसा पानी की तरह बहाए जाने के आरोप लगाए जाने लगे हैं। बहुप्रतीक्षित एलिवेटेड रोड बन तो गई, लेकिन उसमें रही खामियों पर चर्चा करते हुए सिर्फ अफसोस ही किया जा सकता है। अजमेर नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेष जैन ने पर्यटकों को लुभाने के लिए पुश्कर घाटी पर सांझी छत बनाई। 

बहुत बेहतरीन कन्सैप्ट था, मगर बाद में उसकी किसी ने सुध नहीं ली, नतीजतन वहां बंदरों की पंचायत लगती है।

ऐसे ही अनेक उदाहरण मुंह चिढा रहे हैं। 


मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

इबादत और आरती का संगम: दरगाह बाबा बादामशाह

अजमेर के सोमलपुर गांव के निकट बाबा बादामशाह की दरगाह स्थित है। भारत में सूफी उवैसिया सिलसिले की यह आठवीं दरगाह है। शेष पांच रामपुर में और दो झांसी में हैं। श्वेत संगमरमर से निर्मित यह दरगाह दूर से ताजमहल जैसी लगती है। बाबा बादामशाह की दरगाह में साधनारत जाने-माने लेखक व इतिहासविद् शिव शर्मा बताते हैं कि सामान्य जायरीन के लिए यह आस्था का पर्यटन धाम है। साधकों के लिए रूहानियत का शक्ति केन्द्र है और अध्यात्म विद् यहां विश्व चेतना के संघनित आलोक में प्रणाम करते हैं। इस दरगाह में बाबा साहेब का अतिशय शान्तिदायी मजार है, जहां बैठने पर अलौकिक सुकून मिलता है। पास में ही महफिलखाना है। दालान में एक मस्जिद है। दूसरे कोने में शिव मंदिर है। इस तरह यहां दरगाह में इबादत और आरती का संगम है। इस सर्वधर्म-भाव चेतना का ही असर है कि यहां आने वाले जायरीन में नब्बे फीसदी हिन्दू होते हैं। धर्मान्ध लोगों के लिए यहां पहला आश्चर्य यह है कि यहां गुरु पद पर ब्राह्मण प्रतिष्ठित है। दूसरा अचरज यह है कि दरगाह में शिव मंदिर और तीसरा विस्मय यह कि यहां आने वाले अधिकतर जायरीन हिन्दू समाज के होते हैं। शिवलिंग की पिण्डी स्वयं बाबा बादामशाह साहब लाए थे। 

बाबा बादाम शाह मूलतः उत्तर प्रदेश के गालब गांव (मैनपुरी जिला) के निवासी थे। प्रारब्ध की दिशा और गुरु के आदेश से वे यहां आए। आठ वर्ष तक नागपहाड़ में घोर तपस्या की। फिर फरीदा की बगीची और गढ़ी मालियान में थोड़े-थोड़े समय ठहरकर सोमलपुर आ गए। बाबा साहब 1946 से लेकर फना (देह त्याग) होने तक यानी 1965 तक यहीं रहे। तपस्यारत, ध्यानमग्न, भाव मग्न, परमात्म-प्रेम में निमग्न, जनसेवा में लीन और दीन-हीन के साथी बन कर उन्होंने ही गुरु कृपा से एक सामान्य सांसारिक मनुष्य हरप्रसाद मिश्राजी पर शक्तिपात किया। फलतः मिश्राजी ने गुरुद्वार के दर्शन किए तथा उस रास्ते को जान लिया जो परमात्मा तक जाती है। वे बाबा साहब के खादिम हो गए और गुरुकृपा से उस भक्ति भाव में डूबते चले गए जो जीवात्मा को परमात्मा से मिलाती है। बाबा के खास खादिम हजरत हरप्रसाद मिश्रा उवैसी भारतीय उवैसिया शाखा के नौवें गुरु थे। प्रेम के पथ पर गुरु के ध्यान में मग्न रहने वाले मिश्रा ही बादामशाह उवैसी कलन्दर के उत्तराधिकारी हुए और इस ईदगाह में वे खिदमत कर रहे थे। 

