सोमवार, 15 सितंबर 2025

क्या दोषी अफसरों को सजा मिल पाएगी?

हाल ही जब आनासागर के किनारे को पाट कर बनाए गए सेवन वंडर्स को कोर्ट के आदेश से तोडने की कार्यवाही आरंभ हुई तो उस पर जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई। मीडिया लगातार हेमरिंग कर रहा है। कई ब्लॉगर्स ने गंभीर सवाल उठाए हैं। सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर बुद्धिजीवी चीख चीख कर सरकार को नींद से जगाने का प्रयास कर रहे हैं। उनका कहना है कि जिन भी अधिकारियों की इसके निर्माण में अहम भूमिका रही, जिन्होंने नियमों की अवहेलना कर जानबूझ कर इसका निर्माण होने दिया, उनके खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए। जितना भी नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई उन अधिकारियों से की जानी चाहिए। आम आदमी पार्टी की नेत्री श्रीमती कीर्ति पाठक ने तो सोशल मीडिया पर बाकायदा एक अधिकारी का नाम लेकर बताया कि उन्होंने व श्रीमती मीना त्यागी ने इस अवैध निर्माण के बारे में आगाह किया तो अधिकारी ने कहा कि यह तय करना हमारा काम है, आप तय नहीं करेंगी कि कहां क्या बनना है। आज हर अजमेरवासी की भी यह भावना है कि नुकसान की भरपाई जिम्मेदार अफसरों से की जानी चाहिए। लोगों का दर्द गौर करने के लायक है कि विकास में पिछडते जा रहे अजमेर में बमुश्किल हुए विकास कार्य भी ध्वस्त किए जा रहे हैं।

जरा पीछे मुड कर देखें तो आपको ख्याल में आ जाएगा कि जिन दिनों सेवन वंडर्स का निर्माण आरंभ किया गया था, तब कई जागरूक लोगों ने ऐतराज जताया था कि आनासागर के किनारों का पाट कर इसका निर्माण करना गलत है। मीडिया ने भी अपनी भूमिका बखूबी निभाई। बाकायदा फोटोज छापे, किनारे को मिट्टी से पाटते हुए। मगर जिम्मेदारों ने आंखें मूंद रखी थीं। आनासागर का जल भराव क्षेत्र कम होने पर खूब चिंता जताई गई, जिसका नतीजा बाद में पूरे अजमेर ने भुगता, मगर संबंधित अधिकारियों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। किसी भी अधिकारी ने इन सवालों के जवाब देना मुनासिब नहीं समझा। अचरज होता है कि नियम विरूद्ध हो रहे निर्माण को संज्ञान में लाए जाने को अफसरों ने नजरअंदाज क्यों कर किया? क्या किसी का दबाव था या निजी हित साधे जा रहे थे?

यह बेहद अफसोसनाक है कि कथित रूप से स्मार्ट किए जा रहे अजमेर का चेहरा चमकाने की बजाय, उस पर कालिख पोती जा रही है। अफसोस इस बात पर भी कि कुछ विघ्नसंतोशी सामाजिक कार्यकर्ता पूर्व पार्शद अषोक मलिक पर तोहमत लगा रहे हैं कि एक तो अजमेर में वैसे ही विकास हो नहीं पाता, और जब होता है तो उन जैसे लोग उसे तुडवाने में लगे हुए हैं।

आज जब अजमेर की आत्मा आर्तनाद कर रही है कि तब क्या सरकार इस पर गौर करेगी? या फिर इसके लिए भी किसी सोशल एक्टिविस्ट को कोर्ट में गुहार लगानी पडेगी? राजनीति से जुडे लोगों को तो एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने से ही फुरसत नहीं है। उनसे अपेक्षा करना बेमानी है। अब देखते हैं कि क्या दोषी अफसरों के गले नापे जाते हैं या नहीं। सिस्टम की जैसी रवायत है, उसे देखते हुए तो यही लगता है कि लोगों की आवाजें नक्कारखाने में तूती की तरह दब जाएंगी। ऐसा लगता है कि फिर अधिकारियों को बचाने का कोई न कोई रास्ता निकाल लिया जाएगा।


