रविवार, 10 अगस्त 2025

गरीब नवाज की दौलत केवल इतनी ही थी

दुनियाभर के गरीब और अमीर को नवाजने वाले, दुनियाभर के दौलतमंदों की झोलियां भरने वाले ख्वाजा गरीब नवाज की दौलत के बारे में जान कर आप चकित रह जाएंगे। जैन दर्शन का एक सिद्धांत है अपरिग्रह, वह ख्वाजा साहब के जीवन दर्शन में इतना कूट-कूट कर भरा है कि आप उसकी दूसरी मिसाल नहीं ढूंढ़ नहीं पाएंगे। वे भारत आते वक्त जो सामान लाए थे, वही सामान उनके पास आखिर तक रहा। उसमें तनिक भी वृद्धि नहीं हुई।

बुजुर्गवार बताते हैं कि उनके व्यक्तिगत सामान में दो जोड़ी कपड़े, एक लाठी, एक तीर-कमान, एक नमकदानी, एक कंछी और एक दातून थी। हर वक्त वे इतना ही सामान अपने पास रखते थे। उन्होंने कभी तीसरी जोड़ी अपने पास नहीं रखी। यदि कपड़े फटने लगते तो उसी पर पैबंद लगा कर साफ करके उसे पहन लेते थे। यह काम भी वे खुद ही किया करते थे।  पैबंद लग-लग कर उनके कपड़े इतने वजनी हो गए थे कि आखिरी वक्त में उनके कपड़ों का वजन साढ़े बारह किलो हो गया था।

केवल सामान के मामले में ही नहीं अपितु खाने-पीने के मामले में भी बेहद सीमित जरूरत रखते थे। पूरे दिन में वे दो बार कुरान पाठ कर लिया करते थे। इस दौरान इबादत में वे इतने व्यस्त हो जाते थे कि उन्हें खाने-पीने की ही खबर नहीं रहती थी। वे लगातार चार-पांच दिन रोजा रख लिया करते थे। यदि रोटी सूख जाती तो उसे फैंकते नहीं थे, बल्कि उसे ही भिगो कर खा लेते थे।


शुक्रवार, 1 अगस्त 2025

इस बार होगी निर्दलियों की पौ-बारह

आगामी नगर निगम चुनाव का ताना बाना बुना जा रहा है। चुनाव लडने के इच्छुक नेता वार्डों के परिसीमन व आरक्षण की घोशणा का इंतजार कर रहे हैं। फिलवक्त संभावित स्थिति के मद्देनजर जमीन पर सक्रिय बने हुए हैं। इस बार का चुनाव अपेक्षाकृत अधिक रोचक होने की संभावना है। दोनों प्रमुख दलों कांग्रेस व भाजपा में अंतर्विरोध के चलते सारे समीकरण गड्डमड होते दिखाई दे रहे हैं। खींचतान मची हुई है। सबसे पहले तो टिकट वितरण को लेकर तलवारें खिंचेंगी। दोनों विधानसभा क्षेत्रों में धडेबाजी उभर कर आएगी। बेषक दोनों दलों के हाईकमान सुलह करते हुए टिकट वितरण की कोषिष करेंगे, मगर इतना पक्का है कि जिनको टिकट नहीं मिलेगा, वे या तो निर्दलीय मैदान में उतरेंगे, या फिर भीतरघात करेंगे। राजनीति के जानकार मानते हैं कि इस बार निर्दलियों की पौ बारह होगी। ऐसे में बोर्ड किस दल का बनेगा, कुछ नहीं कहा जा सकता। जहां तक मुद्दों का सवाल है, एलिवेटेड रोड के निर्माण में हुई अनियमितता व भारी बरसात के कारण जगह जगह हुए जल भराव जनमानस को उद्वेलित किए हुए है। समझा जाता है कि चुनाव आने तक आम मतदाता के मनसपटल से ये मुद्दे विस्मृत नहीं होंगे। कांग्रेस इन्हीं का सिरा पकड कर वैतरणी पार करने की कोषिष करेगी, वहीं भाजपा केन्द्र व राज्य में अपनी सरकार का लाभ लेना चाहेगी। मोदी फैक्टर भी काम करेगा। ऐसे में भिडंत तगडी होगी। निर्भर इस पर करेगा कि कौन कितना एकजुट हो कर चुनाव लडता है। कयास है कि इस बार एक बार फिर मेयर का चुनाव डायरेक्ट होगा, इस पर भी दावेदारों की नजर बनी हुई है।