यह दरगाह सूफी चेतना की सादगी का मूर्तरूप है। पहाड़ी शृंखला की अनन्य शातिदायी गोद में बनी हुई यह दरगाह वर्षाकाल में ऐसे लगती है मानो भक्ति-मग्न मेघों से बहते आंसुओं में भीग रही हो और गुरु पूर्णिमा को रात में यहां ऐसा प्रतीत होता है जैसे गुरु का आशीर्वाद चांदनी बनकर यहां जर्रे-जर्रे पर टपक रहका हो। वैसे प्रतिवर्ष रज्जब माह की 29 या 30 तारीख और एक शब्बान को इनका उर्स मनाया जाता है। 26 नवम्बर 1965 शुक्रवार को बाबा साहब फना हुए थे (देहान्त हुआ था)। इस सालाना उर्स में अजमेर के सैकड़ों लोग शामिल होते हैं। उन दिनों यहां भक्ति-भाव, आस्था, कव्वाली, भजन आदि का जो मिलाजुला मंजर बनता है, उसमें डूबने वालों पर मानो खुदा की रहमत का नूर बरसता है।

ऐसा बताया जाता है कि इस सिलसिले के प्रथम सूफी संत का पूरा नाम हजरत उवैस करणी रदीयल्लाह अनही है। बचपन में मां इन्हें उसैस कहती थी और यमन में करण नायक गांव में इनका जन्म हुआ था। इस तरह ये हजरत उवैस करणी नाम से विख्यात हुए। इनके नाम उवैस को अमर रखने के लिए ही इनके सिलसिले का नाम उवैसी रखा गया। इस तरह कुल मिलाकर अजमेर स्थित बाबा बादामशाह उवैसी कलन्दर (कलन्दर यानी वह जो समरस रहता है, स्वयं को व संसार की चिन्ता त्याग कर खुदा की इबादत में लीन रहता है।

दरगाह का निर्माण कार्य अप्रैल 1996 से 1999 तक तीन वर्ष में पूरा हुआ। इसके बाद सन 2005 ई. में महफिलखाने व दरगाह का सौन्दर्यीकरण किया गया। उद्यान विकसित किया गया। सन 2008 में एप्रोच रोड को चौड़ा एवं उसका फिर से डामरीकरण किया गया। दरगाह के मुख्य द्वार से पहले पार्किंग स्थल को भी चौड़ा कराया गया।

गुरुवार, 5 दिसंबर 2024

सर्द मौसम में अजमेर शहर की कांग्रेस गर्म

राजस्थान विधानसभा चुनाव हुए एक साल बीत गया। चुनावी सरगरमी थम चुकी है। मौसम भी सर्द है। बावजूद इसके अजमेर की कांग्रेस में व्याप्त गरमाहट साफ महसूस की जा सकती है। एक ओर जहां राजस्थान पर्यटन विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष धर्मेन्द्र सिंह राठौड ने हलचल मचा रखी है, वहीं वरिश्ठ कांग्रेस नेता महेन्द्र सिंह रलावता भी अपना वजूद कायम रखने कवायद जारी रखे हुए हैं। षहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष की अपेक्षित नियुक्ति के इंतजार में दावेदार भी हाथ पैर मार रहे हैं। नैपथ्य में आगामी नगर निगम चुनाव का ताना बाना बुना जा रहा है। देखिये, यह रिपोर्टः-