रविवार, 14 सितंबर 2025

जिंदादिल कांग्रेस नेता श्री हरीश मोतियानी नहीं रहे

अजमेर ने गत दिवस एक ऐसे कांग्रेस नेता को खो दिया, जो किसी समय अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र में प्रमुख कांग्रेस दावेदार माने जाते थे। वे थे भूतपूर्व पार्षद स्वर्गीय श्री हरीश वासदेव मोतियानी उर्फ लक्खी। वस्तुतः लंबे समय तक भूतपूर्व मंत्री स्वर्गीय श्री किशन मोटवानी का कांग्रेस में वर्चस्व रहा, इस कारण मोतियानी सहित डॉ लाल थदानी, रमेश सेनानी, राजकुमारी गुलाबानी, हरीश हिंगोरानी सरीखे कई नेता टिकट हासिल नहीं कर पाए। मोतियानी पूर्व विधायक श्री गोपाल बाहेती व पूर्व उपमंत्री स्वर्गीय श्री ललित भाटी के करीबी रहे। वे जिंदादिल व बिंदास प्रकृति और हंसमुख स्वभाव के धनी थे। समाजसेवा में भी बहुत सक्रिय रहे।  

उनका जन्म 12 जुलाई 1961 में हुआ। उन्होंने 1981 में राजकीय महाविद्यालय से बीकॉम की डिग्री हासिल की। विवाह 30 मई 1987 को हुआ। वे युवा अवस्था से ही कांग्रेस में अनेक पदों पर सक्रिय रहे। सन् 1990 से 1995 तक नगर निगम में पार्षद रहे। उनके पिताश्री स्वर्गीय वासदेव मोतियानी का स्याही का कारोबार था, जो मिनिस्टर इंक के नाम से प्रसिद्ध रहा। पिताश्री के निधन के बाद उन्होंने कारोबार संभाला। उन्होंने 1996 से स्टेश्नरी का होलसेल कारोबार आरंभ किया।

शुक्रवार, 5 सितंबर 2025

क्या सुरेश कासलीवाल फिर राजनीति में प्रवेश करेंगे?

 वरिष्ठ पत्रकार सुरेश कासलीवाल ने फिर खेली नई पारी, पहला डेली डिजिटल अखबार शुरू किया

हाल ही जब वरिष्ठ पत्रकार सुरेष कासलीवाल चार एक्सटेंशन के बाद दैनिक भास्कर, अजमेर से डिजिटल हैड के पद से रिटायर हुए तो मेरे एक मित्र ने मुझ से पूछा कि क्या अब वे राजनीति में फिर प्रवेश करेंगे? मैं तो स्तब्ध रह गया। मैने उनसे पूछा कि आप ऐसा कयास क्यों लगा रहे हैं, इस पर उन्होंने कहा कि वे मांगलियावास के सरपंच रह चुके हैं और एक बार नसीराबाद विधानसभा सीट का टिकट हासिल करते करते रह गए थे। तो पत्रकारिता से रिटायर होने के बाद नई राजनीतिक पारी खेल सकते हैं। उनकी बात में दम तो है। 


