हुआ यूं कि जब पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ भारत दौरे पर थे और उनका आगरा के बाद अजमेर आने का कार्यक्रम था तो एक खबर ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी थी। वो यह कि मुशर्रफ के आने पर उनके स्वागत में दरगाह स्थित जन्नती दरवाजा नहीं खोला जाएगा। उन दिनों दोनों देशों के बीच संबंध भी कुछ गड़बड़ चल रहे थे, इस कारण इस खबर का अर्थ ये निकाला गया था कि मुशर्रफ के प्रति असम्मान के चलते ही जन्नती दरवाजा नहीं खोलने का निर्णय किया गया है। हालांकि तब उनका अजमेर दौरा रद्द हो गया था और वे आगरा से ही लौट गए थे। उनके अजमेर न आ पाने को इस अर्थ में लिया गया कि ख्वाजा साहब के यहां उनकी हाजिरी मंजूर नहीं थी। तभी तो कहते हैं कि वहीं अजमेर आते हैं, जिन्हें ख्वाजा बुलाते हैं।
असल में उनके प्रति असम्मान जैसा कुछ नहीं था। हुआ यूं कि मुशर्रफ के आगमन पर पत्रकार अंजुमन पदाधिकारियों से तैयारियों बाबत जानकारी हासिल कर रहे थे। हिंदुस्तान टाइम्स के तत्कालीन अजमेर ब्यूरो चीफ एस एल तलवार, जिन्हें कि दरगाह की रसूमात के बारे में कुछ खास जानकारी नहीं थी, उन्होंने यह सवाल दाग दिया कि क्या मुशर्रफ के आने पर जन्नती दरवाजा खोला जाएगा। इस पर अंजुमन पदाधिकारियों ने कहा कि नहीं। नतीजा ये हुआ कि यह एक खबर बन गई और विशेष रूप से दिल्ली के अखबारों में प्रमुखता से छपी कि मुशर्रफ के आने पर जन्नती दरवाजा नहीं खोला जाएगा। दरअसल अंजुमन पदाधिकारियों ने सवाल का जवाब देते वक्त केवल नहीं शब्द का इस्तेमाल किया। वे अगर कहते कि किसी भी वीवीआईपी के आने पर जन्नती दरवाजा नहीं खोला जाता है तो यह वाकया नहीं होता। यहां ज्ञातव्य है कि यह साल में चार बार खोला जाता है, उर्स हजरत ख्वाजा गरीब नवाज पर यानि 29 जमादिस्सानी से छह रजब तक, हजरत गरीब नवाज के पीर-ओ-मुर्शद के उर्स की तारीख पर यानि छह शबाकुल मुकर्रम पर और ईद उल फितर यानि मीठी ईद व ईद उल जोहा यानी बकरा ईद के दिन।
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