राजस्थान पर्यटन विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष धर्मेन्द्र सिंह राठौड को भले ही पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का टिकट न मिला हो, मगर वे कत्तई निराष या हतोत्साहित नहीं हैं। वे जमीन पर षनैः षनैः पकड मजबूत करने में लगे हुए हैं। आए दिन अजमेर आते हैं और छोटे छोटे कार्यक्रमों में षिकरत कर रहे हैं। किसी के यहां षोक संवेदना व्यक्त करने को पहुंच रहे हैं तो किसी के यहां षिश्टाचार भेंट करते हुए मेल मिलाप बढा रहे हैं। यहां तक कि भवन निर्माण के लिए हो रहे भूमि पूजन कार्यक्रम तक को अटैंड रहे हैं। पिछले दिनों कांग्रेस पार्शदों के धरना कार्यक्रम में भी उनकी अहम भूमिका थी। साफ दिखाई दे रहा है कि वे आगामी चुनाव की चादर बिछा रहे हैं। विषेश रूप से अजमेर उत्तर में महेन्द्र सिंह रलावता के लगातार दो बार हारने के कारण उन्हें वैक्यूम नजर आ रहा है। सौभाग्य से अजमेर उत्तर की दोनों ब्लॉक इकाइयों पर उनकी पकड हैं। दक्षिण की ब्लॉक इकाइयां भी पिछला चुनाव लड चुकी सुश्री दोपदी कोली के जरिए उनके अनुकूल हैं। उनकी जयपुर दिल्ली में पकड इसी बात से साबित होती है कि पिछले दिनों जब राहुल गांधी जयपुर आए तो उनकी अगुवानी करने वाले चंद नेताओं में वे भी षामिल थे।

राजनीति के पंडित समझ रहे हैं कि वे आगामी नगर निगम चुनाव में भी अपना पूरा दखल रखेंगे। हालांकि यह इस पर निर्भर करेगा कि नया षहर अध्यक्ष कौन बनेगा? वह जल्द ही क्लीयर हो जाएगा।

दूसरी ओर पिछला चुनाव हारे महेन्द्र सिंह रलावता ने भी अपनी जमीन नहीं छोडी है। वे भी अपना ऑफिस नियमित रूप से खोल रहे हैं और स्थानीय ज्वलंत मसलों पर मुखर हैं। हाल ही दरगाह मंदिर विवाद पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की। फिर उर्स की व्यवस्थाओं को लेकर जिला कलेक्टर से मिले। कार्यकर्ताओं के पारीवारिक कार्यक्रमों में गर्मजोषी से षिकरत कर रहे हैं। मोटे तौर पर भले ही यह समझा जाए कि उन्हें तीसरी बार टिकट नहीं मिल पाएगा, मगर राजनीति में कुछ भी संभव है। इसकी नजीर भी है। यह कहना कि उन्हें फिर मौका मिलना नामुमकिन है, उचित नहीं होगा। वजह यह कि विपरीत परिस्थितियों के बावजूद पिछले चुनाव में मतातंर कम करने में कामयाब रहे। उनकी अतिरिक्त सक्रियता पर्दे के पीछे का सच बयां कर रही है कि वे अपने छोटे भाई पार्शद गजेन्द्र सिंह रलावता व पुत्र षक्ति सिंह रलावता का राजनीतिक भविश्य भी सुरक्षित रखना चाहते होंगे।

कुल जमा कांग्रेस की सक्रियता तब परवान पर होगी, जब षहर जिला अध्यक्ष की नियुक्ति हो जाएगी। 


बुधवार, 4 दिसंबर 2024

कौन थे दीवान रायबहादुर हरबिलास शारदा?

इन दिनों दीवान राय बहादुर हरबिलास शारदा का नाम चर्चा में है। इसलिए कि उनकी पुस्तक में लिखी बात को आधार बना कर दरगाह के नीचे शिव मंदिर होने का दावा किया गया है। उन्होंने अजमेर: ऐतिहासिक और वर्णनात्मक Ajmer: Historical and Descriptive पुस्तक लिखी। इसी के कुछ अंश को बतौर सबूत पेश किया गया है।