यही सही है कि ग्रामीण पृष्ठभूमि के वरिष्ठ पत्रकार श्री सुरेश कासलीवाल ने जब 1989 में पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया तो उन्होंने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि यही उनका केरियर हो जाएगा। असल में वे निकटवर्ती मांगलियावास गांव के सरपंच थे। सन् 1989 में पहली बार उपसरपंच चुने गए। उसके बाद सन् 1995 से 2000 तक व सन् 2005 से 2010 तक सरपंच रहे। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरी पंचायत में जैन समाज का मात्र एक ही परिवार है, अर्थात जनता ने उनका व्यवहार देख कर बिना किसी जात-पांत के वोट दिए। सरपंच रहते बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए राजस्थान में अव्वल दर्जे का काम किया। इसके उपलक्ष में उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया गया। वे पीसांगन पंचायत समिति की 45 ग्राम पंचायतों के सरपंच संघ के अध्यक्ष भी रहे। हालांकि वे किसी राजनीतिक दल से जुड़े हुए नहीं थे और न ही किसी पार्टी के सदस्य रहे, लेकिन तत्कालीन पुष्कर विधायक स्वर्गीय जनाब रमजान खान से गहरी दोस्ती थी। तब नसीराबाद विधानसभा सीट के लिए भाजपा में दो दावेदारों के बीच टिकट को लेकर घमासान चल रहा था। मरहूम जनाब रमजान खान को लगा कि दोनों को छोड़ किसी तीसरे बेदाग व दबंग युवा पर दांव खेला जाए। उन्होंने ही तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री भैरोंसिंह शेखावत से यह कह कर नसीराबाद से विधानसभा चुनाव का टिकट देने की सिफारिश की कि ये बंदा तेज-तर्रार व जनता को समर्पित होने के कारण लोकप्रिय है और जीत जाएगा। श्री कासलीवाल को चुनाव की तैयारी करने को भी कह दिया गया, लेकिन भाजपा ने ऐन वक्त पर समझौते के तहत नसीराबाद सीट जनता दल को दे दी और श्रीकरण चौधरी ने चुनाव लड़ा। वे हार गए। यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि उनकी पुत्री ज्योतिका जैन नगर पालिका सरवाड़ के वार्ड संख्या 14 से कांग्रेस की पार्षद रही हैं। उनकी जीत भी इस कारण ज्यादा मायने रखती है कि इस वार्ड से पहले कभी कांग्रेस चुनाव नहीं जीत पाई थी। इसके बाद डॉ रघु शर्मा ने उन्हें मनोनीत पार्षद भी बनाया था। श्री कासलीवाल की बड़ी बहन भी दूदू ग्राम पंचायत की वार्ड मेंबर रही। दैनिक भास्कर में रहते हुए उन्होंने एक साल में ही आठ नेशनल अवार्ड जीतकर और ग्रेट चौंपियन बन पूरे देश में छाप छोड़ी थी। दसवीं बोर्ड की कॉपी जांचें ही नंबर दे देने की उनकी खबर ने देश में प्रथम स्थान हासिल किया। 

वे अजयमेरू प्रेस क्लब के अध्यक्ष भी रहे हैं और उनके कार्यकाल में क्लब की नई बिल्डंग में अनेक विकास कार्य करवाए।

पूरे 28 साल तक भास्कर में नौकरी करने के बाद 30 जून को अंतिम दिन अपने साथियों को बोला भी था कि वो जल्द नई पारी खेलेंगे। बहरहाल, हाल ही 6 अगस्त से उन्होंने अपना डेली ईवनिंग डिजिटल न्यूज पेपर राजस्थान लहर आरंभ किया है। न्यूज चौनल भी जल्द शुरू कर रहे है। यानि पत्रकारिता को निरंतर जारी रखे हुए हैं। क्या फिर राजनीति में आने का मूड बनेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता।


रविवार, 10 अगस्त 2025

गरीब नवाज की दौलत केवल इतनी ही थी

दुनियाभर के गरीब और अमीर को नवाजने वाले, दुनियाभर के दौलतमंदों की झोलियां भरने वाले ख्वाजा गरीब नवाज की दौलत के बारे में जान कर आप चकित रह जाएंगे। जैन दर्शन का एक सिद्धांत है अपरिग्रह, वह ख्वाजा साहब के जीवन दर्शन में इतना कूट-कूट कर भरा है कि आप उसकी दूसरी मिसाल नहीं ढूंढ़ नहीं पाएंगे। वे भारत आते वक्त जो सामान लाए थे, वही सामान उनके पास आखिर तक रहा। उसमें तनिक भी वृद्धि नहीं हुई।