चुनाव हारा हूं, भरोसा नहीं

दोस्तो, नमस्कार। किषनगढ के पूर्व निर्दलीय विधायक सुरेष टाक पिछले चुनाव भले ही हार गए हों, मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी है। असल में उनकी हिम्मत के पीछे हैं वे विकास कार्य जो उन्होंने विधानसभा चुनाव फिर जीतने की उम्मीद में करवाए थे। पूर्व मुख्यमंत्री अषोक गहलोत को समर्थन देकर उन्होंने सरकार का भरपूर लाभ लिया भी। लोग उनके जन समर्पण को भूले नहीं हैं। आषा थी कि जनता विकास कार्यों का याद रख कर चुनावी वैतरणी पार लगा देगी, मगर इस बार हुए चुनाव में जमीन पर जातीय व अन्य समीकरण बदल गए। नतीजतन वे हार गए। प्रसंगवष बता दें कि सचिन पायलट ने भी अजमेर में इसलिए विकास कार्य करवाए थे कि अगली बार जमीन और मजबूत होगी, मगर अकेले मोदी लहर ने सब कुछ धो दिया था। यानि जीत के लिए अकेले विकास कार्य पर्याप्त नहीं होते, तत्कालीन और फैक्टर भी असर डालते हैं। बहरहाल, वैसे भी किसी निर्दलीय का दुबारा चुना जाना कठिन ही होता है। निर्दलीय प्रत्याषी अमूमन काठ की हांडी की तरह होता है। हांडी एक बार में तो काम में आ भी सकती है, मगर अपवाद को छोड दे ंतो वह एक बार ही चढती है। खैर, हारने के बाद भी टाक जमीन पर पकड बनाए हुए हैं। उनका बडा समर्थक वर्ग है। अगले विधानसभा चुनाव बहुत दूर हैं, मगर नगर निगम चुनाव में अपना दखल जरूर रखेंगे। हाल ही उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट पर फोटो के साथ एक पोस्ट साझा की है- 

चुनाव हारा हूं,

भरोसा नहीं।

यही भरोसा मेरी 

असली जीत है।

शनिवार, 26 जुलाई 2025

क्या धनखड कांग्रेस में शामिल होंगे?

रहस्यपूर्ण परिस्थितियों में इस्तीफा देने के बाद जगदीप धनखड क्या करेंगे? क्या वे नाराजगी में भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे? या हताश हो कर चुप बैठ जाएंगे? और लाल कृष्ण आडवानी की तरह निर्वासित जीवन जीयेंगे? या फिर नई राजनीतिक यात्रा के लिए कांग्रेस अथवा किसी और दल में शामिल होंगे? ये सवाल इन दिनों राजनीतिक गलियारे में खूब चर्चा में हैं।

कुछ लोगों का मानना है कि उन पर इतना दबाव बनाया जाएगा कि चुप रहने में ही अपनी भलाई समझेंगे। दूसरी ओर कुछ का मानना है कि धनखड का जैसा स्वभाव है, वे ज्यादा दिन तक चुप रह नहीं पाएंगे। न चाहते हुए भी जाट व किसानों के दबाव में उनके हितों के लिए चल रहे संघर्ष में शामिल होंगे। पद पर रहते हुए भी उन्होंने किसानों की आवाज उठाई थी, जो उनकी विदाई का एक कारण माना जाता है।