कानून से उनका गहरा नाता था। वे रजिस्ट्रार, सब जज व अजमेर-मारवाड़ के स्थानापन्न जज के रूप में काम करने के बाद 1924 में सेवा से निवृत्त हुए। उन्होंने बाल विवाह प्रथा रोकने के लिए कानून बनाया, जिसे शारदा एक्ट के नाम से जाना जाता है। दिलचस्प बात ये है कि वे खुद बाल विवाह की चपेट में आए थे। इतिहास में दर्ज यह तथ्य कई साल पहले दैनिक भास्कर में वरिष्ठ पत्रकार श्री सुरेश कासलीवाल ने उजागर किया था। अपनी स्टोरी में उन्होंने खुलासा किया था कि शारदा की पहली शादी मात्र साढ़े नौ साल की उम्र में 16 नवंबर 1876 को श्री लालचंद की पुत्री काजीबाई के साथ हुई थी। कम उम्र में ही काजीबाई का निधन हो गया। इस पर उन्होंने 1889 में दूसरी शादी की, मगर दूसरी पत्नी की भी कुछ समय बाद निधन हो गया। इस पर उन्होंने 1901 में तीसरी शादी की। उन्होंने अपनी पुस्तक री कलेक्शंस एंड रेमीनीसेंसेज में लिखा कि कम उम्र में ही शादी हो जाने के कारण लड़कियों की कम उम्र में ही मृत्यु हो जाती है क्यों कि वे शारीरिक रूप से परिपक्व नहीं हो पातीं।

कुछ वर्ष पहले राजस्थान पत्रिका ने इस विषय पर काम किया और वे शारदा के प्रपौत्र की बहू ममता शारदा का साक्षात्कार लेने में कामयाब हो गया। ममता शारदा ने बताया कि हरबिलास शारदा की पत्नी पार्वती गांव की थी। इसलिए उनका गांव में आना-जाना लगा रहता था। गांव में बालक बालिकाओं की कम उम्र में शादी को देखते हुए उन्होंने कुछ करने की ठान ली। उन्होंने कई पुस्तकों का अध्ययन कर वैज्ञानिक आधार पर शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्वता की उम्र के अनुसार विवाह का एक प्रस्ताव बनाया। वे इसे लेकर तत्कालीन ब्रिटिश अधिकारियों के पास गए। ब्रिटिश अधिकारियों को वह प्रस्ताव बहुत पसंद आया। तत्कालीन ब्रिटिश भारत में 1 अक्टूबर 1929 को को शारदा एक्ट पारित किया गया। एक अप्रैल 1930 को यह कानून लागू हो गया। इसके बाद बाल विवाह एक अपराध की श्रेणी में आ गया। इसके बाद लड़की की 18 वर्ष एवं लड़के के विवाह की आयु 21 वर्ष रखी गई। हरविलास शारदा ने अभियान चलाकर बाल विवाह का विरोध किया। समाज सुधार के विशेष प्रयास के लिए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें दीवान राय बहादुर की उपाधि प्रदान की। हरविलास शारदा का जन्म 3 जून, 1867 को राजस्थान के अजमेर शहर में हुआ था। उनके पिता धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे, जिसका प्रभाव उनके जीवन पर पड़ा। उन्होंने आगरा कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। शिक्षा पूरी करने के बाद वे अदालत में अनुवादक के पद पर कार्य करने लगे। वे राजस्थान में जैसलमेर के राजा के अभिभावक रहे और 1902 में अमजेर के कमिश्नर के कार्यालय में वर्नाक्यूलर सुपरिटेंडेट के पद पर कार्य किया। रजिस्ट्रार, सब जज और अजमेर-मारवाड़ के स्थानापन्न जज के रूप में काम करने के बाद 1924 में वे इस सेवा से निवृत्त हुए।

वर्ष 1924 में हरबिलास शारदा अजमेर-मेरवाडा से केंद्रीय विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। वे पुनः इस क्षेत्र से 1930 में निर्वाचित हुए थे। उनका 20 जनवरी, 1952 को निधन हो गया।

रविवार, 1 दिसंबर 2024

अजमेर में अमन को भंग नहीं किया जा सकेगा

सबके हित जुड़े होने के कारण है अजमेर में सांप्रदायिक सौहार्द्र

महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का सालाना उर्स एक माह बाद ही है। इस बीच दरगाह शरीफ में शिव मंदिर होने का दावा करते हुए कोर्ट में अर्जी पेश होने के कारण पूरा देश उद्वेलित है। सारे न्यूज चैनल्स पर गरमागरम बहस हो रही है। आशंका के बादल छाये हुए हैं। मगर जानकार मानते हैं कि बहस-मुबाहिसा कितना भी हो, यहां के अमन-चौन को भंग नहीं किया जा सकेगा। 