बुजुर्गवार बताते हैं कि उनके व्यक्तिगत सामान में दो जोड़ी कपड़े, एक लाठी, एक तीर-कमान, एक नमकदानी, एक कंछी और एक दातून थी। हर वक्त वे इतना ही सामान अपने पास रखते थे। उन्होंने कभी तीसरी जोड़ी अपने पास नहीं रखी। यदि कपड़े फटने लगते तो उसी पर पैबंद लगा कर साफ करके उसे पहन लेते थे। यह काम भी वे खुद ही किया करते थे।  पैबंद लग-लग कर उनके कपड़े इतने वजनी हो गए थे कि आखिरी वक्त में उनके कपड़ों का वजन साढ़े बारह किलो हो गया था।

केवल सामान के मामले में ही नहीं अपितु खाने-पीने के मामले में भी बेहद सीमित जरूरत रखते थे। पूरे दिन में वे दो बार कुरान पाठ कर लिया करते थे। इस दौरान इबादत में वे इतने व्यस्त हो जाते थे कि उन्हें खाने-पीने की ही खबर नहीं रहती थी। वे लगातार चार-पांच दिन रोजा रख लिया करते थे। यदि रोटी सूख जाती तो उसे फैंकते नहीं थे, बल्कि उसे ही भिगो कर खा लेते थे।


शुक्रवार, 1 अगस्त 2025

इस बार होगी निर्दलियों की पौ-बारह

आगामी नगर निगम चुनाव का ताना बाना बुना जा रहा है। चुनाव लडने के इच्छुक नेता वार्डों के परिसीमन व आरक्षण की घोशणा का इंतजार कर रहे हैं। फिलवक्त संभावित स्थिति के मद्देनजर जमीन पर सक्रिय बने हुए हैं। इस बार का चुनाव अपेक्षाकृत अधिक रोचक होने की संभावना है। दोनों प्रमुख दलों कांग्रेस व भाजपा में अंतर्विरोध के चलते सारे समीकरण गड्डमड होते दिखाई दे रहे हैं। खींचतान मची हुई है। सबसे पहले तो टिकट वितरण को लेकर तलवारें खिंचेंगी। दोनों विधानसभा क्षेत्रों में धडेबाजी उभर कर आएगी। बेषक दोनों दलों के हाईकमान सुलह करते हुए टिकट वितरण की कोषिष करेंगे, मगर इतना पक्का है कि जिनको टिकट नहीं मिलेगा, वे या तो निर्दलीय मैदान में उतरेंगे, या फिर भीतरघात करेंगे। राजनीति के जानकार मानते हैं कि इस बार निर्दलियों की पौ बारह होगी। ऐसे में बोर्ड किस दल का बनेगा, कुछ नहीं कहा जा सकता। जहां तक मुद्दों का सवाल है, एलिवेटेड रोड के निर्माण में हुई अनियमितता व भारी बरसात के कारण जगह जगह हुए जल भराव जनमानस को उद्वेलित किए हुए है। समझा जाता है कि चुनाव आने तक आम मतदाता के मनसपटल से ये मुद्दे विस्मृत नहीं होंगे। कांग्रेस इन्हीं का सिरा पकड कर वैतरणी पार करने की कोषिष करेगी, वहीं भाजपा केन्द्र व राज्य में अपनी सरकार का लाभ लेना चाहेगी। मोदी फैक्टर भी काम करेगा। ऐसे में भिडंत तगडी होगी। निर्भर इस पर करेगा कि कौन कितना एकजुट हो कर चुनाव लडता है। कयास है कि इस बार एक बार फिर मेयर का चुनाव डायरेक्ट होगा, इस पर भी दावेदारों की नजर बनी हुई है।