जहां तक उनके कांग्रेस में शामिल होने का कयास है, तो उसके पीछे यह दलील दी जा रही है कि मूलतः वे कांग्रेस पृष्ठभूमि से हैं। एक बार किशनगढ से कांग्रेस के विधायक रहे तो एक बार अजमेर लोकसभा सीट पर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड चुके हैं। दूसरा यह कि राज्यसभा में उन्होंने विपक्ष का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था। कांग्रेस नेता जयराम रमेश की इस्तीफे के बाद धनखड के पक्ष में दी गई प्रतिक्रिया को भी रेखांकित किया जा रहा है। विपक्ष के नेताओं से मीटिंग्स को भी संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है। आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल से मुकालात के भी अर्थ निकाले जा रहे हैं।

हालांकि फिलहाल उनके भावी कदम के बारे में हो रहे कयास प्रीमैच्योर ही कहे जाएंगे, मगर इतना तय माना जा रहा है कि वे देर से ही सही, मगर मुखर जरूर होंगे।

मंगलवार, 22 जुलाई 2025

कीर्ति पाठक एक बार फिर नए अवतार में?

दोस्तो, नमस्कार। ऐसा प्रतीत होता है कि आम आदमी पार्टी की प्रखर नेत्री श्रीमती कीर्ति पाठक एक फिर अजमेर में सक्रिय होने की तैयारी में है। अन्ना हजारे के आंदोलन से उपजी श्रीमती कीर्ति पाठक ने अब तक आम आदमी पार्टी को खडा करने की अथक कोशिश की, मगर धरातल पर हुई राजनीतिक चालों और उपर से अपेक्षित सहयोग न मिलने के कारण उन्हें सफलता हासिल नहीं हो पाई। पिछले दिनों उन्हें जब सुनहरी कॉलोनी में वहां की कांग्रेस पार्षद श्रीमती चंचल बारवाल के पति निर्मल बारवाल से जुझते देखा गया तो यह साफ संकेत मिल गया कि वे एक बार फिर से मैदान में आ डटी हैं। वे सोशल मीडिया प्लेट फार्म पर अजमेर की ज्वलंत समस्याओं को लेकर टिप्पणियां करने लगी हैं। हालांकि विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं, मगर निकट भविष्य में होने वाले नगर निगम चुनाव के मद्देनजर हाल ही उन्होंने फेसबुक पर एक पोस्ट साझा की है, जो इस बात का साफ संकेत है कि वे कोई ताना बाना बुन रही हैं। उनकी ताजा पोस्ट देखिएः-

अब समय आ गया है कि राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से इतर अजमेर के लिए संगठित रूप से लड़ा जाए। जन प्रतिनिधियों और जन सेवकों को जवाबदेह ठहराया जाए, विकास न होने पर प्रश्न पूछे जायें और अकर्मण्यता का हिसाब मांगा जाए। हमें बीस साल का हिसाब लेना ही होगा और वो भी बिना इन की चालों में फंसे। वो आप को लपेटने का प्रयत्न करेंगे, आप की राजनीतिक प्रतिबद्धता पर प्रश्न खड़े करेंगे, आप को नाहक ही घेरेंगे ताकि जवाबदेही न ठहराई जाए, पर हमें अजमेर के लिए अडिग रहना होगा। हमें अजमेर की जल निकासी पर, अतिक्रमण से अवरुद्ध आनासागर के जलनिकास पर प्रश्न खड़े करने होंगे।

हमें समयबद्ध कार्य न होने पर इन से प्रश्न करने होंगे। हमें इन के ढीले ढाले रवैये पर उंगली उठानी होगी। हमें इन को कटघरे में खड़ा करना ही होगा। कब तक अजमेरवासी इस दोयम दर्जे का जीवन जीने को बाध्य होगा। यदि आप अजमेरवासी अब निडर हो प्रश्न करने की हिम्मत रखते हैं, तो आइए हम सब संगठित रूप से एक गैर राजनैतिक मंच से जुड़ें और अजमेर के लिए प्रश्न करें। उन्होंने सिविल सोसायटी अजमेर के नाम से सर्वे का एक फार्म भी साझा किया है।उनकी इस पोस्ट ये सवाल उठता है कि क्या वे आम आदमी पार्टी से इतर मंच खडा करने जा रही हैं? चूंकि उनकी पहचान आम आदमी पार्टी से है, इस कारण सुनहरी कॉलोनी में आम आदमी पार्टी हाय हाय के नारे लगे।