वस्तुतः दरगाह पूरी दुनिया में सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल है। जाहिर तौर पर उसमें ख्वाजा साहब की शिक्षाओं की भूमिका है। साथ ही हिंदुओं की उदारता, कि वे अपने धर्म के प्रति कट्टर नहीं और अन्य धर्मों के प्रति भी पूरा सम्मान भाव रखते हैं। यदि वजह है कि इस दरगाह में साल भर में आने वाले जायरीन में हिंदुओं की तादाद भी काफी है। ऐसे में यह संदेश जाना स्वाभाविक है कि यह मरकज सांप्रदायिक सौहार्द्र का समंदर है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण ये है कि जब जब भी देश भर में किसी वजह से सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगड़ा और दंगे हुए, अजमेर शांत ही बना रहा।

असल में सुकून की बड़ी वजह है, सभी धर्मों व वर्गों के लोगों का हित साधन। उर्स मेले में आने वाले लाखों जायरीन यहां के अर्थ तंत्र की धुरि हैं। मेला ही क्यों, अब तो साल भर यहां जायरीन का तांता लगा रहता है। भरपूर खरीददारी के कारण आम दुकानदार की अच्छी कमाई होती है। सैकड़ों होटलों का साल भर का खर्चा अकेले उर्स मेले के दौरान निकल जाता है। छोटी छोटी मजदूरी करने वाले भी इस दौरान खूब कमाते हैं। रहा सवाल खादिमों का तो वे सूफी मत को मानने वाले होने के कारण उदार प्रवृत्ति के हैं, मगर साथ ही उनकी आजीविका ही जायरीन पर टिकी हुई है। हालांकि अब खादिम भी अन्य व्यवसाय करने लगे हैं, फिर भी उनकी मुख्य आजीविका का जरिया खिदमत से होने वाली अच्छी आय ही है। स्वाभाविक रूप से जब वे दिल खोल कर खर्च करते हैं तो उसका लाभ आम दुकानदार को होता है। दरगाह शरीफ में लाखों रुपए का गुलाब चढ़ता है, जिसकी खेती पुष्कर में अधिसंख्य हिंदू करते हैं। समझा जा सकता है कि जिस शहर में जायरीन या पर्यटक कह लीजिए, के आगमन से अर्थ चक्र घूमता हो, वहां स्वाभाविक रूप से सभी का हित इसमें जुड़ा हुआ है कि यहां शांति कायम रहे। यहां शांति रहेगी तो बाहर से आने वाला भी बेखौफ आएगा। इसका यहां हर वर्ग को ख्याल रहता है। जब भी कोई छुटपुट घटना होती है तो सभी की कोशिश रहती है कि विवाद जल्द निपटा लिया जाए।

इन सबके बावजूद अजमेर को सांप्रदायिक तौर पर संवेदनशील माना जाता है, उसकी वजह है अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर का आंतकवाद। इसी कारण दरगाह की अतिरिक्त सुरक्षा की जाती है। एक बार तो दरगाह में बम ब्लास्ट भी हो चुका है, जिसके आरोपियों को हाल ही सजा सुनाई गई है। इस घटना के बाद अब यहां सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा है। उससे आभास ये होता है कि यहां खतरा है, मगर सच्चाई ये है कि अजमेर का नागरिक आम तौर पर शांति पसंद है। वह किसी उद्वेग में नहीं बहता। शहर के ऐसे शांत मिजाज के कारण एक बार अजमेर आ चुके अधिकारी सेवानिवृत्ति के बाद अजमेर में ही बसना पसंद करते हैं।

बहरहाल, चाहे जिस वजह से अजमेर सुकून भरी जगह हो, मगर इसी वजह से यह सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल बना हुआ है।