मंगलवार, 10 सितंबर 2024

परदेसियों न अंखियां मिलाना, परदेसियों को है इक दिन जाना

रोजनामचा कॉलम में प्रकाशित टिप्पणी- क्या कुछ दिन ठहर नहीं सकती थीं जिला कलेक्टर डॉ भारती दीक्षित? पर एक नेता ने बहुत रोचक मगर अर्थपूर्ण प्रतिक्रिया की है। उन्होंने परदेसियों से न अंखियां मिलाना, परदेसियों को है इक दिन जाना गीत की पंक्तियां गुनगुनाते हुए कहा कि आपने उनके जाने को दिल पर क्यों ले लिया? यह अपेक्षा ही क्यों कर रहे कि वे कुछ दिन यहां और ठहरतीं? बेशक तबादला आदेश आने के तुरंत बाद रिलीव होना चौंकाता है। नए जिला कलेक्टर के आने तक का इंतजार नहीं किया और अतिरिक्त जिला कलेक्टर गजेन्द्र सिंह को चार्ज सौंप गईं। इतनी जल्दबाजी क्यों हुई, पता नहीं, मगर सच तो यह है कि तबादला होने के बाद यहां ठहरने का तो सवाल ही नहीं उठता था। नागौर जिले के तत्कालीन जिला कलेक्टर डॉ समित शर्मा बहुत लोकप्रिय थे। उनका तबादला हुआ तो वहां की जनता आंदोलित हो गई। तबादला रद्द करवाने के लिए एक दिन नागौर बंद भी हुआ था। मगर वे ठहरे थोडे ही। कोई विरला ही अधिकारी होता है, जो ड्यूटी के अतिरिक्त इतना डट कर काम करता है, मानो अपने शहर के लिए कर रहा हो। जैसे अजमेर की तत्कालीन जिला कलेक्टर श्रीमती अदिति मेहता। मगर अब तक का अनुभव तो यही बताता है कि असल में अधिकारी मात्र ड्यूटी निभाते हैं। केवल साल दो साल के लिए आते हैं। उनका कभी किसी शहर से कोई नेह नहीं होता। ड्यूटी पूरी होते ही चले जाते हैं। फिर पलट कर नहीं देखते। जब वे कर्तव्य निर्वहन के साथ थोडा सोशल होते हैं, सामाजिक कार्यक्रमों में शिरकत करते हैं तो हमें लगता है कि उनका हमसे स्नेह है, जब कि वह उनका मनोविनोद होता है। यकायक मुझे ख्याल आया कि अफसर ही क्या, यहां नेता भी ऐसे आए हैं, जो एक बार जीतने या हारने के बाद पलट कर नहीं लौटे। इस सिलसिले में आचार्य भगवान देव, विष्णु मोदी, जगदीप धनखड, हाजी हबीबुर रहमान के नाम लिए जा सकते हैं।


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